भारत-जापान का बढ़ता समन्वय
सांस्कृतिक, सभ्यता और सामरिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण
डा. शांतेष कुमार
पिछले कुछ वर्षों में भारत और जापान के बीच संबंधों ने आपसी समझ, मित्रता और सामरिक गहराई के नये स्तर हासिल किये हैं. इसने दोनों देशों के बीच एक विशेष सामरिक वैश्विक साझेदारी के निर्माण में सहायता की है जिससे न केवल मौजूदा संबंध सुदृढ़ हुए हैं, बल्कि भविष्य में परस्पर सहयोग का खाका भी निर्धारित हुआ है. वर्तमान जापानी नेतृत्व ने इस द्वीप राष्ट्र को द्वितीय विश्व युद्ध के दुष्प्रभावों और शीत युद्ध राजनीति से उबारकर स्वयं की एक अलग पहचान बनाने की दिशा में समर्पण और गतिशीलता तथा विनिर्दिष्ट दिशा की ओर प्रशस्त किया है. भारत के एकदम पड़ौस से बाहर का जापान ऐसा पहला देश था जिसकी श्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर पदभार संभालने के बाद यात्रा की थी, जो इस बात को दर्शाता है कि भारत जापान के साथ संबंध मज़बूत बनाने को कितना महत्व देता है.
भारत और जापान के प्रमुख सुरक्षा हित और दायित्व भिन्न हैं तथा उनकी अपनी स्वयं की सामरिक अनिवार्यताएं हैं. लेकिन दोनों राष्ट्र अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को समान प्रक्षेप पथ के साथ जोडऩे में कामयाब रहे हैं. जापान बढ़ती उम्र की आबादी और अल्प वृद्धि के साथ परिपक्व अर्थव्यवस्था है जबकि भारत विकासशील, युवा और वर्धनशील अर्थव्यवस्था है. भारत-जापान संबंधों में अनुकूल सुधार हुआ है. इसने 1990 के दशक में एक छोटे से बहाव से शुरूआत करते हुए वर्ष 2000 से आगे एक धारा का रूप धारण कर लिया और 2005 के आसपास यह पूर्ण गतिशीलता हासिल करते हुए एक बड़ी नदी बन चुकी थी. हिन्दुत्व और बौद्ध धर्मों के सदियों पुराने लोकाचारों का निर्माण, जिनकी जड़ों की बुनियाद मानवता और भाईचारे के सिद्धांतों पर टिकी हैं, दोनों देशों के बीच के संबंध सदियों पुरानी पारस्परिक सभ्यता के उपभेदों का संरक्षण करते हुए आर्थिक संतुलन बनाये रखने की आवश्यकता के अनुरूप विकसित हुए हैं. समझा जाता है कि जापान और भारत के बीच आदान प्रदान की प्रक्रिया की शुरूआत छठी शताब्दी में ही हो गई थी जब इस द्वीप राष्ट्र में बौद्ध धर्म का सूत्रपात हुआ. बौद्ध धर्म के जरिये छनकर निकली भारतीय संस्कृति का जापानी संस्कृति पर व्यापक प्रभाव रहा है, और यह जापान के लोगों की भारत के साथ निकटता की चेतना का स्रोत है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टोक्यो में यूनेनो चिडिय़ाघर के लिये एक भारतीय हाथी दान किया था. यह जापानी लोगों की जि़ंदगियों में आशा की एक नई किरण लेकर आया जो अभी तक भी युद्ध में हुई हार से उभर नहीं पाये थे. जापान और भारत ने एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किये और 28 अप्रैल, 1952 को राजनयिक संबंध स्थापित किये. यह संधि पहली शांति संधि थी जिस पर जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हस्ताक्षर किये थे. राजनयिक संबंधों की स्थापना से ही दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बने हुए हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के समय में भारत के लौह अयस्क ने जापान की विनाश से उबरने में व्यापक मदद की. 1957 में जापानी प्रधानमंत्री नोबुसुकी की किशि की भारत यात्रा के बाद से जापान ने भारत को येन ऋण उपलब्ध करवाने की शुरूआत की. 1958 में भारत को जापानी सरकार की ओर से पहली येन ऋण सहायता प्राप्त हुई. 1986 से, जापान भारत का सबसे बड़ा सहायता प्रदाता बन गया है और बना हुआ है.
