सार्वजनिक प्रणालियों में प्रबंधन का अध्ययन
एस.के.चौधरी
भारत में गुणवत्ता प्रबंधन शिक्षा, वित्त, विपणन, मानव संसाधन, उत्पादन एवं प्रचालन प्रबंधन विषयों के अध्ययन तक सीमित बनी रही है. किसी उद्यमी संगठन में इन विषयों के महत्व को अतिशयोक्ति नहीं कहा जा सकता. ये विषय सभी संगठनों में कुछ महत्वपूर्ण संकार्यों से जुड़े होते हैं और यह आशा की जाती है कि प्रबंध प्रशिक्षु के पास इनमें किसी एक क्षेत्र में कुशाग्रता होनी चाहिये.
विभिन्न कंपनियां भिन्न-भिन्न वस्तुओं के उत्पादन अथवा सेवाओं से संबंधित कार्य संचालित करती हैं. उत्पाद, उत्पादन प्रक्रिया, संभारतंत्र, विपणन और बिक्री, व्यवसाय से संबंधित कानून और नियमों का ज्ञान किसी भी व्यवसाय विशेष के लिये महत्वपूर्ण होता है. परंतु सामान्यीकृत नामावली के अधीन कई प्रकार के व्यवसायों की विशेष खूबियों को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया जा सकता है. वित्त और मानव संसाधन से भिन्न, प्रचालन की शाखा विभिन्न प्रकृतियों के प्रचालनों को उनके सतही समानताओं के आधार पर एक ही छत के नीचे प्रभावी रूप से शामिल नहीं की जा सकती हैं. व्यवसाय विनिर्दिष्ट ज्ञान प्रदान किये जाने से अभ्यर्थियों को अधिक केंद्रित और उन्मुख होने में मदद मिलती है.
जब हम मास्टर स्तर पर बिजऩेस प्रशासन की बात करते हैं, अध्ययन स्वत: निजी क्षेत्र के व्यवसाय तक सीमित नहीं होता-परंतु इसमें व्यवसाय के सभी क्षेत्र शामिल किये जाते हैं जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र तथा सार्वजनिक प्रणालियां जैसे कि परिवहन का प्रबंधन, संभारतंत्र, स्वास्थ्य, ऊर्जा, पर्यावरण आदि के प्रचालन सम्मिलित होते हैं. इन सेवा क्षेत्रों में व्यवसाय की वित्तीय व्यवहार्यता और स्थिरता के लिये इनके पेशेवर प्रबंधन की आवश्यकता होती है. ये क्षेत्र अन्य व्यवसायों को ज़रूरी अवसंरचनात्मक सहायता उपलब्ध करवाते हैं. अत: इनका दक्षतापूर्ण प्रबंधन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण है. ऊर्जा और पर्यावरण, परिवहन और संभारतंत्र, स्वास्थ्य देखभाल और अस्पताल प्रबंधन जैसे विषयों का विस्तारित रोजग़ार क्षेत्र है और इन विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों को प्रबंधन के अन्य छात्रों के बराबर का दजऱ्ा मिलना चाहिये.
संभारतंत्र उद्योग के अंतर्गत परिवहन, भण्डारण और विभिन्न प्रकार की आपूर्ति श्रृंखला सम्मिलित है. योजना आयोग की राष्ट्रीय परिवहन नीति विकास समिति ने 15वीं योजना के अंत तक परिवहन क्षेत्र की वृद्धि दर 9.7 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है. ज्यों का त्यों, संभारतंत्र पर होने वाला व्यय जीडीपी का 13 प्रतिशत बैठता है और इसकी वर्तमान वृद्धि दर कऱीब 15 प्रतिशत अथवा जीडीपी वृद्धि दर का दोगुना होने का अनुमान है. यह इस क्षेत्र में गतिविधियों के साथ-साथ निवेश के विस्तार की ओर इंगित करता है.
