रोज़गार परामर्श
 
  
खगोल-भौतिकी में रोजगार के अवसर

वायुमंडल तथा अंतरिक्ष अध्ययन सबसे पुराने विज्ञानों में से एक है। भारत में अंतरिक्ष विज्ञान का विकास भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) के साथ होता रहा है, जिसमें चंद्रमा अनुसंधान पर बल दिया गया है और भारत अगले वर्ष एस्ट्रोसेट-एक मल्टीवेवलेंथ खगोलविज्ञान
उपग्रह प्रक्षेपित कर रहा है। संचार, मैपिंग तथा शिक्षा के लिए उपग्रह निर्माण सभी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम के भाग हैं। इसरो (आईएसआरओ) ने चन्द्रमा अन्वेषक-चंद्रयान के लिए भी योजनाएं बनाई हैं। सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) क्रांति ने भी अंतरिक्ष विज्ञान में प्रगति की वृद्धि में एक भूमिका निभाई है। अंतरिक्ष विज्ञान बाहरी अंतरिक्ष तथा संबंधित प्रौद्योगिकी की खोज के संबंध
में मानव की प्रगति से संबद्ध है। यह भौतिकी, यांत्रिक इंजीनियरी, सामग्री विज्ञान, रसायनविज्ञान, जीवविज्ञान, औषधि, मनोविज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान तथा वैज्ञानिक ज्ञान जैसे अन्य क्षेत्रों मे विभिन्न विषयों का मिश्रण है। भौतिकी के एक उप-क्षेत्र, के रूप में इसे आगे कई शाखाओं में विभाजित किया गया है, जो साथ ही साथ ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाती है। कुछ व्यक्ति खगोलविज्ञान को एक छत्र के रूप में मानते हैं जबकि कुछ व्यक्ति खगोलभौतिकी को ऐसा पारिभाषिक शब्द मानते हैं, जिसमें सभी संबंधित क्षेत्र निहित हैं। तथापि, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के प्रोफ़ेसर जयंत मूर्ति स्पष्ट करते हैं कि यद्यपि खगोलविज्ञान एवं खगोल भौतिकी किसी समय एक-दूसरे से भिन्न माने जाते थे, किंतु इनका अब अंतर-परिवर्तनीय रूप में उपभोग किया जाता है। विभिन्न शाखाएं खगोल-विज्ञान सितारों, ग्रहों, धूमकेतुओं तथा गैलेक्सी जैसी खगोलीय वस्तुओं व पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर
विद्यमान तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन है। भौतिकी के उपयोग के माध्यम से खगोलविज्ञान ब्रह्मांड के विकास को स्पष्ट करता है और ध्वनि गणितीय अनुरूपण के माध्यम से इसके विकास का पूर्वानुमान लगाता है। खगोलभौतिकी खगोलीय पिंडों से तथा खगोलीय पिंडों के अंतरंग में और अंतरातारकीय अंतरिक्ष में सामग्री एवं रेडिएशन के बीच पारस्परिक प्रभाव से संबद्ध है। इसे प्रेक्षण एवं सैद्धांतिक खगोल भौतिकी में विभाजित किया जा सकता है। ब्रह्मांडविज्ञान खगोलभौतिकी और कण-भौतिकी का सम्मिश्रण है। यह ब्रह्मांड की संरचना, उद्भव एवं विकास का अध्ययन है। ब्रह्मांडविज्ञानी समझना चाहते हैं कि ब्रह्मांड सत्ता में कैसे आया, इसका अपना मार्ग क्यों हैं और इसने क्या भविष्य संजोए रखा है। खगोल रसायनविज्ञान खगोलविज्ञान और सायनविज्ञान का सम्मिश्रण है, जो ब्रह्मांड तथा इसके अंश के रासायनिक संघटन तथा विकास से संबंधित है। यह बाहरी अंतरिक्ष में पाए गए रासायनिक तत्वों और उनके अंतर-प्रभावों का अध्ययन है। खगोलभूविज्ञान ऐसा विज्ञान है जो ग्रहों, तारों, उपग्रहों, ग्रहिका, धूमकेतुओं और उल्कापिंडों सहित सौर प्रणाली में सभी