रियो में लड़कियों का विजय दिवस
हरपाल सिंह बेदी
रियो डि जेनेरियो: बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू, पहलवान साक्षी मलिक और जिम्नास्ट दीपा करमाकर ने अपने-अपने संबंधित खेलों में द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ स्थान हासिल करके अपने उत्कृष्ट प्रदर्शनों के साथ खेलों के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया।
ये सभी तीनों खिलाड़ी अपने-अपने खेलों में ओलंपिक में इतना ऊंचा स्थान हासिल करने वाले अब तक के पहले भारतीय बन गये और इन सभी ने पहली बार इन खेलों में हिस्सा लिया था। इन खिलाडिय़ों ने पूरे धैर्य और दृढ़ निश्चय के साथ इस बार के ओलंपिक में भारत को गौरवान्वित किया.
सिंधू ने बैडमिंटन में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया जहां उसने विश्व की नं. 2 खिलाड़ी चीन की यिहान वांग को (22-20-21-19 से) और इसके बाद ऑल इंग्लैंड चैंपियन और विश्व की नंबर 6 नोज़ोमी ओकुहारा को (21-19, 21-10 से) हराकर फाइनल में जगह बनाई। इसके बाद स्वर्ण पदक के लिये दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी कैरोलीना मरीन से 21-19, 12-21, 15-21 से हारने से पहले, उसके रोमांचक मुकाबले को आने वाले दिनों में लंबे समय तक याद किया जायेगा.
आंध्र प्रदेश की 23 वर्षीय लडक़ी पीवी सिंधू ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरो दिया जब लाखों लोग उसका मुकाबला देखने के लिये अपने टेलीविजन सेटों पर चिपके रहे और उसकी सफलता की कामना की। मैच की समाप्ति पर सिंधू ने अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मुझे भारत पर गर्व है, मुझे ओलंपिक रजत पदक हासिल करने पर गर्व है.’’
वह ओलंपिक में रजत जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं, यद्यपि तीन अन्य व्यक्तियों -निशानेबाज़ राज्यवद्र्धन सिंह राठौड़, विजय कुमार और पहलवान सुशील कुमार ने ओलंपिक पदक जीते थे। सिंधू की सफलता ने भारत को पदक तालिका में 57वें स्थान पर ला खड़ा किया.
सिंधू से पहले, पहलवान साक्षी मलिक ने रियो में देश के लिये पहला पदक जीतकर देश के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जिसके बाद भारत का नाम पदक तालिका से जुड़ गया।
साक्षी ने अपने वर्ग में कांस्य पद जीता। खेल के मात्र दो मिनट बचे थे और वह शून्य-5 से पीछे चल रही थी परंतु उसने पूरा दमखम दिखाया और अपनी प्रतिद्वंद्वी तथा एशियाई चैंपियन अलसुलुआ टाइनीबेकोवा (किर्गीस्तान) को हरा दिया। साक्ष्मी ने 8 प्वाइंट हासिल किये और वह रियो में भारत के लिये एक कांस्य पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बन गईं। रियो ओलंपिक में अपना पदक जीतने के बाद उसने कहा, ‘‘मुझे भारत के लिये पहला पदक जीतने पर गर्व है’’।
दीपा करमाकर हालांकि कोई पदक नहीं जीत पाई परंतु उसने भारतीय जिम्नास्टिक्स में इतिहास रचा है क्योंकि उसने व्यक्तिगत स्पर्धा में चौथा स्थान हासिल किया है। दीपा का कद ऊंचा हो गया, क्योंकि उसका नाम तीन पदक विजेताओं: ओलंपिक ऑल राउंडर व्यक्तिगत चैंपियन अमेरिकी सिमोन बिलेज (15.966), रूस की मारिया पासेका (15.253) और स्विटजऱलैंड की गिउलिया स्टिनबर्गर (15.216) के ठीक बाद आया। यह कोई छोटी सफलता नहीं थी। दीपा और उनके कोच बिशेश्वर नंदी ने ओलंपिक के लिये त्रिपुरा की इस लडक़ी के क्वालीफाई करने के उपरांत विदेश में प्रशिक्षण से इन्कार कर दिया था। इस संबंध में उनका कहना था, ‘‘उसने भारत में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद क्वालीफाई किया है अत: अब विदेश में जाने की क्या ज़रूरत है.’’ मामूली अंतर से पदक से चूकने वाले अन्य खिलाडिय़ों में पेईचिंग स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा हैं। बिंद्रा ने 10 मीटर एअर राइफल के फाइनल में पहुंचने का लक्ष्य रखा था परंतु भाग्य ने निर्णायक क्षण में उनका साथ नहीं दिया और वे कोई पदक हासिल नहीं कर पाये.
