‘जन औषधि’ के माध्यम से किफायती स्वास्थ्य सेवाएं
रितेश कुमार
ऐतिहासिक रूप से इस धारणा पर आधारित रहा है कि रोगियों के उपचार में कीमत बाधा नहीं होनी चाहिए। हालांकि, जीवन रक्षक दवाओं तक पहुंच वास्तव में अपर्याप्त है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की आवश्यक दवाओं तक पहुंच नहीं है, और इस समूह के आधे से अधिक लोग विकासशील दुनिया के गरीब क्षेत्रों, जैसे कि अफ्रीका और एशिया में रहते हैं।
विकासशील देशों में दवाओं की पहुंच को कई कारक निर्धारित करते हैं, जिनमें लागत महत्वपूर्ण होती है। स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती लागत को कम करने का एक तरीका जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करना है। जेनेरिक दवाएं स्वास्थ्य सेवाओं के व्यय को कम करने का महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती हैं क्योंकि ब्रांडेड औषधियों की तुलना में उनकी कीमत काफी कम हो सकती हैं। हर सरकार के स्वास्थ्य एजेंडे का प्राथमिक उद्देश्य, समय पर किफायती, सुरक्षित और प्रभावी उत्पादों तक पहुंच प्रदान करना होना चाहिए। इस तथ्य के बावजूद कि अधिकांश विकासशील देश अपने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति वक्तव्यों में जेनेरिक दवाओं के उपयोग को अनिवार्य करते हैं, अधिकांश चिकित्सक और उपभोक्ता उनकी प्रभावशीलता, गुणवत्ता तथा सुरक्षा के बारे में संदिग्ध रहते हैं। उपभोक्ताओं को जेनेरिक दवाओं के फायदों के बारे में जानकारी देने के लिए विकासशील देशों में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा पहल नहीं होने के कारण यह संदेह और बढ़ गया है।
जेनेरिक दवाएं क्या होती हैं?
नई दवाओं का विकास एक लंबी और महंगी प्रक्रिया है। विपणन प्राधिकार प्राप्त करने से पहले, फार्मास्युटिकल कंपनियों को लक्षित स्थिति के उपचार में उनकी सुरक्षा और प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए पशु और मानव परीक्षण के लिए विकसित अणुओं, या दवाओं पर काम होना चाहिए। इसके अलावा, विकास प्रक्रिया जोखिम भरी है, क्योंकि दवाएं अपेक्षित परीक्षण पास करने में विफल हो सकती हैं, जिससे कंपनी को काफी वित्तीय नुकसान हो सकता है। दवा के विकास से जुड़ी उच्च लागत, दवा कंपनियों की लाभ-संचालित प्रकृति, और आगे के अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के प्रकाश में, नई दवा विकसित करने वाली कंपनी को अनन्यता की अवधि दी जाती है, जिसके दौरान वह केवल दवा का उत्पादन और विपणन कर सकती है। यह अवधि, जिसे आमतौर पर पेटेंट अवधि के रूप में जाना जाता है, के दौरान रॉयल्टी शुल्क के लिए अणु को अन्य कंपनियों को बेचकर मुद्रीकृत किया जा सकता है। बाजार अनन्यता की इस अवधि में, कंपनियां आमतौर पर प्रीमियम पर दवा बेचती हैं। पेटेंट अवधि समाप्त होने के बाद, अन्य कंपनियां इन दवाओं का उत्पादन और अक्सर कम कीमतों पर बिक्री कर सकती हैं, इस प्रकार ये ‘ जेनेरिक दवाएं’ या ‘जेनेरिक्स’ के रूप में जानी जाती हैं। जेनेरिक दवाओं में उनके ब्रांडेड समकक्षों के समान शुद्धता, असर और गुणवत्ता के मानक होते हैं।
भारत में जेनेरिक दवाओं का उपयोग
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना (पीएमबीजेपी): भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली दुनिया में सबसे बड़ी है, लेकिन देश में लाखों लोगों के लिए सस्ती और गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। इस मुद्दे को हल करने के लिए, 2008 में, भारत सरकार ने जेनेरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रव्यापी योजना शुरू की। यह योजना, जिसे अब प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के रूप में जाना जाता है, एक प्रमुख योजना है जिसका उद्देश्य जनता को सस्ती कीमत पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराना है। यह योजना फार्मास्यूटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ इंडिया (पीएमबीआई) के माध्यम से लागू की गई है। पीएमबीआई, जन औषधि अभियान को लागू करने के लिए केंद्रित और सशक्त संरचना के लिए फार्मा पीएसयू द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र सोसायटी है। सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत, पीएमबीआई एक संचालन परिषद (जीसी) द्वारा शासित है, जिसके प्रमुख, औषधि विभाग के सचिव हैं। यह सर्वोच्च नीति निर्माण निकाय है। निर्णय लेने की सुविधा के लिए संचालन परिषद के तहत एक कार्यकारी परिषद (ईसी) का गठन किया गया है।