भारत और जापान की घनिष्ठता में आर्थिक संबंध निश्चित रूप से प्रमुख कारकों में से एक थे, भले ही एशियाई राष्ट्रों के बीच एकता की चेतना के सृजन के लिये क्षेत्र में बढ़ते खतरों से निपटने के लिये सुरक्षा नीति एक प्रमुख घटक था. जापान भारत की आर्थिक खुशहाली, अवसंरचना विकास, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी उन्नयन की भारत की यात्रा में मूल्यवान साझेदार रहा है.
भारत-जापान संबंधों को पटरी पर लाने, विभिन्न आर्थिक और सामरिक समन्वय के निर्माण के लिये दोनों देशों का नेतृत्व अवरोधों को दूर करते हुए एक विशिष्ट बंधन तैयार कर रहा है, जो बीते कल से आगे बढऩे की क्षमता रखते हैं, और एक साथ मिलकर नये भविष्य का निर्माण हो रहा है. जापान भू-सामरिक और भू-राजनीतिक क्षेत्र में स्वयं को पुन: खड़ा करना चाहता है और भारत स्वतंत्रता के काल से एक ऐसा राष्ट्र बना रहा है जो कि जापान के स्थिर विकास में सदैव लगातार खड़ा हुआ है. भारत ने हर प्रकार से अपनी सकारात्मक भूमिका निभाई है और पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण गतिशीलता तथा शक्ति अर्जित की है. यह उन एशियाई राष्ट्रों में जापान का सबसे महत्वपूर्ण सैन्य साझेदार बन गया है जिनका अमरीका के साथ गठबंधन नहीं है. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो अबे, सैन्य उपकरणों के निर्यात के विरुद्ध जापान की दीर्घकालिक पाबंदी को तोड़ते हुए, धीरे-धीरे रक्षा उपकरणों की खरीद का काम पूरा करने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं, जिसमें भारत को 12 यूएस-2 विमान की बिक्री शामिल है. हाल में संपन्न हुआ परमाणु समझौता जापान की एक ऐसे देश के साथ अत्याधुनिक परमाणु प्रौद्योगिकी की हिस्सेदारी की तत्परता को इंगित करता है जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं. भारत और जापान के बीच इस वर्ष 11 नवंबर को हस्ताक्षरित नागरिक परमाणु समझौता अमेरिकी परमाणु उद्यमों-जीई-हिताची और तोशिबा-वेस्टिंगहाउस की संबद्धता के अधीन वर्तमान में विचाराधीन दो परमाणु परियोजनाओं की प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग के लिये दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता एक निर्णायक निर्धारक घटक साबित होगा क्योंकि अमरीका-स्थित दो रिएक्टर वेंडर्स के साथ-साथ दूसरे वैश्विक परमाणु रिएक्टर विनिर्माताओं की एक रेंज का जापानी कंपनियों के साथ गठबंधन है और रिएक्टर में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपकरण-दि कैलेंड्रिरया या रिएक्टर वैसल-का स्रोत प्रमुख जापानी हैवी फोर्जिंग कंपनी जापान स्टील वकर््स है.