हालांकि, उसने कोई बहाना नहीं बनाया और कहा कि खेलों में किसी न किसी को तो चौथे स्थान पर आना पड़ता है और यह मेरी बारी थी। मैंने अपने आखिरी ओलंपिक प्रदर्शन में देश के लिये पदक जीतने के लिये कड़ी मेहनत की परंतु ऐसा नहीं हो पाया.‘‘ एक अन्य निशानेबाज़ जितू राज ने भी ज़ोरदार प्रदर्शन किया परंतु 50 मीटर पिस्टल स्पद्र्धा में पदक की आशा बढ़ाने के बाद वह अचानक असफल हो गये। सेना के जवान ने अपनी असफलता के बाद दिल को छूने वाले शब्द कहे-‘‘ऐसा लगता है कि मैंने देश के साथ धोखा किया है’’ । एथलैटिक्स में ललिता बाबर 300 मीटर लंबी बाधा दौड़ के फाइनल के लिये अपना पूरा दमखम दिखाया।
भारतीय दल से ऊंची उम्मीद रखना कोई गलत अपेक्षा नहीं थी। सरकार ने खेलों के लिये क्वालीफाई करने वाले खिलाडिय़ों को सभी सुविधाएं और अवसंरचना उपलब्ध करवाई। उन्हें प्रशिक्षण के लिये विदेश जाने की अनुमति दी गई और उन पर काफी धन खर्च किया गया था।
खेलों के लिये किया गया 118 खिलाडिय़ों का चयन ओलंपिक के लिये अब तक का सबसे बड़ा भारतीय दल था। लंदन में भारत ने 13 खेल क्षेत्रों में भाग लेने के लिये 83 खिलाडिय़ों को भेजा था और रियो खेलों के लिये यह संख्या 15 खेल क्षेत्रों के साथ 118 हो गई। भारत ने एथलैटिक्स, तीरंदाजी, बैडमिंटन, मुक्केबाज़ी, गोल्फ, जिम्नास्टिक्स, हॉकी (पुरुष और महिला), जूडो, रोइंग, निशानेबाज़ी, तैराकी, टेबल टेनिस, टेनिस, भारोत्तोलन और कुश्ती में भाग लिया।
इस बार महिला हॉकी टीम (16) और एथलैटिक्स में 36 खिलाडिय़ों की आश्चर्यजनक संख्या (19 पुरुष और 17 महिलाएं) के कारण दल के सदस्यों की कुल संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गई थी। लंदन के लिये केवल 14 (8 पुरुष और 6 महिलाएं) व्यक्तियों ने ट्रैक और फील्ड स्पद्र्धा के लिये क्वालीफाई किया था.
खेलों में गोल्फ को भी शामिल कर लिया गया और इस बार तीन भारतीय इसमें शामिल हुए जबकि दीपा करमाकर क्वालीफाई करने वाली पहली महिला जिम्नास्ट बन गईं। खेलों से पहले खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) ने मूल्यांकन किया जिससे टीमों की तैयारी में व्यापक निवेश किया गया था जिससे देश को 10 से अधिक पदक हासिल करने की उम्मीद बन गई थी.
लंदन में भारत के पदकों की संख्या छह थी। इनमें दो रजत, विजय कुमार (निशानेबाजी) और सुशील कुमार (कुश्ती) और चार कांस्य पदक शामिल थे। ये पदक सायना नेहवाल (बैडमिंटन), मैरी कॉम (मुक्केबाजी), गगन नारंग (निशानेबाजी), योगेश्वर दत्त (कुश्ती) ने प्राप्त किये। लेकिन रियो के लिये विजय कुमार, सुशील और मैरी कॉम क्वालीफाई नहीं कर पाये थे। 2012 के ओलंपिक खेलों में पदक तालिका में भारत का स्थान 55वां था। पेईचिंग में भारत को पदक तालिका के बोर्ड में एक स्वर्ण और दो कांस्य पदकों के साथ 50वें स्थान पर दर्शाया गया और यदि लंदन में उसनेे एक स्वर्ण भी हासिल हो जाता तो यह सर्वोच्च 40 राष्ट्रों में स्थान पा लेता.
