तीसरी तिमाही में 7% जीडीपी के आंकड़े अर्थव्यवस्था में लचीलापन दर्शाते हैं
के आर सुदामन
विमुद्रीकरण ने, जैसा कि डर था, अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित नहीं किया और यदि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के नवीनतम आंकड़ों पर नजऱ डाली जाये तो भारत चीन की तुलना में थोड़ी अधिक तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में बना रहा. हाल में जारी इस वर्ष की तीसरी तिमाही के आंकड़ों में जीडीपी 7 प्रतिशत बने रहने का अनुमान लगाया गया है. विमुद्रीकरण के जोखिम ने शायद, अच्छी मानसून और अर्थव्यवस्था के लचीलेपन ने विकास में महत्वपूर्ण असर डाला है.
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन पूर्ण वर्ष 2016-17 के लिये अपने जनवरी के अग्रिम 7.1 प्रतिशत के अनुमानों पर भी कायम रहा. तीसरी तिमाही में सात प्रतिशत की वृद्धि दर पूर्ववर्ती दूसरी तिमाही में दर्ज की गई 7.3 प्रतिशत की दर से मामूली कम है, जिसका अर्थ है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर मामूली रूप से धीमी रही है. विमुद्रीकरण 8 नवंबर, 2016 को घोषित हुआ था और इसके तहत तिमाही के दौरान 500 रु और 1000 रु के नोटों का प्रचालन बंद कर दिया गया, जिसकी करेंसी में 86 प्रतिशत की गणना की जाती है.
कोई भी इस तथ्य से असहमत नहीं है कि विमुद्रीकरण ने लघु-अवधि में अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था का 50 प्रतिशत हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र पर निर्भर है जो कि नकदी अर्थव्यवस्था पर आश्रित है. अनौपचारिक क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है, जिसने दो वर्षों के सूखे के बाद, अच्छी मानसून के कारण इस अवधि के दौरान बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. इसने विमुद्रीकरण से अनौपचारिक क्षेत्र को न्यूनतम प्रभावित होने दिया क्योंकि फसलों की बुआई में पर्याप्त वृद्धि हुई जिससे अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई. कृषि क्षेत्र के 6 प्रतिशत से अधिक की दर से विकास करने की आशा है जो कि औसत 4 प्रतिशत से कहीं अधिक है, इसके लिये इस वर्ष हुई प्रचुर बारिश को धन्यवाद. निश्चित तौर पर, अनौपचारिक क्षेत्र में विमुद्रीकरण के वास्तविक असर का पता केवल उस वक्त लग पायेगा जब अप्रैल में रबी की फसल की कटाई उपरांत उपज सामने आयेगी. फिर भी तीसरी तिमाही के आंकड़ों ने कुछ अर्थशास्त्रियों और अनुमान लगाने वालों को गलत साबित कर दिया है कि अर्थव्यवस्था की मंदी जीडीपी के दो प्रतिशत बिंदुओं तक हो सकती है.
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकडों को निराधार कहा जाना गलत है क्योंकि इस राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन का दुनिया भर में सम्मान किया जाता है और उनके आंकड़े सभी तरह के आंकड़ों की गणना के लिये आधार बनते हैं. बेशक यह सच है कि कुछ आंकड़े, देश में अनौपचारिक क्षेत्र की व्यापकता और डाटा एकत्रित करने में अंतराल के प्रभाव के कारण पूरी तरह एकत्र नहीं हो पाते हैं, परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि संगठन के आंकड़े विकास के रूझान का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, जो कि सकारात्मक और वृद्धि कारक हैं. तीसरी तिमाही में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन मात्र कृषि क्षेत्र के कारण नहीं है बल्कि खनन और विनिर्माण का भी इसमें योगदान है. इस अवधि के दौरान सरकारी व्यय भी बढ़ा है और इन सबसे संकेत मिलता है कि बहाली हुई है और अर्थव्यवस्था बहाली के मार्ग पर है. कृषि विकास में पिछली तिमाही की 3.8 प्रतिशत की तुलना में 6 प्रतिशत की वृद्धि और पिछले वर्ष में 2.2 प्रतिशत का संकुचन कुछ न कुछ उल्लेखनीय है. इसका अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव होगा क्योंकि अच्छी कृषि से खपत की मांग बढ़ेगी जिससे उपभोज्य वस्तुओं विशेषकर दुपहिया वाहनों, कारों और घरेलू वस्तुओं की बिक्री को प्रोत्साहन मिलेगा. इससे नये पूंजी निवेशों को भी प्रोत्साहन मिलेगा.
ये सभी अर्थव्यवस्था के लिये अच्छे संकेत हैं. केवल वित्तीय, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवा क्षेत्र ही ऐसे हैं जो पीछे रहे हैं और इन क्षेत्रों में भी विमुद्रीकरण के कारण हुए अस्थाई प्रभाव से ऊपर उठकर आर्थिक गतिविधियों में सुधार के कारण तेज़ी आने की आशा की जाती है.
वित्त मंत्री अरूण जेटली का ये कहना सही है कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़े कई व्यक्तियों द्वारा किये गये उन अतिरंजित दावों को झुठलाते हैं कि विमुद्रीकरण के कारण ग्रामीण और कृषि क्षेत्र संकट में थे. वे सभी अर्थशास्त्री, जिन्होंने 8 नवंबर को उच्च मूल्य के करेंसी नोटों को सरकार द्वारा अवैध घोषित किये जाने के पश्चात तीसरी तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तेज़ी से गिरावट का अनुमान लगाया था, गलत साबित हुए हैं. यद्यपि, भारतीय स्टेट बैंक सहित कई वाणिज्यिक बैंकों और ब्रोकरों का कहना है कि तीसरी तिमाही के आंकड़े अस्वाभाविक रूप से ऊंचे हैं और संशोधित होकर नीचे आ सकते हैं. यह आंशिक रूप से बहुत सी कंपनियों के बही खातों में नकदी की व्यापक वृद्धि के कारण है. भारतीय स्टेट बैंक ने कहा कि पिछले वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही के लिये जीडीपी के आंकड़ों में तीव्रता से गिरावटपूर्ण संशोधन हुए, परिणामस्वरूप 2016-17 की तीसरी तिमाही में उच्चतर वृद्धि देखने को मिली और विमुद्रीकरण का प्रभाव दिखाई नहीं दिया. फिर भी यह असंभव लगता है कि तीसरी तिमाही में विमुद्रीकरण के नकारात्मक प्रभाव को बेअसर करने के पीछे पिछले वर्ष के नकारात्मक संशोधन के प्रभाव की सकारात्मकता है.
एडेलविस सिक्यूरिटीज का कहना है कि जीडीपी डाटा को खासतौर पर क्या कुछ प्रभावित कर रहा है, वह विनिर्माण क्षेत्र में तीव्र उभार और वास्तविक निजी खपत में सीधी तेज़ी है.
विमुद्रीकरण के कारण अल्पावधि में कुछेक उतार चढ़ाव हो सकते हैं परंतु दीर्घावधि में इससे वित्तीय बचतों के प्रवाह, अर्थव्यवस्था के व्यापक औपचारीकरण, व्यापक डिजिटीकरण और पारदर्शिता में महत्वपूर्ण वृद्धि होने की संभावनाएं हैं. ऋण की बृहद् पहुंच के कारण बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता में तेज़ी से वृद्धि होगी. साथ ही मध्यम मुद्रास्फीति के साथ लाई गई मूल्य स्थिरता का भी विकास में योगदान है जो कि सूखे के कारण दो वर्षों में कम खपत के उपरांत ग्रामीण खपत में वृद्धि के साथ आई है.
पहले से ही ये संकेत भी हैं कि कंपनियां और उपभोक्ता पूर्ववर्ती महीनों में नकदी की समस्या से उभर चुके हैं. द निक्केई इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जनवरी में 50.4 से बढक़र फरवरी में 50.7 हो गया जिसमें विनिर्माण क्षेत्र में और सुधार की आशा की जा
रही है.
घरेलू यात्री वाहनों की बिक्री में भी पिछले वर्ष से फरवरी में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि जनवरी में 14.4 प्रतिशत की वृद्धि के उपरांत बहाली का लगातार दूसरा माह है.
संपूर्ण वर्ष के लिये अर्थव्यवस्था में 7.1 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि की आशा है. यह निश्चित रूप से 2015-16 में 7.9 प्रतिशत की वृद्धि से कम है परंतु पूर्व में 2016-17 के लिये अनुमानित करीब 6.5 प्रतिशत की वृद्धि से कहीं बेहतर है. सीएआरई रेटिंग्स ने 2016-17 के लिये जीडीपी की वृद्धि के पहले के 6.6 प्रतिशत के अनुमान को बढ़ाकर 7.1-7.2 कर दिया है.
नकदी-सघन अनौपचारिक क्षेत्र निश्चित तौर पर विमुद्रीकरण के कारण प्रभावित हुआ है और ये संभावना है कि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन अपने इन अग्रिम अनुमानों के आंकड़ों में संशोधन कर सकता है जब मई में अंतिम आंकड़े आयेंगे. परंतु कोई भी इस तथ्य से इन्कार नहीं कर सकता कि प्रभाव न्यूनतम रहा है और किस तरह से नकदी की समस्या समाप्त हो गई है, निश्चित रूप से इस वर्ष 4 प्रतिशत से अधिक की अच्छी कृषि और विनिर्माण, व्यापार, घरेलू खपत में वृद्धि के साथ, विशेषकर ग्रामीण और निर्माण क्षेत्रों के आगामी महीनों में तेज़ी पकडऩे के कारण बहाली के मार्ग पर है. भारत निश्चित तौर पर अच्छी स्थिति में है और केवल बड़ी तथा उभरती अर्थव्यवस्था तर्कसंगत ढंग से अच्छी तरह विकसित हो रही है और चीन की तरह धीमा पडऩा कोई प्रशंसनीय नहीं हो सकता है.
वैश्विक अर्थव्यवस्था के भी बहाली के संकेतों के साथ भारत की वृद्धि दर 8-9 प्रतिशत के उच्च विकास पथ पर तेज़ी से लौटने के लिये 2017-18 में ही उभरकर आयेगी. सामान्य मुद्रास्फीति और वित्तीय समेकन में वृद्धि से भारत, दूरगामी कर सुधारों, वस्तु एवं सेवा कर के कार्यान्वयन के साथ स्थाई उच्च विकास दर के मार्ग पर अग्रसर है. अकेले जीएसटी के लागू होने से ही भारत का जीडीपी 1-2 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्शायेगा और नकारात्मक अनुमान लगाने वाले लोग निश्चित तौर पर गलत साबित हो सकते हैं.
(के. आर. सुदामन, जिनके पास 40 वर्ष से अधिक का पत्रकारिता का अनुभव है, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक और टिकरन्यूज एंड फाइनेंशियल क्रोनिकल के आर्थिक संपादक हैं)