पीएमबीजेपी के तहत, पीएमबीआई सीधे निर्माताओं से जेनेरिक दवाएं खरीदता है और जन औषधि केंद्रों को इनकी आपूर्ति करता है। इस योजना में ‘जन औषधि’ के नाम से जेनेरिक दवाओं की ब्रांडिंग और विपणन भी शामिल है। पीएमबीजेपी के तहत बेची जाने वाली जेनेरिक दवाओं को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों को पूरा करना आवश्यक है।
पीएमबीजेपी के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
· जनसाधारण को गुणवत्तापूर्ण जेनरिक दवाएं सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराना।
· स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च को कम करना।
· जेनरिक दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा देना।
· योजना के तहत बेची जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना।
· जन औषधि केंद्रों की स्थापना के माध्यम से लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना।
· दवाओं के लिए सरकार की बजटीय सहायता को कम करना।
जन औषधि केंद्रः उद्यमशीलता और कैरियर विकास के लिए उत्कृष्ट अवसर
पीएमबीजेपी को देश भर में जन औषधि केंद्रों की स्थापना के माध्यम से लागू किया जाता है। इन केंद्रों का स्वामित्व और संचालन व्यक्तियों, स्वयं सहायता समूहों और संगठनों द्वारा किया जाता है। जन औषधि केंद्र के मालिकों को प्रदान की जाने वाली एकमुश्त वित्तीय सहायता को मौजूदा 2.50 लाख रुपये से बढ़ाकर 5.00 लाख रुपये कर दिया गया है, जो मासिक खरीद के 15 प्रतिशत के हिसाब से दी जाएगी और अप्रैल 2021 से 15,000/- रुपये प्रति माह की सीमा के अधीन हैं। केंद्रों को जन औषधि ब्रांड के तहत ब्रांडेड दवाओं के बाजार मूल्य की तुलना में 90 प्रतिशत तक की छूट पर जेनेरिक दवाएं बेचने की आवश्यकता है। केंद्रों के लिए सभी चिकित्सीय श्रेणियों को कवर करने वाली कम से कम 500 दवाओं का भंडार बनाए रखने की भी आवश्यकता होती है।
मुनाफा और प्रोत्साहन
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औषधि विभाग, रसायन और उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार की जन औषधि केंद्रों के संवर्धन के लिए प्रोत्साहन योजना है जिसके अंतर्गत 5.00 लाख रुपये का प्रोत्साहन दिया जाता है।
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1. 5.00 लाख रुपये का प्रोत्साहन, अधिकत मासिक 15,000 रुपये , मासिक खरीद के 15 प्रतिशत पर दिये जाते हैं। ये प्रोत्साहन किसी भी वर्ग के सभी उद्यमियों को दिया जाता है जो एक साॅफ्टवेयर (पीओएस) के माध्यम से पीएमबीआई से जुड़े हैं।
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2. 2.00 लाख रुपये का एकमुश्त अतिरिक्त प्रोत्साहन (आईटी और इन्फ्रा व्यय के लिए प्रतिपूर्ति), नीति आयोग द्वारा आकांक्षी ज़िले के रूप में उल्लेखित पूर्वोत्तर राज्यों, हिमालयी, द्वीपीय और पिछड़े क्षेत्रों में खुले पीएमबीजेपी केंद्रों या महिलाओं, दिव्यांगजनों, अनुसूचित जातियों/जनजातियों तथा पूर्व सैनिकों को उपलब्ध कराया जाता है।
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पीएमबीजेपी केंद्र खोलने के लिए पात्रता मानदंडः
· 21 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुष, महिलाओं और दिव्यांग व्यक्तियों सहित कोई भी भारतीय नागरिक।
· आवेदक स्वयं डी.फार्मा/बी. फार्मा या कोई फार्मा डिग्री प्राप्त हाना चाहिए या उसे ऐसी डिग्री रखने वाले व्यक्ति को नौकरी पर रखना चाहिए।
· जन औषधि केंद्रों के लिए आवेदन करने वाले किसी भी संगठन या गैर सरकारी संगठन को डी.फार्मा/बी. फार्मा या कोई फार्मा डिग्री प्राप्त व्यक्ति को नियुक्त करना होगा और अंतिम मंज़ूरी के समय इसका प्रमाण प्रस्तुत करना होगां।
· अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के परिसरों के अंदर जन औषधि केंद्र स्थापित करने के लिए, प्रतिष्ठान का प्रबंधन उपयुक्त संगठनों, धर्मार्थ ट्रस्टों या यहां तक कि व्यक्तियों की भी सिफारिश कर सकता है।