भारतीय खेल प्राधिकरण के महानिदेशक इनजिति श्रीनिवास ने कहा था, ‘‘भारत के दो अंकों की पदक तालिका हासिल करने का हमारा अनुमान एथलीटों के मूल्यांकन पर आधारित था जिन्होंने खेलों के लिये क्वालीफाई किया है। हालांकि उन्होंने आगे कहा, ‘‘उस खास दिन को क्या कुछ घटित होना है इसका अनुमान हम नहीं लगा सकते परंतु हमें इस लक्ष्य को हासिल करना चाहिये.’’
‘‘परंतु पूरे जोश के साथ प्रवेश करते हुए हमें दोहरे अंक के प्रदर्शन की आशा है। इससे नीचे कुछ भी निराशाजनक होगा.’’ खेलों की शुरूआत के साथ ही सभी की आंखें अत्यधिक ख़र्चीली स्पद्र्धा के 12 सदस्यीय निशानेबाज़ी टीम पर टिकी थीं और यह पूरी तरह फ्लॉप हो गई और एक भी पदक नहीं जीत पाई.
2004 में एथेंस खेलों में निशानेबाज़ (अब माननीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री) राज्यवद्र्धन सिंह राठौड़ ने रजत पदक जीता था और अभिनव बिंद्रा 2008 में पेईचिंग में स्वर्ण पदक जीत कर खेलों को नये शिखर तक ले गये। लंदन में विजय कुमार और गगन नारंग ने क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीते थे। खेलों से पहले नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) के अध्यक्ष रनिन्दर सिंह ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि इस बार निशानेबाज़ काफी बेहतर प्रदर्शन करेंगे.’’ 2004 के एथेंस ओलंपिक्स से लेकर निशानेबाज़ ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले तीन ओलंपिक में हमने एक स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पद हासिल किया है। मेरे विचार में हम इस बार काफी बेहतर कर पायेंगे। लेकिन फ्लॉप शो के तुरंत बाद रनिन्दर सिंह ने कहा, ‘‘मैं इस प्रदर्शन की स्वयं जि़म्मेदारी लेता हूं। मैं जानता हूं देश के लोगों में इस बात की गहरी निराशा है कि निशानेबाज बगैर पदक लौट रहे हैं, ’’ हम निशानेबाज़ों के प्रदर्शन और पदक जीतने में हमारी विफलता पर विचारमंथन करेंगे.
इस बार के दल में शामिल हॉकी भी एक अन्य ख़र्चीली टीम थी और यह भी आशाओं पर खरी नहीं उतरी। खेलों से पहले लंदन में चैंपियन्स ट्राफी में पूर्व विजेता को पहली बार पछाडऩे के बाद, प्रशंसकों और समर्थकों को आशा थी कि पी.आर। श्रीजेश के नेतृत्व में टीम 36 वर्षों के अंतराल के बाद दमखम दिखायेगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। भारत ने अपना हॉकी अभियान आयरलैंड को हराते हुए शुरू किया था, परंतु इसके बाद वह अंतिम विजेता अर्जेन्टीना से मैच हराने से पहले जर्मनी, हालैंड के आगे टिक नहीं पाया और इसके बाद क्वार्टर फाइनल में कनाडा के साथ लीग चैंपियन का ड्रॉ खेला। भारत बेल्जियम से 1-3 से हार गया और भारत का सपना चूर चूर हो गया.
मुख्य कोच रोनल्ट ओल्टमन्स प्रतिक्रिया के लिये तैयार थे। उनके अनुसार बेल्ज्यिम का ऊर्जा स्तर बहुत ऊंचा था। हम लंदन की तरह (जून में चैंपियन ट्राफी के दौरान) क्वालिटी नहीं ला पाये। खिलाड़ी काफी तनाव और दबाव में थे। बेल्जियम ने इसका फायदा उठाया और उन्हें जीत मिलनी भी चाहिये थी.’’