ऊर्जा क्षेत्र हमारी ऊर्जा ज़रूरतों के नवाचारी अपारंपरिक समाधान लेकर आ रहा है. अनेक ताप विद्युत उत्पादन और वितरण कंपनियों में वृद्धि के अलावा, निकट भविष्य में पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में प्रभावी निवेश किया जायेगा. जलवायु समूह की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र 2020 तक 60 हजार करोड़ रुपये मूल्य तक होने का अनुमान है, और इसमें 1.5 लाख से 2.5 लाख रोजग़ारों का सृजन हो सकता है. इसी प्रकार सौर उद्योग क्षेत्र 2020 तक 32 हजार करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है जिसमें 1.17 से 2.35 लाख के बीच रोजग़ार सृजित हो सकता है और लघु जल विद्युत तथा बायोमॉस सेक्टर के क्रमश: 27 हजार करोड़ रुपये तथा 32 हजार करोड़ रुपये होने की आशा है. इनमें से अधिकतर सरकारी और निजी क्षेत्र में होंगे और इनमें स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे.
हाल के दिनों में प्राकृतिक संसाधानों का सतत तरीके से प्रबंधन ने जनता का ध्यान आकृष्ट किया है और आधुनिक योजना में वनों और जैव विविधता का संरक्षण भी एक महत्वपूर्ण विषयक्षेत्र है. व्यवसाय प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण भाग न केवल पर्यावरणीय कानून की अपेक्षाओं को पूरा करना होता है बल्कि इसे पणधारियों के अनुरूप भी देखा जाता है. अत: आने वाली परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन, वायु और जल प्रदूषण का आकलन तथा प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रण और संरक्षण आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें नये रोजग़ारों का सृजन होने की संभावना है.
हेल्थकेअर भी रोजग़ार सृजन के लिये एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है. अस्पताल, नर्सिंग होम, निदान केंद्र, प्रयोगशालाएं, स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा उपकरण, स्वास्थ्य पर्यटन आदि हेल्थकेअर बिजऩेस का एक बहुत बड़ा हिस्सा है जिसके लिये प्रबंधकीय कौशलों की आवश्यकता है. कुल मिलाकर भारतीय हेल्थकेअर बाज़ार आज 100 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य का हो गया है और इसमें 22.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ 2020 तक इसके 280 अरब अमरीकी डॉलर पर पहुंच जाने की आशा है. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि हेल्थकेअर और अस्पताल प्रबंधकों के लिये रोजग़ार के अवसर कई गुणा होने वाले हैं.
इन विषयों के शिक्षण के लिये प्रबंधन सिद्धांत, बिजऩेस अर्थशास्त्र, प्रबंधकीय सांख्यिकी, लेखाकरण और वित्त, प्रचालन अनुसंधान और सामग्री प्रबंधन जैसे सामान्य विषयों को पढ़ाने के लिये नियमित स्नातकोत्तर शिक्षकों की ही आवश्यकता नहीं होती है बल्कि इन विषयों में पाठयक्रमों की सहायता हेतु बिजनेस प्रशासन के संकाय में शामिल करने के लिये उपयुक्त अकादमिक पृष्ठभूमि और अनुभव रखने वाले उद्योग जगत के विशेषज्ञों की भी आवश्यकता होती है. बिजऩेस स्कूलों को शिक्षाविदों और उद्योग विशेषज्ञों के बीच स्थाई संबंध विकसित करने के लिये ऐसे विशेषज्ञों को परिसरों की तरफ आकर्षित करने के लिये अपने तंत्र को मज़बूत करना चाहिये.
चूंकि निजी क्षेत्र की कंपनियां प्रबंधकीय संवर्ग के पदक्रम में विशेषीकृत ज्ञान रखने वाले अभ्यर्थियों को शामिल करने के लिये आगे आती हैं, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को भी जब वे विज्ञापनों के जरिये खुले बाज़ार से अधिकारियों की भर्ती करते हैं अपेक्षित क्षेत्र में सार्वजनिक प्रणालियों में डिग्री धारण करने वाले को प्राथमिकता देनी चाहिये. इससे नियोक्ताओं को रोजग़ार के दौरान प्रशिक्षण की अवधि घटाने में सहायता मिलेगी.
कलकत्ता विश्वविद्यालय भारत के प्रथम बिजऩेस स्कूल ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वेलफेयर एंड बिजऩेस मैनेजमेंट‘ (आईआईएसडब्ल्यूबीएम) में एमबीए-पीएस की शुरूआत करने वाला प्रमुख संस्थान है. आशा है कि छात्र समुदाय के साथ-साथ संबंधित उद्योग इस कदम का स्वागत करेंगे और इस प्रयास को एक बड़ी सफलता में परिवर्तित करेंगे.
(लेखक आईआईएसडब्ल्यूबीएम कोलकाता में पढ़ाते हैं)