जापान डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसी भारत की फ्लैगशिप परियोजनाओं, और सामाजिक और तकनीकी समस्याओं में साझेदारी के लिये आगे आया है, जो जापान वर्षों पहले हल कर चुका है. भारत और जापान, क्षेत्र की स्थिरता और विकास हासिल करने के लिये भारत-प्रशांत पहल में साझेदारी के लिये मिलकर काम करेंगे. सामरिक स्तर पर सघन विचार विमर्श के साथ-साथ रक्षा और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग भी आज की दुनिया में किसी द्विपक्षीय साझेदारी का प्रमुख और निर्णायक घटक होता है. इस संदर्भ में विश्व में सहयोग की व्यापक संभावना के साथ दो एशियाई देशों के बीच समुद्री क्षेत्र में सामरिक सहयोग काफी महत्व रखता है. संबंधों में इतना उच्च समन्वय हासिल करने के उपरांत, सैन्य समझौते के विस्तार के लिये संभावना का पता लगाने के दृष्टिगत दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र में सूचना पर महत्वपूर्ण नियंत्रण हासिल करने और रक्षा उपकरण तथा प्रौद्योगिकी में भविष्य में सहयोग पर चर्चाएं विस्तारित करने को उत्साही हैं. यह जापान के समुद्री आत्म रक्षा बल और भारतीय नौसेना के बीच द्विपक्षीय अभ्यासों के उद्देश्य तैयार करता है. 2015 से भारत, अमरीका और जापान के बीच स्थाई तौर पर निर्धारित त्रिपक्षीय प्रकृति का नौसेना अभ्यास मालाबार भी भारत-प्रशांत क्षेत्र में आधुनिक सुरक्षा गणना के मद्देनजऱ भारत के दृष्टिकोण में बदलाव को ओर इंगित करता है. जापान ने इससे पहले, वर्ष 2007, 2009 और 2014 में मालाबार अभ्यास में भाग लिया था. अमरीकी नौसेना के साथ मालाबार नौसैनिक अभ्यास ने जापानी समुद्री आत्म रक्षा बल के साथ भारतीय नौसेना की अंतर प्रचालकता की परिपक्व गहराई में दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मज़बूत किया है. दोनों देशों ने हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और पूर्वी वियतनाम सागर के विवादित पानी में संचालित सभी नौवहन-व्यापारिक और नौसैनिक युद्धपोतों के डॉटा की रियल टाइम हिस्सेदारी में सहयोग के लिये एक विशेषीकृत 24-राष्ट्र समुद्री निर्माण विकसित करने में सहयोग और रुचि दशाई है. इस सामुद्रिक व्यवस्था में ये देश हिंद महासागर और चीन के आसपास से भी होंगे, जिनमें से कुछेक का चीन के साथ प्रादेशिक विवाद चल रहा है और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के पूर्व से गुजर रही महत्वपूर्ण नौवहन लेन मालाका जलडमरूमध्य के पूर्व में स्थित हैं. सेंकाकु/डियोयु द्वीपसमूहों और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र को लेकर चीन-जापान के विवाद के प्रकाश में भारत ने स्पष्ट रूख अपनाया है. अत: इन बातों के बारे में चर्चाओं को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत और जापान के बीच मैत्रीपूर्ण पहल की ऐसी सकारात्मक भावना ने उन्हें स्वाभाविक साझेदार बनाया है. क्षेत्रीय विवादों जैसी बातों पर गंभीर असहमति का न होना, द्विपक्षीय संबंधों की परिपक्व गहराई को दर्शाता है. बढ़ती सामरिक साझेदारी न केवल भारत और जापान की भलाई और सुरक्षा के लिये लाभदायक है बल्कि इससे क्षेत्र में शांति, स्थिरता और संतुलन भी आता है. एशिया-प्रशांत में उभरते अवसरों और चुनौतियों के लिये यह संवेदनशील है. समावेशी परिदृश्य वाले देशों के तौर पर भारत और जापान दोनों ही क्षेत्र में संपर्क, अवसंरचना और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिये निकट सहयोग पर सहमत हुए हैं जिनका भारत-प्रशांत के परस्पर-संबद्ध पानी पर कब्ज़ा है.