‘‘आपको यह देखना होगा कि हम कहां से आते हैं। प्रतिस्पद्र्धा में हमारी सबसे युवा टीम है और उनमें से ज्यादातर के लिये यह अपनी तरह का पहला अनुभव है। आपको इस स्तर का खेल जीतने के लिये अनुभव की आवश्यकता होती है.’’ जब क्वार्टर फाइनल होता है, यह करो या मरो जैसी स्थिति होती है और इसके लिये हमें सुधार की आवश्यकता है। हमें खुशी है कि टीम क्वार्टर फाइनल में पहुंची है, परंतु टीम में इससे आगे बढऩे की क्षमता थी। यह हमारे लिये बहुत बुरा है और मैं निराश हूं.’’ उन्होंने आगे कहा ‘‘ हम पूरे दबाव के साथ खेले, परंतु मैंने सदैव कहा है कि पूर्ण दबाव एक प्रकार का झांसा है। अंतर हमेशा होता है। खेल में बाद में हमने पूर्ण दबाव बनाने की कोशिश की और यहां तक कि गोलकीपर को बाहर निकाल लिया,’’ ‘‘ हमने अंतर को पाटने की कोशिश की और अनेक हमले करने की कोशिश की परंतु तीसरे क्वार्टर फाइनल में हमें मुश्किल से एक भी हमला दिखाई नहीं दिया। इसी का हमारे अंदर अभाव है.’’ महिला हॉकी टीम, जिसने 36 वर्षों के बाद क्वालीफाई किया था ग्रुप बी में ही सिमट कर रह गई। इसने जापान के साथ मैच ड्रा किया परंतु आगे के चार मुकाबले अमरीका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अर्जेन्टीना से हार गई।
बड़ी संख्या में खिलाडिय़ों के क्वालीफाई करने, विशेषकर समयसीमा के एकदम आखिर में उनके चयन से विशेषज्ञ चौंक गये थे। बंगलुरू के श्री कांतिरवा स्टेडियम में मात्र दो दिनों में (जुलाई 10 और 11) पुरुर्षों और महिलाओं की 4x400 मीटर रिले, पुरुर्षों के ट्रिपल जंप, पुरुर्षों की 200 मीटर और पुरुर्षों की 800 मीटर स्पद्र्धा के लिये कम से कम 13 एथलीटों ने अपने स्थान पक्के कर लिये। ललिता बाबर, जो फाइनल में जगह बना पाई तथा मनीष सिंह रावत और दूती चांद जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन दिखाया था, को छोडक़र अन्य प्रतियोगियों ने ओलंपिक के लिये अर्हता की प्रक्रिया में विश्वनीयता को नहीं बढ़ाया था। ऐसा नहीं है कि इन सभी एथलीटों से पदक जीतने वाले प्रदर्शन की आशा थी परंतु इनमें से अधिकतर अपने स्वयं के क्वालीफाइंग रिकार्ड से भी मिलान के लिये सुधार में पिछड़ गये थे। रावत ने पुरुर्षों की 20 कि.मी। की चाल में ओलंपिक रिकार्ड धारक डिंग चैन से आगे 1:21:21 के समय में 13वां स्थान हासिल किया था, जबकि दूती ने महिलाओं की 100 मीटर की क्वालीफाइंग स्पद्र्धा में अपने क्रम में सातवां और कुल मिलाकर 50वां स्थान हासिल किया था। गुरमीत सिंह और कृष्णनन गणपति तीन चेतावनियों के बाद अयोग्य घोषित कर दिये गये थे। डिस्कस थ्रोअर विकास गौड़ा ने बहुत निराशाजनक प्रदर्शन किया क्योंकि वह यहां तक कि 50 मीटर बाधा को भी पार नहीं कर पाया था। उसका उत्कृष्ट थ्रो 58.99 मीटर का था जो उसने दूसरे प्रयास में हासिल किया और यह उनके व्यक्तिगत श्रेष्ठ प्रदर्शन से काफी नीचे था.
विकास अपने चौथे सीधे ओलंपिक प्रदर्शन में कुल 34 प्रतियोगितयों में से 28 को पीछे छोड़ते हुए 58.99 मीटर का उत्कृष्ट थ्रो हासिल करने में सफल रहा। उन्होंने ग्रुप बी क्वालीफाइंग राउंड में 18 के फील्ड में 16वां स्थान हासिल किया। गौड़ा, जिनके पास 86.28 मीटर का राष्ट्रीय रिकॉर्ड था, ने 57.59 मीटर थ्रो से शुरूआत की थी और एक से अधिक मीटर के सुधार के साथ 58.99 मीटर का लक्ष्य हासिल किया। इससे पहले अपने तीसरे और आखिरी प्रयास में उसने 58.70 मीटर तक थ्रो किया। गौडा़ ने कहा, ’’ आज मेरा प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था। यह निराशाजनक है। इस साल मैंने कई बार दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा और बहुत सी चोटें भी आईं। मैं तीसरे और चौथे सप्ताह पहले तक प्रशिक्षण प्राप्त करने में समर्थ नहीं था। जाहिर तौर पर तैयारी के लिये पर्याप्त समय नहीं था। मेरे दोनों घुटने क्षतिग्रस्त हो गये थे। मुझे ट्रेनिंग से ब्रेक लेना पड़ा और पर्याप्त समय नहीं मिल पाया.’’