· आवेदन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से जमा किए जा सकते हैं।
अवसंरचना और रसद आवश्यकताएं:
· कम से कम 120 वर्ग फुट का निर्मित क्षेत्र।
· फार्मासिस्ट लाइसेंस
· आवेदन प्रपत्र के साथ 5,000/- रु. अप्रतिदेय आवेदन शुल्क जमा करना होगा।
· यदि आवेदक हिमालयी, द्वीपीय क्षेत्रों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में नीति आयोग द्वारा अधिसूचित महिला उद्यमियों, दिव्यांगों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आकांक्षी जिलों (पिछड़े जिले) के किसी भी उद्यमी की श्रेणी से संबंधित है तो आवेदन शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है ।
विक्रेताओं और आपूर्तिकर्ताओं के लिए पात्रताः
पीएमबीजेपी दवा निर्माताओं और वितरकों के लिए जन औषधि केंद्रों को जेनेरिक दवाओं, सर्जिकल उपकरणों और उपभोग्य सामग्री की आपूर्ति करके अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट अवसर भी प्रदान करता है। ऐसे केंद्र सभी प्रमुख चिकित्सीय समूहों को कवर करने वाली दवाओं और उपकरणों की खरीद करते हैं। वे वयस्कों और बच्चों के लिए चवनप्राश, प्रोटीन पाउडर, माल्ट-आधारित खाद्य पूरक और आयुष उत्पादों जैसे प्रतिरक्षा बूस्टर जैसे न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद भी खरीदते हैं। केंद्रों को महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए किफायती दर पर सैनिटरी पैड बेचने का कार्य भी सौंपा गया है।
(जन औषधि केंद्र खोलने के लिए आवेदनों के बारे में अधिक जानकारी पीएमबीजेपी की आधिकारिक वेबसाइट – https://janaushadhi.gov.in पद पर दी गई है)।
जन औषधि उत्पादों की खरीद
उत्पादों की खरीद भारत सरकार के ई-टेंडर पोर्टल (सीपीपीपी) के माध्यम से डब्ल्यूएचओ-जीएमपी प्रमाणित सुविधाओं वाले विक्रेताआ/आपूर्तिकर्ताओं/निर्माताओं से की जाती है। 2017-18 में 600 दवाओं और 150 सर्जिकल वस्तुओं को बढ़ाकर 1759 दवाएं और 280 सर्जिकल उपकरण और उपभोग्य किया गया है। केंद्रों को एसएपी (सिस्टम एप्लीकेशन और उत्पाद) आधारित इन्वेंट्री प्रबंधन और पूर्वानुमान प्रणाली प्रदान की जाती है। पोर्टल में आपूर्ति में विफलता के लिए विक्रेताओं/आपूर्तिकर्ताओं/निर्माताओं को काली सूची में डालने/प्रतिबंधित करने की भी व्यवस्था है, साथ ही देर से वितरण के लिए जुर्माना भी लगाया जाता है।
उत्पादों की गुणवत्ता आश्वासन
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· दवाओं की खरीद विश्व स्वास्थ्य संगठन-वस्तु विनिर्माण कार्य, खाद्य सुरक्षा तथा भारतीय मानक प्राधिकरण और सीई प्रमाणित आपूर्तिकर्ताओं से की जाती है।
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· 13 एनएबीएल मान्यताप्राप्त प्रयोगशालाओं (नैशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फाॅर टेस्टिंग एण्ड कोलेबोरेशन लेबोरेटरीज़ )
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· 99 प्रतिशत से अधिक बैच ने गुणवत्ता मानकों को पूरा किया।
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· ऐस्से और सोलुबिलिटी आदि के संदर्भ में लोकप्रिय ब्रांड की दवाओं के साथ नियमित तुलना।
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भंडारण और रसद
जन औषधि दवाएं आईटी-सक्षम शुरू से अंत आपूर्ति श्रृंखला प्रणाली के माध्यम से केंद्रों तक पहुंचाई जाती हैं। एक केंद्रीय गोदाम गुरुग्राम में और तीन क्षेत्रीय गोदाम चेन्नई, गुवाहाटी तथा सूरत में हैं। ये गोदाम देश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद सभी केंद्रों को कवर करते हैं। आपूर्ति श्रृंखला प्रणाली को मजबूत करने के लिए अब तक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 36 वितरकों को भी नियुक्त किया गया है। 2025 तक 6 गोदाम स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
पीएमबीजेपी का प्रभाव