श्री मोदी की हाल की जापान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री अबे ने कहा कि वे ‘‘नये जापान-भारत युग’’ के साथ आगे बढऩा चाहते हैं. आतंकवाद और धार्मिक कट्टरवाद के मुद्दे पर दोनों नेताओं ने जुलाई में बंगलादेश की राजधानी ढाका में कैफे पर हुए हमले की चर्चा की जिसमें सात जापानी और एक भारतीय नागरिक सहित बीस लोग मारे गये थे. उन्होंने सूचनाओं के प्रभावी आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण सहित अपने आतंकवाद रोधी सहयोग को मज़बूत करने के लिये निकटता के साथ कार्य करने का फैसला किया. बंगलादेश हमले के बाद भारत और जापान ने वैश्विक आतंकवाद के विरुद्ध अपनी स्थितियों को एकजुट करने पर गंभीर विचार विमर्श किया था. आतंक निरोधक प्रयासों में जापान की प्रतिबद्धता वैश्विक संकट के खिलाफ लड़ाई में एक सकारात्मक घटनाक्रम है क्योंकि पूर्व में वह इस मुद्दे पर भारत-जापान मंत्रणा के बावजूद उतना अधिक रूचि नहीं लेता था.
व्यापारिक नेताओं को अपने संबोधन में श्री मोदी ने दुनिया में सर्वाधिक आकर्षक निवेश स्थल के तौर पर भारत की जमकर तारीफ की. जापान भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के पांच सर्वोच्च स्रोतों में शामिल है. भारत में निवेशित जापानी पूंजी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा राज्य-समर्थित है, जिसके तहत वह दीर्घावधि अवसंरचना परियोजनाओं के लिये आसान शर्तों पर पूंजी उपलब्ध करवा रहा है. जापान से निजी पूंजी निवेश, ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में रोजग़ार सृजन कर रहा है. यद्यपि अनेक प्रकार के व्यापार (2015-16 में 14.5 अरब अमरीकी डॉलर) से दुनिया की तीसरी और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (क्रय शक्ति की समानता की दृष्टि से) के बीच आर्थिक संबंधों के साथ न्याय करने के लिये सुधार का व्यापक दायरा खुलता है. जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है वर्तमान संबंध गहरे आर्थिक संबंधों, व्यापार की वृद्धि, विनिर्माण और निवेश समझौतों, स्वच्छ ऊर्जा पर फ़ोकस, दोनों राष्ट्रों के नागरिकों की साझेदारी हासिल करने, और अवसंरचना और कौशल विकास में सहयोग पर आधारित है जो कि प्रमुख प्राथमिकताएं बनी रहेंगी. शिनकासेन टेक्नोलॉजी के साथ प्रस्तावित मुंबई-अहमदाबाद उच्च गति रेल परियोजना, दक्षिण एशियाई देश से जापान जाने वाले दर्शकों की संख्या बढऩे का लक्ष्य दर्शाते हुए, ऐसी प्राथमिकताओं को हासिल करने के आधार को मज़बूत बनाने में एक प्रमुख पहल के तौर पर देखी जा रही है.
भारत और जापान दोनों के पास विभिन्न प्रकार के राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षात्मक पहलों के जरिये अपने द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के महान अवसर मौजूद हैं. दोनों ने इन अवसरों का लाभ उठाने के मार्ग विकसित करने के प्रयास किये हैं. किसी भी ऐतिहासिक प्रतिवेश से वंचित जापान को अपने संकोच त्याग देने चाहिये और भारत के साथ अपने संबंध मज़बूत करने चाहिये. यह नोट करना अपूर्ण विवरण माना जायेगा कि भारत और जापान की निकटता वित्तीय वास्तविकता की अपेक्षा कागज़ और समझौते पर अधिक है. बढ़ती निकटता क्षेत्र में राष्ट्रों के लिये बेचैनी का कारण हो सकता है जो कि विभिन्न विश्लेषणों और मीडिया रिपोर्टों में दिखाई देती है, परंतु दुनिया में, जो कि संघर्ष, घृणा, धार्मिक कट्टरता, आतंकवाद और भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी है, राष्ट्रों के बीच सेतु के निर्माण के प्रयास, जो कि क्षेत्रों को परस्पर जोडक़र रख सकते हैं, ऐसी पहले हैं जिनसे न केवल भारत और जापान की भावी पीढिय़ों के लिये बल्कि संपूर्ण भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिये अच्छे परिणाम सामने आयेंगे.
(डा. शांतेष कुमार सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं और वे अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय, जेएनयू, नई दिल्ली में अतिथि संकाय भी हैं)