जैव - चिकित्सा इंजीनियरी में रोजगार के अवसर - डॉ. के. जयप्रकाश
जैव - चिकित्सा अर्थात् बायोमेडिकल इंजीनियरी, प्रौद्योगिकी का एक ऐसा
उभरता क्षेत्र है जो कि अंतर-विषयक पहुंच वाले महत्वपूर्ण प्रभाव के साथ वैशिष्टय से
परिपूर्ण है। यह विषय क्षेत्र चिकित्सा और इंजीनियरी-दो गतिशील व्यवसायों का
एकीकृत माध्यम होने के कारण औजार और तकनीकी अनुसंधान, इलाज और निदान की
सुविधाएं उपलब्ध् कराते हुए बीमारियों और रोगों के खिलाफ संघर्ष में व्यापक सहायता
प्रदान कर रहा है। पाठ्यक्रमों की विविधतापूर्ण प्रकृति में विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञता क्षेत्र
समाए हुए हैं। जैव-चिकित्सा विशेषज्ञ अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों, जैसे कि फिजिशियनों,
नर्सों, थेरेपिस्टों और तकनीशियनों के साथ मिलकर कार्य करते हैं तथा हेल्थकेअर के
विकास से जुड़े उपकरण और सॉफ्रटवेयर तैयार करते हैं।
काफी लंबे समय से यांत्रिक, वैद्युत, सिविल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि जैसी विभिन्न शाखाओं के
साथ इंजीनियरी, छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय विषय क्षेत्र रहा है। लेकिन हाल के दिनों में
जैव- चिकित्सा इंजीनियरी ने छात्र समुदाय के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली है।
जैव-चिकित्सा इंजीनियरी चिकित्सा और इंजीनियरी दोनों के सिदान्तों के पूर्ण ज्ञान का
मिश्रण है। जैव-चिकित्सा इंजीनियर रोग के निदान और इलाज के लिए उत्पादों और
उपकरणों के विकास में जीवविज्ञान, भौतिकी के साथ-साथ रसायन विज्ञान के सिदान्तों का
प्रयोग करते हैं। इस शाखा में जीवविज्ञान, चिकित्सा, व्यवहार और स्वास्थ्य के अध्ययन
में भौतिकी, रासायनिक, गणितीय और अभिकलन विज्ञानों तथा इंजीनियरी के सिदान्तों
का समन्वय है।
विशेषज्ञता
जैव चिकित्सा इंजीनियर विभिन्न प्रकार के कार्यात्मक क्षेत्रों में विशेषज्ञ होते हैं, जिनमें
शामिल हैं-बायोइंस्ट्रमेंटेशन, बायोमैकेनिक्स, बायोमैटीरियल्स, क्लीनिकल इंजीनियरी, मेडिकल
इमेजिंग, पुनर्वास इंजीनियरी तथा प्रणाली शरीर विज्ञान। निम्नलिखित विशेषज्ञता क्षेत्र एक दूसरे
का अभिन्न और अंतर-स्वातंत्रा्य क्षेत्र हैं। सभी में चिकित्सा से जुड़ी चुनौतियों के हल में
इंजीनियरी सिदान्तों तथा पद्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।
बायोइंस्ट्रमेंटेशन : बायोइंस्ट्रमेंटेशन में रोग के निदान तथा इलाज हेतु उपकरण तैयार करने में
कम्प्यूटर सहित इंजीनियरी सिदान्तों और पद्तियों का प्रयोग शामिल है।
बायोमैकेनिक्स : इसका इस्तेमाल फ्रल्युड परिवहन तथा गति की रेंज जैसी चिकित्सा
समस्याओं तथा प्रणालियों को समझने के लिए मैकेनिक्स के सिदान्तों के लिए किया जाता है।
कृत्रिम अंग जैसे कि कृत्रिम हृदय, गुर्दे और जोड़ आदि ऐसे उपकरणों के उदाहरण हैं जिन्हें
बायोकैमिकल इंजीनियरों द्वारा विकसित किया गया है।
बायोमैटीरियल्स : इसके अंतर्गत मानव शरीर में इस्तेमाल के वास्ते प्राकृतिक जीवित टिश्यू
और कृत्रिम पदार्थों का विकास आता है। उपयुक्त गुणों वाले मैटीरियल के साथ कार्यात्मक
अंग, हड्डियां और अन्य प्रत्यारोपण मैटीरियल्स तैयार करना अत्यंत कठिन होता है जिसमें
मिश्रधातु, मृत्तिका, पोलीमर तथा अन्य मिश्रण सम्मिलित हैं।
क्लीनिकल इंजीनियरी : क्लीनिकल इंजीनियरी में कम्प्यूटर डॉटाबेस का विकास तथा अनुरक्षण,
चिकित्सा औजारों और उपकरणों की सूचीकरण के साथ-साथ अस्पतालों में प्रयुक्त होने वाले
चिकित्सा उपकरणों की खरीद का कार्य आता है। क्लीनिकल इंजीनियर अस्पताल या चिकित्सा
प्रक्रिया की संभावित जरूरतों के लिए उपकरणों की उपलब्ध्ता और इस्तेमाल में सहयोग के
वास्ते फिजिशियनों के साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं।
मेडिकल इमेजिंग : यह ट्यूमर, कुरचना और इसी प्रकार की अन्य स्वास्थ्य संबंधी
समस्याओं की पहचान और वर्गीकरण के वास्ते इलेक्ट्रॉनिक डॉटा प्रोसेसिंग, विश्लेषण
और प्रदर्शन कार्य का मिश्रण है। मैगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग एमआरआई, अल्ट्रासाउंड
और अन्य तकनीकों का सामान्यतः इस्तेमाल किया जाता है।
पुनर्वास : यह शारीरिक अपंगता वाले व्यक्ति के जीवन की स्वतंत्रता, सक्षमता तथा गुणवत्ता
पर केंद्रित होती है। इस विशेषज्ञता क्षेत्रा में किसी व्यक्ति विशेष की अत्यधिक विशिष्ट
आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विकासात्मक गतिविधियों सम्मिलित हैं।
टिशू इंजीनियरिंग : आजकल बीमार टिशूज और नष्ट मानकीय टिशूज की सक्रियता में
सुधार या बहाली के लिए प्रतिस्थापन टिशूज का विकास किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर
किसी के स्वस्थ गुर्दे से कोशिकाएं लेकर उन्हें खराब गुर्दे में डाल दिया जाता है ताकि स्वस्थ
टिशू उत्पन्न हो सकें।
प्रणाली शरीरविज्ञान : इस क्षेत्र में निम्नलिखित को समझने के वास्ते ध्यान केन्द्रित किया
जाता है :- माइक्रोस्कोपिक और सबमाइक्रोस्कोपी स्तर-जीवित अंग में किसी
तरह क्रियाशीलता रहती है, फार्मासियुटीकल ड्रग रिस्पॉन्स से मेटाबॉलिक सिस्टम्स और
रोग का रिस्पॉन्स, स्वैच्छिक अंग मूवमेंट से स्किन हीलिंग और ऑडिटरी फिजियोलोजी
इस विशेषज्ञता क्षेत्र में गणितीय सूत्रों का प्रयोग करके प्रयोग और मॉडलिंग कार्य
सम्मिलित है।
प्रवेश हेतु पात्राता
जैव चिकित्सा इंजीनियरी में प्रवेश चाहने वाले उम्मीदवारों ने जीवविज्ञान के साथ एचएससी
या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण की हो। वैध् गेट स्कोर के साथ ऊपर वर्णित क्षेत्रा में बी.टैक/बीई
या समकक्ष या जैव रसायन शास्त्र, जैव भौतिकी, जैव प्रौद्योगिकी, मृत्तिका, रसायन
विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, अर्थशास्त्र, पदार्थ विज्ञान, गणित, आणविक जीवविज्ञान, भौतिकी और
शरीर-विज्ञान में एम.एससी या समकक्ष साथ में वैध् गेट स्कोर/सीएसआईआर/यूजीसी/
डीबीटी/आईसीएमआर लेक्चररशिप नहीं फैलोशिप या 2 वर्ष का अनुभव. या
एमबीबीएस या ऑक्यूपेशनल फिजियोथेरेपी में स्नातक डिग्री या बीडीएस डिग्री एम्स/अखिल
भारतीय एमसीआई/जेआईएमपीईआर/पीजीआई चंडीगढ़/ एएफएमसी पुणे से प्राप्त की
हो/डीएनबी भाग-प् राष्ट्रीय स्तर की स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षाएं या गेट जीवनविज्ञान स्कोर्स या
सीएसआईआर/यूजीसी/डीबीटी/आईसी एमआर लेक्चररशिप नहीं फैलोशिप. या
एम.फार्मा/एमडी/एमएस/एमडीएस/एमवी एससी या समकक्ष डिग्रीरोजगार की संभावनाएं
जिन संस्थानों में जैव-चिकित्सा इंजीनियरों की नियुक्ति की जाती है उनमें चिकित्सा
अनुसंधान संस्थान, सरकारी नियामक एजेंसियां, अस्पताल, औद्योगिक फर्म और
शिक्षण संस्थान शामिल हैं। जैव-चिकित्सा इंजीनियर अक्सर एक समन्वयक की भूमिका
के तौर पर इंजीनियरी और चिकित्सा की अपनी पृष्ठभूमि का इस्तेमाल करते हैं। उद्योग
में जैवचिकित्सा इंजीनियर नए उत्पादों के निर्माण और परीक्षण के लिए जीवंत प्रणालियों
और प्रौद्योगिकी की समझ का इस्तेमाल करते हैं।
पारिश्रमिक
जैव-चिकित्सा इंजीनियरिंग व्यावसायिकों के लिए पारिश्रमिक काफी अच्छा होता है। वे
चिकित्सा उपकरण निर्माण कम्पनियों में रु. 20000 और 30000 के बीच प्रतिमाह
तक अर्जित कर सकते हैं। अनुसंधान और शिक्षण संस्थानों में वेतन रु. 18000 और
रु. 25000 प्रतिमाह के बीच होता है। निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में रु. 15000 और
रु. 25000 प्रतिमाह के बीच आय हो सकती है। सरकारी एजेंसियों के मामले में प्रतिमाह
वेतन रु. 16000 से 22000 प्रतिमाह की रेंज में होता है।
निष्कर्ष
वर्तमान में जैव-प्रौद्योगिकी और बायो- इन्फारमैटिक्स के साथ-साथ जैव-चिकित्सा
इंजीनियरी तेजी से उभरता क्षेत्र बन गया है। इसके अलावा बीमा क्षेत्र के विस्तार ने अब देश
में लाखों लोगों के लिए उच्च-गुणवत्ता की चिकित्सा-देखभाल की सुविधा आसान कर दी
है। हेल्थकेअर में भी काफी प्रौद्योगिकीय विकास देखा जा रहा है। इन बातों को ध्यान में
रखते हुए यह बहुत अच्छी तरह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में जैव-चिकित्सा इंजीनियर
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के साथ-साथ कारपोरेट स्थापनाओं में सर्वाधिक मांग वाला
कॅरिअर हो जाएगा. यदि आप वास्तव में अनुसंधान करना चाहते हैं और अत्याधुनिक
प्रौद्योगिकियों के विकास में गहरी रुचि रखते हैं, तब तो आपको विदेश से स्नातकोत्तर डिग्री
हासिल करनी चाहिए.
जैव-चिकित्सा इंजीनियरी पाठ्यक्रम संचालित करने वाले संस्थान
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली वेबसाइट : www.aiims.ac.in
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जैव-चिकित्सा अनुसंधान केंद्र, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई
दिल्ली- 110007
www.du.ac.in
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे बायोमेडिकल इंजीनियरिंग पवई, मुंबई-
४०००७६, महाराष्ट्र.
www.iitb.ac.in
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर- 721302
पश्चिम बंगाल www.litkgp.ac.in
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय प्रौद्योगिकी संस्थान, वाराणसी-221005
www.itbhu.ac.in
अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नै-600025,
तमिलनाडु।
अविनाशी इंस्टीट्यूट फॉर होम साइंस एंड हायर एजुकेशन पफॉर वूमैन, कोयम्बत्तूर-
641043, तमिलनाडु।
उस्मानिया विश्वविद्यालय बायोमेडिकल इंस्ट्रन्नमेंटेशन सेंटर, हैदराबाद-50007, आंध्र
प्रदेश, www.bmeosmania.ac.in
जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता- 700032, पश्चिम बंगाल।
द्वारकादास जे. संघवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरी, मुंबई-400056, महाराष्ट्र।
कॉलेज ऑफ इंजीनियरी एवं टेक्नोलॉजी, बेलगाम-590008, कर्नाटक।
गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद-380009, गुजरात।
मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान, मणिपाल-576119, कर्नाटक।
मॉडल इंजीनियरिंग कॉलेज, एर्णाकुलम,केरल-682021।