पीएमबीजेपी का भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इस योजना के तहत देश भर में मार्च 2023 तक, 9,000 से अधिक जन औषधि केंद्र, 1759 जेनेरिक दवाएं और 280 सर्जिकल उपकरण बेचे जा रहे हैं। पिछले आठ वर्षों में जन औषधि केंद्रों के माध्यम से जेनेरिक दवाओं की बिक्री में 100 गुना वृद्धि हुई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन औसतन 1.2 मिलियन लोग जन औषधि दुकानों पर जाते हैं। पीएमबीजेपी के प्रमुख सफलता कारकों में उत्पादों की गुणवत्ता आश्वासन, कुशल रसद, उद्यमियों को प्रोत्साहन, पर्याप्त उत्पाद रेंज, निरंतर संचार तथा जागरूकता और नागरिकों की बचत शामिल है। जन औषधि केंद्रों के परिणामस्वरूप पिछले 8 वर्षों में लगभग 20,000 करोड़ रुपये (2 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक) की राशि के लाभार्थियों के जेब खर्च में भारी बचत हुई है।
पीएमबीजेपी ने लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर भी पैदा किए हैं। जन औषधि केंद्रों की स्थापना ने लोगों को आय का स्रोत प्रदान किया है और स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा करने में मदद की है। 2014-15 में, जन औषधि केंद्रों ने 7.29 करोड़ रुपये की जेनेरिक दवाओं और उपकरणों की बिक्री की, जो 28 फरवरी 2023 तक बढ़कर 1094.84 करोड़ रुपये हो गई।
जेनेरिक दवाओं के उपयोग के लिए कानूनी ढांचा और विनियम
भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 के अंतर्गत चिकित्सकों के लिए स्पष्ट और पठनीय तरीके से, अधिमानतः बड़े अक्षरों में, उनके जेनेरिक नामों का उपयोग करके दवाएं लिखना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (जिसे पहले भारतीय चिकित्सा परिषद के रूप में जाना जाता था) ने सभी पंजीकृत चिकित्सकों को इन प्रावधानों का पालन करने के निर्देश जारी किए थे। इसके अलावा, 2019 के राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, आयोग की राज्य चिकित्सा परिषदों/नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड (ईएमआरबी) को उपरोक्त नियमों का उल्लंघन करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है। जब डॉक्टरों के लिए आचार संहिता के उल्लंघन के संबंध में शिकायतें दर्ज की जाती हैं, तो ईएमआरबी इन शिकायतों को संबंधित राज्य चिकित्सा परिषदों को भेजती है जहां डॉक्टर या चिकित्सक पंजीकृत हैं। राज्यों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में जेनेरिक दवाओं के नुस्खे को सुनिश्चित करने की भी सलाह दी जाती है।
जागरूकता फैलाना
भारत सरकार पंजीकृत जेनरिक की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता पर उपभोक्ताओं को शिक्षित करने और समझाने में सक्रिय रही है। जन औषधि दिवस हर साल 7 मार्च को सूचना के प्रसार और योजना के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।
फार्मास्युटिकल्स विभाग/फार्मास्यूटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेज ब्यूरो ऑफ इंडिया (पीएमबीआई) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया के साथ-साथ बाहरी प्रचार के माध्यम से इस योजना के बारे में जागरूकता फैलाता है। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से जन औषधि जेनेरिक दवाओं के लाभों और योजना के बारे में जानकारी प्रसारित की जाती है। पीएमबीआई का ’जन औषधि सुगम’ नामक एक मोबाइल एप्लिकेशन भी है, जो पीएमबीजेके का पता लगाने, जन औषधि दवाओं की खोज, टेलीफोन नंबर आदि जैसे कई तरीकों से उपयोगकर्ताओं की सहायता के लिए एक सिंगल विंडो प्लेटफॉर्म है। इसके अलावा, उपभोक्ताओं पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए जेनरिक से संबंधित विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करने के प्रयास भी किए जाते हैं।
इस वर्ष, जन औषधि दिवस के अवसर पर, 7 दिवसीय राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया गया। शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से देश भर में डॉक्टरों, नर्सों, फार्मासिस्ट जैसे स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिए सेमिनार आयोजित किए गए। विशेष रूप से जैव-समानता की सामान्य अवधारणाओं के बारे में लोगों के इस समूह को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विषय कई स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा अच्छी तरह से समझा नहीं गया है। इस समस्या को दूर करने के लिए देश भर के फार्मा कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक सेमिनार आयोजित किए गए जहां हजारों छात्रों/मेडिकल छात्रों/पैरा-मेडिकल छात्रों को पीएमबीजेपी पर ध्यान केंद्रित करते हुए जेनेरिक दवाओं के बारे में बहुमूल्य जानकारी दी गई। जन औषधि केंद्रों को खोलने में सक्रिय रूप से भाग लेकर छात्रों को उद्यमशीलता के प्रयासों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके अतिरिक्त, कार्यक्रमों में संबंधित व्यावसायिक निकायों द्वारा अनिवार्य सतत व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों का हिस्सा बनाने के लिए जेनेरिक दवाओं पर ऐसे शैक्षिक सेमिनारों को बढ़ावा देने की संभावनाओं पर हितधारकों के बीच चर्चा भी की गई। इसी तरह, दवाओं पर पाठ्îक्रम प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों को उनके मानक चिकित्सीय पाठ्यक्रम में तर्कसंगत प्रिस्क्रिप्शन पर विषयों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है ताकि भविष्य के स्वास्थ्य सेवा पेशेवर जो सीधे रोगी देखभाल में शामिल होंगे जैसे डॉक्टर, नर्स और फार्मासिस्ट तर्कसंगत प्रिस्क्रिप्शन के हर पहलू पर अच्छी तरह से सूचित हों।
जन औषधि दिवस 2023 समारोह देश भर में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में विभिन्न स्थानों पर आयोजित किया गया, जिसमें बच्चों, महिलाओं और एनजीओ, हेरिटेज वॉक और स्वास्थ्य शिविरों और कई अन्य गतिविधियों में पीएमबीजेके के मालिकों, लाभार्थियों, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के अधिकारियों, डॉक्टरों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, नर्सों, फार्मासिस्टों, और जन औषधि मित्रजन प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
द वर्ल्ड्स फार्मेसीः भारत का जेनरिक औषधि उद्योग
जेनेरिक दवाएं विकासशील और विकसित दोनों देशों में आवश्यक हैं। विकासशील देशों में सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि लोगों तक आवश्यक दवाओं की पहुंच हो। कम लागत वाली जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता से स्वास्थ्य सेवा प्रदाता अधिक संख्या में मरीजों का इलाज कर सकते हैं । यहां तक कि विकसित देशों में भी, आय असमानताओं को देखते हुए, स्वास्थ्य को कैसे सुलभ बनाया जाए, इस पर बहस तेज हो गई है। उन देशों में जहां स्वास्थ्य बीमा प्रचलित है, जेनेरिक दवाओं का उपयोग बीमा प्रीमियम की लागत को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा अधिक सस्ती हो जाती है।
भारत ने अपनी नवीन रूप से तैयार की गई जेनेरिक दवाओं और सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) के साथ वैश्विक परिदृश्य पर एक मजबूत मुकाम हासिल किया है। भारत जेनेरिक ड्रग्स बाजार 2022 में 24.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर था और 2018-2028 की पूर्वानुमान अवधि के दौरान 6.97 प्रतिशत की स्थिर सीएजीआर से बढ़ने की उम्मीद है। भारत के ’वसुधैव कुटुम्बकम’ के मार्गदर्शक सिद्धांत के अनुरूप, भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग ने वैश्विक बाजार में नेतृत्व की भूमिका निभाई है और मानव जाति की बेहतरी के लिए अथक रूप से काम किया है, जिससे उचित कीमतों पर बड़े पैमाने पर खपत के लिए उच्च गुणवत्ता वाले फार्मास्यूटिकल्स की प्रचुर उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। साझेदार देशों के साथ सहयोग करने की भारत की अटूट प्रतिबद्धता, मजबूत संबंध बनाने और कल्याण को बढ़ावा देने की दिशा में महज व्यापार से परे इस साझेदारी को और गहरा करने के लिए देश के समर्पण को प्रदर्शित करती है। निर्यात में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी और विश्व स्तर पर हर पांच में से एक जेनेरिक गोली के उत्पादन के साथ भारत का दुनिया की फार्मेसी के रूप में वर्णन करना उचित है, क्योंकि इसने दुनिया भर के कई देशों में दवाओं को अधिक किफायती बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(लेखक दिल्ली में पत्रकार हैं और वर्तमान में एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ प्लेटफार्म के साथ काम कर रहे हैं। उनसे riteshkumar1926@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत है