रोज़गार परामर्श
 
  
अर्द्ध-चिकित्सा व इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों में कॅरिअर

रोग के निदान और इलाज में अर्द्ध-चिकित्सा विज्ञान या संबर्द्ध स्वास्थ्य विज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रोग निदान से संबंधित औजार जैसे कि सूक्ष्मदर्शी यंत्रा, एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड, इंडोस्कोप, सीटी, एमआर, गामा कैमरा तथा अन्य इन्वेसिव या नॉन-इन्वेसिव पद्धतियाँ और तकनीकी प्रकार की थेरेपियां जैसे कि पिफजियोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, श्वासक्रिया थेरेपी, स्पीच थेरेपी आदि अर्(-चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा हैं। आयुर्विज्ञान और संश्लिष्ट चिकित्सा उपकरणों के विकास के साथ-साथ प्रशिक्षित और सुयोग्य अर्द्ध(- चिकित्सकीय मानवशक्ति की मांग भी बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यू.एच.ओ. की सिफारिशों के अनुसार चिकित्सक-जनसंख्या का अनुपात 1:1000 होना
चाहिए। एक चिकित्सक को न्यूनतम 8 सहायक स्वास्थ्य कार्मिकों की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ हुआ कि भारत को 12 लाख से अधिक चिकित्सकों और करीब 96 लाख सहायक कर्मचारियों की आवश्यकता है। वर्तमान में हमारे पास केवल 4 लाख चिकित्सक हैं। सहयोगी कार्मिकों की संख्या भी अपर्याप्त है। हेल्थकेअर विज्ञान एक व्यापक और विविधताओं से भरा क्षेत्रा है। चिकित्सा के क्षेत्रा में प्रौद्योगिकी के बढ़ते इस्तेमाल के परिणाम-स्वरूप इस क्षेत्रों में बड़ी संख्या में विशेषज्ञता, उप-विशेषज्ञता तथा सुपर विशेषज्ञता क्षेत्रों का विकास हुआ है। पहले से ही समाज नर्सों, पफार्मासिस्टों तथा
प्रयोगशाला प्रौद्योगिकीविदों की भूमिका और महत्व से परिचित है। इसके अलावा अर्(-चिकित्सा क्षेत्रा और संब( क्षेत्रा में 50 से अधिक विशेषज्ञता क्षेत्रा हैं जो पूर्णतः रोजगारोन्मुख हैं तथा इनमें रोजागार की जबरदस्त संभावनाएं हैं। इस बारे में कोई भी फैसला लेने से पूर्व अर्(-चिकित्सा विज्ञान की विशिष्ट व्यावसायिक भूमिका तथा आवश्यकताओं की जानकारी होना बहुत महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्रों में निम्नलिखित प्रमुख आधुनिक विशेषज्ञता क्षेत्र हैं :-
1. मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन :
मेडिकल ट्रांसक्रिप्शनिस्ट को चिकित्सकों और अन्य विशेषज्ञों द्वारा लिखवाए गए चिकित्सा
रिकार्ड को उसकी विषय-वस्तु से छेड़छाड़ किए बगैर ट्रांसक्राइब करना होता है। इसके लिए वे टेप,
डिजिटल प्रणाली या वॉयस-मेल से डिक्टेशन प्राप्त करते हैं। लिखवाई गई रिपोर्टों को समझने
तथा पाठक के लिए स्पष्ट और व्यापक रूप में सही तरह ट्रांसक्राइब करने के लिए मेडिकल
ट्रांसक्रिप्शनिस्ट को चिकित्सा शब्दावली, शरीर-विज्ञान, निदान प्रक्रिया तथा औषध्-विज्ञान
और इलाज मूल्यांकन की अच्छी समझ होनी चाहिए। उनमें चिकित्सा से संबंध्ति विशिष्ट
शब्दावली और संक्षिप्ताक्षरों को विस्तारित रूप में अनूदित करने की भी योग्यता होनी चाहिए। साथ
ही आप में अच्छा श्रवण कौशल और भाषा कौशल, कम्प्यूटर कौशल के साथ-साथ कार्य को सम्पन्न करने के लिए सहनशीलता भी होनी चाहिए। यदि वे कार्य की हार्ड प्रति तैयार करने तथा रिकार्ड का रखरखाव करने संबंधी कार्य करते हैं तो उन्हें चिकित्सा रिकार्ड अधिकारी के रूप में जाना जाएगा।
एक अनुभवी मेडिकल ट्रांसक्रिप्शनिस्ट को अस्पतालों, चिकित्सा पुस्तकालयों, ट्रांसक्रिप्शन सेवा केंद्रों, सरकारी सुविध केंद्रों आदि में रोजगार प्राप्त हो सकता है। वे अपने घर पर भी ट्रांसक्रिप्शन कार्य कर सकते हैं। वे स्वास्थ्य सूचना प्रशासकों के पद के लिए भी पात्रा होंगे। मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन में कॅरिअर शुरू करने के लिए आप ट्रांसक्रिप्शन प्रौद्योगिकी, मेडिकल रिकार्ड प्रौद्योगिकी, चिकित्सा प्रलेखीकरण,
स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी में से कोई भी कोर्स कर सकते हैं। ये पाठ्यक्रम डिप्लोमा, डिग्री और
स्नातकोत्तर स्तर पर उपलब्ध् हैं।
2. स्वास्थ्य निरीक्षक :
जन स्वास्थ्य निरीक्षक जन स्वास्थ्य टीम और कार्यान्वयन व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग होता है।
स्वास्थ्य निरीक्षक की भूमिका में बीमारियों को पफैलने से रोकना, शिक्षा, परामर्श, निरीक्षण और
निगरानी तकनीकों के जरिए स्वास्थ्य को प्रोत्साहन और पर्यावरण में सुधर करना है। इससे जुड़े
सुरुचिपूर्ण क्षेत्रों में शामिल हैं :- खाद्य स्वास्थ्य विज्ञान, कीट और कृन्तक नियंत्राण, संचारी रोग
जांच, सार्वजनिक आवास, सामुदायिक देखभाल सुविधएं, सार्वजनिक मनोरंजक सुविधएं, जलापूर्ति
और कचड़ा निपटान प्रणाली, ऑक्यूपेशनल हेल्थ एवं सुरक्षा और पर्यावरण प्रदुषण-वायु, ध्वनि,
मृदा तथा जल। उन्हें जन स्वास्थ्य की सुरक्षा और उसमें सुधर के वास्ते व्यापक योजनाओं के
विकास में नेतृत्व तथा तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करनी चाहिए. जन-स्वास्थ्य निरीक्षक के रूप में आपका यह दायित्व है कि आप स्वास्थ्य से जुड़े कानूनों को लागू करते हुए सुविधओं की निगरानी के साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा करें। स्वास्थ्य निरीक्षक विषय से जुड़े पाठ्यक्रम डिप्लोमा स्तर पर उपलब्ध् हैं। छात्रा डिप्लोमा, डिग्री और स्नातकोत्तर स्तरों पर जन स्वास्थ्य प्रशासन एवं
प्रबंध्न में भी कोर्स कर सकते हैं।
3. बायो-मेडिकल इंजीनियरिंग :
बायो-मेडिकल इंजीनियर के रूप में आप चिकित्सा और स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं के हल के लिए इंजीनियरी सिद्धांतों का प्रयोग करेंगे। बायो-मेडिकल इंजीनियरिंग या बायो- मेडिकल इंस्ट्रन्नमेंटेशन टेक्नोलॉजी अंतर-विषयक क्षेत्रा हैं। इसके अंतर्गत भौतिक, रासायनिक,
गणितीय, अभिकलनीय और इंजीनियरी विज्ञान क्षेत्रा आते हैं। इससे जीवविज्ञान चिकित्सा,
व्यवहार, मनोविज्ञान आदि की संक्षिप्त रूप में समझ प्राप्त होती है। आपको कृत्रिम हृदय,
डायलिसिस मशीन, सर्जिकल लेजर आदि चिकित्सा उपकरण तैयार करने के वास्ते जीवन
विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों, कैमिस्ट और चिकित्सा व्यावसायिकों के साथ जुड़कर बड़ी संख्या में
अनुसंधन कार्य करने हेंगे। बायो-मेडिकल इंजीनियरिंग से आधुनिक प्रयोगशाला और
क्लीनिकल प्रक्रियाओं का मार्ग प्रशस्त होता है। बायो-मेडिकल इंस्ट्रन्नमेंटेशन, बायोमैकेनिक्स,
बायोमैटीरियल्स, इमेजिंग, क्लीनिकल इंजीनियरिंग और पुनर्वास इंजीनियरिंग आदि कुछेक सु-
व्यवस्थित विशेषज्ञता क्षेत्रा हैं। बायो मेडिकल इंजीनियर के रूप में कार्य करने के लिए आपके
पास इसमें डिग्री या स्नातकोत्तर डिप्लोमा होना चाहिए। इस विषय क्षेत्रा में डिप्लोमा, डिग्री,
स्नातकोत्तर डिप्लोमा और स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं।
4. स्पीच थेरेपी :
स्पीच थेरेपिस्ट के रूप में आपकी मुख्य भूमिका है श्रव्य विकलांगता से ग्रस्त रोगियों के
पुनर्वास से जुड़े कार्यक्रमों में शामिल होना। स्पीच थेरेपिस्ट को आडियोलॉजिस्ट के रूप में
भी जाना जाता है। ऑडियोलॉजिस्ट एक ऐसा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर होता है जिसे श्रवण
शक्ति की हानि तथा संब( कमियों का मूल्यांकन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है तथा वह श्रव्य विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को परामर्शी सेवाएं भी प्रदान करता है। इससे संबंध्ति रोजगार अस्पतालों, नर्सिंग-होमों, स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों, पुनर्वास केंद्रों, अनुसंधन प्रयोगशालाओं आदि में उपलब्ध् हैं। औद्योगिक क्षेत्रा में भी काफी अच्छे अवसर हैं। इस क्षेत्रों में डिप्लोमा, डिग्री और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं। आप कर्णावर्त रोपण, श्रव्य सहायता, शैक्षणिक ऑडियोलॉजी, स्पीच
एवं लेंग्वेज पैथोलॉजी आदि में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। आपको यह अवश्य सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि चयनित पाठ्यक्रम और संस्थान भारतीय पुनर्वांस परिषद ; आरसी आईद्ध से स्वीकृत हों।
5. ऑक्यूपेशनॅल थेरेपी :
ऑक्यूपेशनल थेरेपी मानसिक या शारीरिक अशक्तता से ग्रस्त व्यक्तियों की सहायता पर केंद्रित होती है। एक ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट के रूप में आपको लोगों की अपने दैनिक जीवन के कार्यों के लिए सक्षमता में सुधर हेतु मदद करनी होती है। आपको ऐसे लोगों की सहायता करनी होगी जो मानसिक, शारीरिक या भावात्मक रूप से अशक्त हैं। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट न केवल अपने ग्राहकों के बुनियादी गतिविषयक कार्यों में सहायता करता है बल्कि उसके स्थाई रूप से हुए नुकसान की प्रतिपूर्ति के लिए भी कार्य करता है। परम्परागत चिकित्सा और फिटनेस क्षेत्रों में ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्टों की व्यापक मांग है। इस व्यवसाय में प्रशिक्षण के लिए आपके वास्ते डिप्लोमा, स्नातकोत्तर डिप्लोमा और स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं।
6. डायलिसिस प्रौद्योगिकी :
डायलिसिस प्रौद्योगिकीविद् के रूप में कार्य करते समय आपकी बहुविध् प्रकार की भूमिका हो जाती है। डायलिसिस प्रौद्योगिकीविद् के रूप में आप हिमोडायलिसिस के तत्वों, शरीर के तरल पदार्थों की कैमिस्ट्री, मानव शरीर में पानी संतुलन, गुर्दे की संरचना और शरीर विज्ञान, हिमोडायलिसिस उपकरणों, इन्फ्रयूजन नियंत्राण तथा मानक एहतियात आदि के बारे में सीखना होगा। उन्हें डायलिसिस प्रौद्योगिकीविद् और डायलिसिस थेरेपिस्ट के रूप में नियुक्त किया जाएगा. उन्हें डायलिसिस उपकरण
निर्माण क्षेत्रा में भी रोजगार प्राप्त हो सकता है। डायलिसिस प्रौद्योगिकीविद् बनने के लिए आपने गणित, जीवविज्ञान अंग्रेजी विषयों के साथ जमा दो परीक्षा उत्तीर्ण की हो तथा एक कुशल डायलिसिस प्रौद्योगिकीविद् बनने के वास्ते आपको संबंधित विषय में डिप्लोमा, डिग्री, स्नातकोत्तर डिप्लोमा या स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करनी होगी।
7. श्वास थेरेपी :
श्वास थेरेपिस्ट के रूप में आप श्वास की समस्या से पीड़ित रोगियों का मूल्यांकन और इलाज करते हैं। आप रोगियों के पफेपफड़ों की क्षमता की जांच करते हैं तथा ऑक्सीजन और कार्बन डाई- ऑक्साइड के संकेंद्रण का विश्लेषण करते हैं। आप हाइड्रोजन के लिए रोगी की क्षमता की जांच भी करते हैं जिससे रक्त में अम्लता या क्षारीयता का स्तर इंगित होता है। कई बार उन्हें पोलिसोम्नोग्राफिक प्रौद्योगिकिविद के रूप में रोजगार प्राप्त होता है। ऐसे में प्रौद्योगिकीविद नींद से संबंध्ति अध्ययन तथा निगरानी आदि का कार्य करते हैं और वे खर्राटे की शिकायत वाले लोगों का इलाज करते हैं। श्वास थेरेपिस्ट स्वास्थ्य देखभाल टीम का अभिन्न अंग है जो कि वेंटिलेटर प्रबंधन
कार्डियोपॅल्मनरी पुनरुज्जीवन और ऑक्सीजन तथा एरोसोल थेरेपी जैसी सेवाएं प्रदान करते हैं।
श्वास थेरेपिस्ट के रूप में वे उच्च जोखिम जन्म में सहयोग करने वाली टीम के एक भाग के तौर
पर भी कार्य करते हैं। इस व्यवसाय में रोजगार की भरमार है तथा डिप्लोमा, डिग्री, स्नातकोत्तर
डिप्लोमा तथा स्नातकोत्तर डिग्रियां उपलब्ध् हैं।
8 मेडिकल डोजिमीटरी :
मेडिकल डोजिमिट्रिस्ट विकिरण ऑन्कोलॉजी टीम का प्रमुख सदस्य होता है। वे इलाज क्षेत्रा
तकनीक को निर्धरित करने के लिए इलाज की योजनाएं तैयार करते हैं जिससे निर्धरित विकिरण
खुराक एकदम सही प्रकार से प्रदान की जा सके। डोजिमिट्रिस्ट को विकिरण ऑन्कोलॉजी तथा
चिकित्सा भौतिकी की अच्छी समझ होनी चाहिए ताकि कम्प्यूटरीकृत इलाज योजना तैयार की जा सके और योजना की मंजूरी हेतु इसे विकिरण ऑन्कोलॉजिस्ट को प्रेषित किया जा सके तथा विकिरण थेरेपिस्ट द्वारा इसका कार्यान्वयन किया जा सके। वे थेरेपी उपकरण के गुणवत्ता आश्वासन परीक्षण करने में सक्षम होते हैं। उन्हें विकिरण सुरक्षा का कार्यसाधक ज्ञान और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के नियमों तथा विनियमों की जानकारी होनी चाहिए। भारत में मेडिकल डोजिमिट्रिस्ट के रूप में कार्य
करने के वास्ते लोग विकिरण भौतिक शास्त्रों के साथ -साथ चिकित्सा भौतिक शास्त्रों का अध्ययन
कर सकते हैं। यह स्नातकोत्तर डिप्लोमा, स्नातकोत्तर डिग्री और स्नातकोत्तर के उपरांत उन्नत डिप्लोमा के रूप में उपलब्ध् है।
9 आप्लावन प्रौद्योगिकी :
हृदय के खुले ऑपरेशन के दौरान कार्डियोपल्मॅनरी बाईपास ;हृदय पफेपफड़ाद्ध मशीन रोगी के हृदय और पफेपफड़ों के कार्य करते हुए रोगी के जीवन को बरकरार रखती हैं। अप्लावन प्रौद्योगिकीविद
ऑपरेशन कक्ष में प्रयोग होने वाली हृदय फेफड़ा मशीन और अन्य अत्याधुनिक उपकरणों की
स्थापना और संचालन का कार्य करते हैं। इसके अलावा वे सर्जन और एनेस्थिसियोलॉजिस्ट के
निर्देशानुसार रोगी के ऑक्सीजन और कार्बन डाई-ऑक्साइड स्तर का नियमन करते हैं। इन कार्यों
को सम्पन्न करने के लिए उन्हें शरीर की परिसंचारी व्यवस्था की पूर्ण समझ होनी चाहिए तथा गंभीर
उपकरणों के संचालन की सक्षमता होनी चाहिए। हालांकि आप्लावन प्रौद्योगिकीविद् सामान्यतः
बड़े चिकित्सा केंद्रों से संब( अस्पतालों में कार्य करते हैं लेकिन वे शैक्षणिक संस्थानों में
अनुसंधानकर्ता या प्रवक्ता के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। इसके अंतर्गत डिप्लोमा, डिग्री और स्नातकोत्तर स्तर पर पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं।
10संक्रमण प्रौद्योगिकी :
विसंक्रमण प्रक्रिया की पतियां तथा स्थितियां और इनकी निगरानी किसी तरह से की जाती है,
यह किसी अस्पताल के लिए महत्वपूर्ण विषय होते हैं। विसंक्रमण तकनीकें प्रतिदिन और अधिक कठिन होती जा रही हैं। प्रत्येक अस्पताल या स्वास्थ्य संगठन के पास अस्पताल में संक्रमण से निपटने की भिन्न-भिन्न पतियां होती हैं जो मानवीय और अस्पताल में स्वास्थ्य से जुड़ी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। विसंक्रमण प्रौद्योगिकीविद विसंक्रमण अनुभाग के साथ-साथ संदूषण विंग का प्रमुख होता है। नियंत्रण अस्पताल के लिए सुरक्षित और कम लागत में अच्छी गुणवत्ता के कार्य का वातावरण
उपलब्ध् कराने में सक्षम होते हैं। उन्हें विसंदूषण के उद्देश्य, संदूषण नियंत्राण की भूमिका, भिन्न- भिन्न विसंक्रमण व्यवहारों, विसंक्रमण की वैध्ता, सर्जरी में उपकरणों की भूमिका, व्यवस्था और पैकिंग के दौरान उठाए जाने वाले कदमों, विसंक्रमण संकेतकों का प्रयोग, एकल प्रयोग वाले उपकरणों को पुनः जारी करना, भण्डारण एवं वितरण, गुणवत्ता नियंत्राण आदि का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। वे
ऑक्यूपेशनल जोखिम कारणों के प्रति भी जागरूक होने चाहिए। इसके तहत डिप्लोमा और स्नातकोत्तर डिप्लोमा स्तर पर पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं।
11. परमाणु चिकित्सा प्रौद्योगिकी :
परमाणु चिकित्सा में रोग के निदान और इलाज तथा अनुसंधन में रेडियो सक्रिय अणुओं तथा
मोलेक्यूल्स का प्रयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत शरीर की शरीरवृत्ति और चयापचय के
अध्ययन के लिए रेडियो आइसोटोप्स का प्रयोग किया जाता है। रोगों का पता लगाने के लिए विकिरण डिटेक्टर्स तथा इमेजिंग उपकरणों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इनसे सामान्य
कोशिकाओं, टिश्यू और अंगों के कार्य तथा चयापचय परिवर्तित होते हैं। सुयोग्य कार्मिक परमाणु चिकित्सा प्रौद्योगिकीविद, विकिरण सुरक्षा अधिकारी, रेडियो कैमिस्ट, रेडियोपफार्मासिस्ट, पशु
प्रौद्योगिकीविद और अनुप्रयोग विशेषज्ञ के रूप में कार्य कर सकते हैं। परमाणु चिकित्सा में विशेषज्ञ के रूप में आपको रेडियो-बायोलॉजी, रेडियो-पफार्मेसी,विकिरण सुरक्षा, सिंटिग्रापिफक प्रक्रियाओं,
सिंटिग्रापिफक उपकरणों, मानव शरीर-रचना और दैहिक विज्ञान के क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा। इसके तहत इस्तेमाल किए जाने वाले प्रमुख उपकरण हैं आइसोटोप कैलीब्रेटर,थाइराइड जांच मशीन, रेक्टिलिनियर स्कैनर, संदूषण मानीटर, गामा कैमरा, स्पैट-सीटी स्कैनर, पीईटी कैमरा, पीईटी-सीटी स्कैनर, गामा जांच, मेडिकल साइक्लोट्रॉन आदि। उन्हें रेडियो पफार्मास्युटिकल्स तैयार करना, प्रक्रिया अनुसार पर्याप्त मात्रा में दवाएं देना, खुराक देना, सिंटिग्रापिफक प्रोटोकॉल्स का पूर्णतः
अनुपालन, रेडियो पफार्मास्युटिकल्स तथा उपकरणों के गुणवत्ता नियंत्राण के दायरे का मूल्यांकन, रिकार्ड कीपिंग और विकिरण सुरक्षा के दायरे की व्यवस्था करना। इस क्षेत्रों में डिग्री, स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
12. पोडियट्री पोडियट्री संब( स्वास्थ्य विज्ञान का एक क्षेत्र है जिसके अंतर्गत पैर और टखने से संबंध्ति
रोगों के निदान एवं इलाज पर केंद्रित, रोगियों के पूर्ण स्वास्थ्य में सुधर हेतु किए जाने वाले
कार्य आते हैं। मनुष्य का पैर एक जैविकीय श्रेष्ठकृति है। इसकी तुलना अन्ततः किसी दौड़ने वाली कार
या अंतरिक्ष शटल से की जा सकती है जिनके कार्यों से उनके डिजाइन और ढांचे का पता चलता है। मनुष्य का पांव शरीर का एक जटिल भाग है जिसमें 26 हड्डियां, 33 जोड़ और 100 से अध्कि नसें, मांसपेशियां और स्नायु तंत्रा का नेटवर्क है। चलने-फिरने के प्रत्येक दिन औसतन पांव कई सौ टन वजन के बराबर बल को झेलता है। इससे स्पष्ट होता है कि आपके पांव की शरीर के अन्य भागों की अपेक्षा अधिक चोटिल होने की आशंका क्यों होती है। पोडियाट्रिस्ट विभिन्न प्रकार के रोगियों के लिए
पांव की देखभाल का मूल्यांकन और विश्लेषण कार्य करते हैं। वे रोगियों को चलने-पिफरने की
स्थिति में रखने में बड़ा योगदान करते हैं। वे निदान के औजार के रूप में बायोमैकेनिक्स का
प्रयोग करते हैं। वे मुख्यतः खेल के दौरान लगने वाली चोट की देखभाल करते हैं। कुछ रोगियों
के पांव में कुछ भी संवेदन नहीं होता। वे बग़ैर पता चले चोटिल हो जाते हैं। इस श्रेणी में आने
वाले रोगियों में मध्ुमेह, गठिया रोग, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, पेरिपफेरॅल आर्टेरियल रोग तथ
पेरिपफेरल नसों के नष्ट होने से संबंध्ति होने वाले रोगों से संबंध्ति व्यक्ति शामिल हैं। इन लोगों की देखभाल के लिए पोडियाट्रिस्ट्स की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस क्षेत्रों से जुड़े व्यावसायिकों की भारत और विदेश में व्यापक मांग है। इसके अंतर्गत डिप्लोमा और स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं।
13. रेडियोग्राफी या मेडिकल इमेजिंग टेक्नोलॉजी रोग का निदान करने वाले रेडियोग्रापफर शरीर
के अंगों और अन्य हिस्सों की प्रतिकृति तैयार करने के वास्ते एक्स-रे, अल्ट्रासाउण्ड,फ्रलुरोस्कोपी, कम्प्यूटरीकृत टेमोग्रापफी ;सीटीद्ध, मेमोग्रापफी, मैगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग ;एमआरआईद्ध, परमाणु चिकित्सा तथा एंजियोग्रापफी का प्रयोग करते हैं। रेडियोग्राफर भिन्न-भिन्न प्रकार के रोगियों की एक्स-रे जांच करते हैं। इसके अंतर्गत सामान्य एक्स-रे से लेकर कन्ट्रास्ट मीडिया के प्रयोग से गुर्दे की जांच का काम किया जाता है। रेडियोग्राफर बहिरंग विभाग में कार्य करते हैं तथा सर्जरी में
कठिन प्रक्रियाओं से जुड़े काम करते हैं तथा अस्पतालों में सभी उम्र के रोगियों की निर्धरित
जांच करते हैं। डायग्नॉस्टक रेडियोग्रापफर को व्यक्ति विशेष से संबंध्ति प्रक्रियाओं की प्रकृति और गंभीरता के संबंध् में निर्णय लेने के लिए क्लीनिकल रिजनिंग कौशल का प्रयोग करना होता है। उन्हें
सामान्य और असामान्य शरीर-रचना तथा पैथोलॉजी की जांच के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि चिकित्सा विशेषज्ञ की रोग के सही निदान के वास्ते सहायता की जा सके और पूरक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सके। जब भी उनसे अनुरोध् किया जाए, उन्हें प्रक्रियाओं के परिणामों के संबंध् में स्वास्थ्य विशेषज्ञ को यह जानकारी उपलब्ध् करानी होती है। डायग्नॉस्टिक रेडियोग्राफर के पास इमेजिंग से जुड़े विशेषज्ञ कार्यों जैसे कि अल्ट्रासाउण्ड,सीटी, एमआरआई आदि में विशेषज्ञतापूर्ण
अवसर भी उपलब्ध् होते हैं। रेडियोग्राफर किसी अस्पताल में दुर्घटना और आपातकाल,बहिरंग क्लीनिकों, ऑपरेटिंग थिएटरों, सघन चिकित्सा इकाइयों और सामान्य वार्डों सहित सभी विभागों को अपनी सेवाएं प्रदान करता है। भारत में इस क्षेत्रों में डिप्लोमा डिग्री और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं। छात्रा विशिष्ट डायग्नॉस्टिक रेडियोग्रापफी के क्षेत्रा में विशेषज्ञता भी हासिल कर सकते हैं। इस विषय क्षेत्रों के लिए छात्रा यहां तक कि भारत और विदेश में स्थित दूरस्थ शिक्षण संस्थानों से भी संपर्क स्थापित कर सकते हैं।
14. पॉलीसोमनोग्रापिफक टेक्नोलॉजी एक पॉलीसोमनोग्रापिफक प्रौद्योगिकीविद नींद से संबंध्ति अध्ययन, निगरानी और स्कोर्स का कार्य करते हैं। खर्राटों की शिकायत, दिन के समय ज्यादा नींद महसूस होना, आरामरहित टांगें और अन्य नींद से जुड़ी समस्याओं से संबंधित रोगियों के शयनप्रयोगशालाओं में रातभर परीक्षण किए जाते हैं। पॉलीसोमनोग्रापिफक प्रौद्योगिकीविद
निम्नलिखित कार्य करते हैं
स फिजिशियन द्वारा निर्देशित विभिन्न प्रकार के निद्रा संबंधी अध्ययन।
स रोगियों की मस्तिष्कीय तरंगों तथा अन्य मनोवैज्ञानिक गतिविधियों का वैद्युतीय मापन।
स छोटी-मोटी कमियों को दुरुस्त करने सहित उपकरणों का संचालन और सामंजस्य।
स विश्लेषण के लिए जैविकीय नमूनों को संग्रहीत और प्रसारित करना।
स सामान्य रोगी का मूल्यांकन करना और रिकार्ड तैयार करना।
स निद्रा रोग से पीड़ित व्यक्तियों की जांच में पिफजिशियन की सहायता करना तथा अन्य
परिणामी दस्तावेज और नींद संबंधी आंकड़े तथा रिकार्ड तैयार करना। निद्रा चिकित्सा के क्षेत्रा में तेजी से उभरता क्षेत्रों है निद्रा -व्यतिक्रम श्वास क्रिया, विशेष रूप से ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्नीया सिन्ड्रोम ;ओएसएएसद्ध, जिसे कई दफा ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्नीया/हाईपोनिया सिंड्रोम ;ओएसएएच
एसद्ध भी कहा जाता है। श्वासरोध् 10 सेकेण्ड या अध्कि समय के लिए श्वसन क्रिया और
एयरफ्रलो दोनों में से कोई एक या दोनों प्रकार की अवसान है। भारत में पॉलीसोमनोग्रापिफक प्रौद्योगिकी का हाल में विस्तार हुआ है। यह अब श्वास-क्रिया से जुड़ी चिकित्सा से संबंधित है।

  

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