ठोस पिंडों की संरचना और संघटन से संबंधित है। खगोलमौसमविज्ञान खगोलविज्ञानीय पिंडों तथा पृथ्वी के वायुमंडल पर बलों सैद्धांतिक प्रभावों का अध्ययन है। खगोलमिति खगोलविज्ञान की वह शाखा है जो खगोलीय पिंडों की अवस्थिति तथा गति के यथार्थ मापन से संबंधित है। खगोलमिति मापन से प्राप्त सूचना सौर प्रणाली तथा हमारी गैलेक्सी आकाश गंगा के समसामयिक अनुसंधान में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। खगोलजीवविज्ञान पृथ्वी के वायुमंडल से परे अन्य ग्रहों पर जीवन का अध्ययन है। यह खगोलविज्ञान,भूविज्ञान एवं जीवविज्ञान के पहलुओं को जोड़ता है। प्रकाश-खगोलविज्ञान प्रकाश समूह का अध्ययन प्रकाश-खगोलविज्ञान कहलाता है। रेडियो खगोलविज्ञान रेडियो बैंड का अध्ययन रेडियो खगोलविज्ञान कहलाता है। तात्पर्य अंतरिक्ष उड़ानों तथा खोज की कल्पना अभी जीवित है, किंतु एक शैक्षिक तथा अनुसंधान उन्मुखी कॅरिअर को अभी कइयों को आकर्षित करना शेष है। युवा-वर्ग अंतरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में जाने के बजाय सामान्यतः अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए या राष्ट्रीय वैमानिकी अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) में जाने के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ते हैं। इसलिए अनुसंधान करने के लिए ब्रह्मांड के आश्चर्यों के प्रति लगाव के अतिरिक्त वैज्ञानिक स्वभाव भी होना चाहिए। वर्तमान में विज्ञान प्रतिभावान युवा-वर्ग के अभाव का सामना कर रहा है, क्योंकि वे बेहतर वेतन के कार्य चुन रहे हैं। तथापि भारतीय अंतरिक्ष
अनुसंधान संगठन (इसरो) को अपने अभियान को पूरा करने तथा इन सुविधाओं के भविष्य के लिए विज्ञान तथा इंजीनियरी प्रतिभाओं की आवश्यकता होगी।
पात्रता
यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां शैक्षिक कौशल जैसी या शायद उससे भी अधिक अभिरुचि ज्यादा महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क की वैज्ञानिक प्रवृत्ति तथा खोज की आकांक्षा होना प्राथमिक आवश्यकता है। यदि आप इसमें जिज्ञासा तथा रुचि रखते हैं तो आप आधी जंग जीत चुके हैं। अन्य तकनीकी योग्यता के साथ-साथ जमा दो (+२)स्तर पर तथा स्नातक स्तर पर भौतिकी एवं गणित विषय होना अनिवार्य है। अंतरिक्ष विज्ञान में कॅरिअर के लिए छात्रों को सामान्यतः भौतिकी, गणित एव इंजीनियरी तकनीकों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। उम्मीदवार से मान्यतः भौतिकी/इलेक्ट्रॉनिकी आदि में बी.ई. या बी.एससी. डिग्री धारक हों। सैद्धांतिक गोलविज्ञान में कॅरिअर के इच्छुक व्यक्ति भौतिकी अथवा गणित में विज्ञान स्नातक की डिग्री प्राप्त कर सकते हैं, जबकि प्रायोगिक खगोलविज्ञान में कॅरिअर के इच्छुक व्यक्ति दस जमा दो (१०+२) के बाद वैद्युत/इलेक्ट्रॉनिकी/वैद्युत संचार मे इंजीनियरी स्नातक डिग्री प्राप्त कर सकते हैं। सैद्धांतिक एवं प्रेक्षण खगोलविज्ञान सहित भौतिकी, खगोल-भौतिकी, वायुमंडलीय एवं अंतरिक्ष विज्ञान/गणित/सैद्धांतिक कम्प्यूटर विज्ञान में पी.एचडी. करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए सामान्यतः फरवरी या मार्च में संयुक्त प्रवेश जांच परीक्षा (जेस्ट) आयोजित की जाती है। भौतिकी में स्नातकोत्तर या इंजीनियरी में प्रौद्योगिकी मास्टर या इंजीनियरी स्नातक छात्र जेस्ट में बैठने के पात्र हैं। परीक्षा में मल्टीपल च्वायज ऑबजेक्टिव प्रकृति के प्रश्न होते हैं, जिसमें भौतिकी विषय के सामान्य क्षेत्र शामिल होते हैं। परीक्षा मे वैज्ञानिक कौशल, विषय के ज्ञान तथा समस्या सुलझाने की क्षमता की जांच की जाती है। अधिकतम आबंटित अंक १५० होते हैं। ५० प्रश्नों के लिए इन अंकों को समान विभाजित किया जाता है और गलत उत्तर के अंक काटे जाते हैं। परीक्षा के लिए आबंटित समय ३ घंटे का होता है। जेस्ट के परिणाम के आधार पर संस्थान उम्मीदवारों को, संबंधित संस्थाओं से अनुसंधान अध्येतावृत्ति प्राप्त करने हेत सीमित संख्या में बुलाते हैं। यदि आप यांत्रिक इंजीनियर हैं तो इस क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए आप अत्यधिक योग्य उम्मीदवार हैं। उदाहरण के लिए तारों का अध्ययन करने के लिए उपकरण अपेक्षित होते हैं। ऐसे उपकरणों के निर्माण के लिए इंजीनियरी पृष्ठभूमि होना आवश्यक है, जो सामग्रियों के बारे में सूचना देंगे। इसी तरह तारों के प्रकाश
का ध्रुवण एक पोलरीमीटर का उपयोग करके मापा जा सकता है। ऐसे उपकरणों के निर्माण में यांत्रिक इंजीनियरों के मिले-जुले प्रयास शामिल होते हैं। भारत में खगोलविज्ञान से जुड़े कई अच्छे संस्थान हैं। यदि इन संस्थानों में कोटिपूर्ण छात्र नियमित रूप से उपलबध रहे तो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत अग्रणी हो सकता है। छात्रों को इन संस्थानों में प्रवेश के प्रयास करने चाहिए क्योंकि अनुसंधान के लिए ये संस्थान विश्व श्रेणी की सुविधाएं देते हैं, जो संपूर्ण मानव-जाति के लिए निश्चय ही उपयोगी होगा। पुणे विश्वविद्यालय अंतरिक्ष विज्ञान में एम.एससी. पाठ्यक्रम
चलाता है, जिनमें से कुछ पाठ्यक्रम इसरो द्वारा प्रायोजित होते हैं।इसरो ने हाल ही में तिरुवनंतपुरम में एवं अंतरिक्ष विज्ञान/गणित/सैद्धांतिक कम्प्यूटर विज्ञान में पी.एचडी. करने के इच्छुक व्यक्तियों
के लिए सामान्यतः फरवरी या मार्च में संयुक्त वेश जांच परीक्षा (जेस्ट) आयोजित की जाती है। भौतिकी में स्नातकोत्तर या इंजीनियरी मे प्रौद्योगिकी मास्टर या जीनियरी स्नातक छात्र जेस्ट में बैठने के पात्र हैं। परीक्षा में मल्टीपल च्वायज ऑबजेक्टिव प्रकृति के प्रश्न होते हैं, जिसमें भौतिकी विषय के सामान्य क्षेत्र शामिल होते हैं। परीक्षा मे वैज्ञानिक कौशल, विषय के ज्ञान तथा समस्या सुलझाने की क्षमता की जांच की जाती है। अधिकतम आबंटित अंक १५० होते हैं। ५० प्रश्नों के लिए इन अंकों को समान विभाजित किया जाता है और गलत उत्तर के अंक काटे जाते हैं। परीक्षा के लिए आबंटित समय ३ घंटे का होता है। जेस्ट के परिणाम के आधार पर संस्थान उम्मीदवारों को, संबंधित संस्थाओं से अनुसंधान अध्येतावृत्ति प्राप्त करने हेत सीमित संख्या में बुलाते हैं। यदि आप यांत्रिक इंजीनियर हैं तो इस क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए आप अत्यधिक योग्य उम्मीदवार हैं। उदाहरण के लिए तारों का अध्ययन करने के लिए उपकरण अपेक्षित होते हैं। ऐसे उपकरणों के निर्माण के लिए इंजीनियरी पृष्ठभूमि होना आवश्यक है, जो सामग्रियों के बारे में सूचना देंगे। इसी तरह तारों के प्रकाश का ध्रुवण एक पोलरीमीटर का उपयोग करके मापा जा सकता है।
ऐसे उपकरणों के निर्माण में यांत्रिक इंजीनियरों के मिले-जुले प्रयास शामिल होते हैं। भारत में खगोलविज्ञान से जुड़े कई अच्छे संस्थान हैं। यदि इन संस्थानों में कोटिपूर्ण छात्र नियमित रूप से उपलबध रहे तो अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत अग्रणी हो सकता है। छात्रों को इन संस्थानों में प्रवेश के प्रयास करने चाहिए क्योंकि अनुसंधान के लिए ये संस्थान विश्व श्रेणी
की सुविधाएं देते हैं, जो संपूर्ण मानव-जाति के लिए निश्चय ही उपयोगी होगा। पुणे श्वविद्यालय अंतरिक्ष विज्ञान में एम.एससी. पाठ्यक्रम चलाता है, जिनमें से कुछ पाठ्यक्रम इसरो द्वारा प्रायोजित होते हैं। इसरो ने हाल ही में तिरुवनंतपुरम मे एक नया संस्थान प्रारंभ किया है, जो विभिन्न आईआईटी के छात्रों के लिए खुला है। इसका लक्ष्य विज्ञान पर नहीं, बल्कि इसरो की आवश्यकता के लिए इंजीनियरों को प्रशिक्षित करना है। कई ऐसे पाठ्यक्रम भी हैं, जिनके पूरा होने पर छात्रों को खगोलविज्ञान में प्रमाणपत्र प्रदान किए जाते हैं। बंगलौर में सेंट जोसेफ़ तथा बिरला आधारभूत अनुसंधान संस्थान में केवल प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम हैं। अन्य शहरों में ये भिन्न हो सकते है तथा स्थानीय तारामंडल इस दृष्टि से श्रेष्ठ स्थान हो सकते हैं। कालीकट विश्वविद्यालय की तरह बंगलौर विश्वविद्यालय खगोलविज्ञान में एम.एससी. चलाता है। ये विश्वविद्यालय सामान्यतः पी.एचडी. कार्यक्रम भी चलाते हैं। भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (आईआईए), अंतर-विश्वविद्यालय खगोलविज्ञान
और खगोल भौतिकी केंद्र, एआरआईईएस, टाटा आधारभूत अनुसंधान संस्थान, एस.एन. बोस आदि जैसे विशेषज्ञतापूर्ण संस्थान और भारतीय विज्ञान संस्थान और कुछेक आई.आई.टी पी.एचडी. के लिए छात्रों को प्रवेश देते हैं। आई.आई.ए. एम. एससी. या बी.ई./बी.टेक छात्रों को लेते हैं। यद्यपि स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तथा अनुसंधान सुविधा देने वाले कई संस्थान हैं, किंतु अधिस्नातक पाठ्यक्रम चलाने वाली संस्थाए बहुत कम हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं: डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद; शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापुर, लखनऊ विश्वविद्यालय और चेन्नई विश्व-विद्यालय।
संभावनाएं : खगोल-भौतिकी में कोई पाठ्यक्रम करने के बाद कोई भी व्यक्ति कई अनुसंधान संस्थानों तथा सरकारी संगठनों में अनुसंधान वैज्ञानिक लग सकते हैं। अनुसंधान कार्य के दौरान वे रु. ८००० से रु. ९००० मासिक वृत्तिका तथा अन्य अनुदान एवं सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं। अनुसंधान कार्य पूरा करने के बाद विभिन्न संस्थानों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। विभिन्न सरकारी निकाय भी खगोल -विज्ञानियों को वैज्ञानिकों के रूप में भर्ती करते हैं और उन्हें उच्च वेतन तथा अन्य अनुलाभ एवं भत्ते दिए जाते हैं।

  

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