महिला शॉट-पुटर मनप्रीत कौर जिनके पास 17.96 मीटर का राष्ट्रीय रिकार्ड है उत्कृष्ट 17.06 मीटर के उत्कृष्ट थ्रो के साथ 35 प्रतियोगियों में 23 को हराया। वह ग्रुप बी क्वालीफाइंग राउंड में 13वें स्थान पर आईं। पुरुर्षों की 800 मीटर की दौड़ में जिनसन जॉन्सन अपने 1:47:27 सेकिंड में पंाचवें स्थान पर रहते हुए सेमीफाइनल के लिये क्वालीफाइ करने में असफल रहे। दौड़ के दौरान जॉनसन को उनके साथी धावक ने टांग पर हिट किया वह थोड़ी देर बाद संभले तथा 50 प्रतियोगियों के बीच 25वें स्थान पर फिसल गये.
जॉनसन पिछले महीने बंगलुरू में इंडियन ग्रां प्री के दौरान 1:45:98 के साथ प्रख्यात धावक श्रीराम सिंह के बाद एक दूसरे सबसे तेज़ भारतीय धावक के तौर पर दूसरे स्थान पर रहा था। पुरुषों की 400 मीटर की स्पर्धा के पहले दौर में मो। अनास ने अपने क्रम में छठे और ओवरऑल 31वें स्थान के लिये 45.95 सेकिंड का समय लिया। प्रत्येक हीट में सर्वोच्च 3 प्रदर्शक, तदुपरांत अगले तीन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शकों के तौर पर अगले राउंड में प्रवेश कर गये। 800 मीटर में टिंटु लुका का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और 29वें स्थान पर रहा। लंबी कूद क्वालीफायर अंकित शर्मा ने दो फाउल्स के साथ शुरूआत की। उसने अपने तीसरे और अंतिम प्रयास में 7.67 के स्कोर तक विस्तारित किया और ओवरऑल 24वां स्थान हासिल किया। टेनिस में पुरुर्षों के वर्ग में पेस और बोपन्ना और महिलाओं के वर्ग में सानिया मिर्जा तथा प्राथरथाना थोम्बरे महिला डबल्स के पहले राउंड में बाहर हो गये। जबकि मिक्स्ड डबल्स में सानिया और बोपन्ना सेमीफाइनल में हारकर बाहर हो गये।
चार टेबल टेनिस खिलाड़ी, दो भारोत्तोलक, दो तैराक और एक जूडो ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी क्योंकि अपनी संबंधित ओलंपिक प्रतियोगिता से बिना कोई परचम लहराये बाहर हो गये। रोइंग में दत्तु बबन भोकानाल ने अपनी सीमाओं के भीतर बेहतरीन प्रदर्शन किया। तीरंदाजी में महिलाओं की टीम ने क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के लिये बेहतर प्रदर्शन किया परंतु शूटआउट में रूस से हार गई। व्यक्तिगत स्पद्र्धाओं में वे असफल रहे.
मक्केबाजी में शिवा थापा (54 कि.ग्रा.) पहले राउंड में बाहर हो गये, मनोज कुमार (64 कि.ग्रा.) दूसरे राउंड में और विकास कृष्णनन (75 कि.ग्रा.) तीसरे राउंड में हार गये।
गोल्फ खिलाड़ी एसएसपी चौरसिया और आनिर्बान लाहिड़ी मैदान में कोई छाप नहीं छोड़ पाये। यद्यपि भारत को खेलों की समाप्ति से दो दिन पहले उस वक्त बड़ा झटका लगा जब कोर्ट ऑफ आर्बिटे्रशन फॉर स्पोट्र्स (सीएएस) ने पहलवान नरसिंह यादव पर चार वर्ष के लिये प्रतिबंध लगा दिया। सीएएस ने विश्व डोपिंग विरोधी एजेंसी वाडा की अपील को सही ठहराया जिसने उनकी क्लीयरेंस पर सवाल उठाया था, और नरसिंह यादव का चार वर्ष के लिये निलंबन तय कर दिया। सीएएस ने आगे निर्णय सुनाया कि नरसिंह द्वारा 25 जून 2016 से और इस तिथि सहित सभी प्रतियोगिताओं के परिणाम, सभी परिणामी दुष्प्रभावों के साथ (पदकों, प्वाइंटस और पुरस्कारों की जब़्ती सहित) अयोग्य हो जायेंगे।
(लेखक नई दिल्ली स्थित एक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं)