वस्तु और सेवा कर भावी स्वरूप
जयंत राय चौधुरी
संसद द्वारा 122वां संविधान संशोधन विधेयक पारित करने के साथ ही भारत ने बहुचर्चित वस्तु एवं सेवाएं कर (जीएसटी) व्यवस्था की दिशा में एक और कदम रख दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रहित में महत्वपूर्ण कानून के लिए सांसदों का समर्थन जुटाने की अपील करते हुए कहा कि ‘‘जीएसटी राष्ट्र को कर के आतंक से मुक्त कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसे किसी पार्टी या सरकार की विजय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक पद्धति और प्रत्येक नागरिक की जीत है’’। लोक सभा द्वारा पारित विधेयक राज्य सभा में विचार के लिए रखा गया था, जहां नेशनल डेमोक्रेटिक एलाइंस का बहुमत नहीं है। विपक्षी सांसदों द्वारा सुझाए गए कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर सरकार की सहमति के बाद सदन ने विधेयक को मंजूरी प्रदान की थी। बाद में इसे पुन: लोक सभा में भेजा गया, ताकि संशोधनों पर सदन की अनुमति ली जा सके। इस दूरगामी कदम ने एक ऐतिहासिक कानून के प्रति अधिकतर राजनीतिक दलों को एकजुट करने का काम किया, जिसका लक्ष्य भारत को एक साझा बाजार के रूप में विकसित करना, अनेक तरह के करों जैसे उत्पाद शुल्क, बिक्री कर, वैट, चुंगी और प्रवेश शुल्क को समाप्त करना और उन सब के स्थान पर एकमात्र जीएसटी लागू करना है।
जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक में किए गए संशोधनों में पूर्व निर्धारित एक प्रतिशत अंतर-राज्य लेवी को समाप्त करना, जीएसटी लागू होने से 5 वर्ष तक राज्यों को राजस्व की अनिवार्य क्षतिपूर्ति करना और जीएसटी काउंसिल द्वारा एक विवाद निपटान व्यवस्था कायम किया जाना शामिल है। पूर्ववर्ती विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों में अन्य बातों के अलावा मूल विधेयक के खंड 18 को निरस्त करना भी शामिल था, जिसके अनुसार विनिर्माता राज्यों को राजस्व क्षति हेतु 2 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए एक प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क के रूप में क्षतिपूर्ति की जानी थी, जिसे सरकार द्वारा स्वीकृत परिवर्तनों में शामिल किया गया।
राज्यों को क्षतिपूर्ति से संबंधित विधेयक के खंड 19 में भी संशोधन किए गए हैं और अब इसमें व्यवस्था की गई है कि नई कर व्यवस्था में स्थानांतरित होने के कारण संभावित हानि के लिए राज्यों को 5 वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए क्षतिपूर्ति की जाएगी। पहले रखे गए शब्दों ‘‘की जाएगी’’ के स्थान पर अधिक विशिष्ट अर्थ प्रदान करने के लिए संशोधन में अब कहा गया है कि संसद विधि के माध्यम से राज्यों को क्षतिपूर्ति करेगी।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विधेयक पेश करते हुए खंड 12 में भी संशोधन किया, जिसका संबंध केंद्र और राज्यों के बीच विवाद निपटान के साथ है। वस्तु एवं सेवा कर परिषद की सिफारिशों से या उनके कार्यान्वयन से ‘‘क) भारत सरकार और किसी एक या अधिक राज्यों के बीच, अथवा ख) एक तरफ भारत सरकार और कोई राज्य या अनेक राज्यों और दूसरी तरफ एक या अनेक राज्यों के बीच; अथवा ग) दो या अधिक राज्यों के बीच उत्पन्न किसी विवाद का निपटारा करने के लिए परिषद एक व्यवस्था कायम करेगी।
कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने मांग की थी कि ऐसे मामलों में निर्णय देने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्थायी अपील प्राधिकरण बनाया जाए। लगता है कि प्राधिकरण की कार्य शर्तें निर्धारित किए बिना इस मांग को विधेयक में शामिल कर दिया गया है। अधिकारियों ने बताया कि ‘‘हमने कार्य शर्तें निर्धारित करने का काम जीएसटी परिषद पर छोड़ दिया है, जिसमें केंद्र और राज्यों, दोनों के प्रतिनिधि होंगे।’’
संशोधन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जीएसटी कर में राज्यों की हिस्सेदारी को भारत की समेकित निधि का हिस्सा नहीं समझा जाएगा। संशोधन में कहा गया है कि ‘‘किसी राज्य के हिस्से की राशि भारत की समेकित निधि का हिस्सा नहीं होगी......’’।
जीएसटी को लेकर अब से एक दशक से अधिक पहले से कार्य किया जा रहा था और राज्यों की आशंकाओं तथा सम्बद्ध पक्षों के बीच कार्य शर्तों एवं विशिष्ट शब्दावली को लेकर असहमति के स्वरों के कारण इसे मूत्र्तरूप नहीं दिया जा सका था। परंतु, दिलचस्प बात यह है कि लगभग सभी पक्ष और भारतीय व्यापार जगत एवं सुशिक्षित समाज इस कराधान के उपाय की आवश्यकता को लेकर एकजुट थे। इस कदम से काले धन के प्रवाह में कमी आएगी, क्योंकि यह कर उपाय व्यापार और उद्योग पर बेहतर ढंग से नियंत्रण रखेगा, चुंगी समाप्त होने से सीमा पार करने संबंधी बाधाएं समाप्त करेगा, और दोहरे कराधान को कम करेगा तथा अर्थव्यवस्था को अधिक सक्षम बनाएगा। जीएसटी के मामले में अब आगे की राह राज्यों को तय करनी है, चूंकि केंद्र सरकार को अब एक महीने के भीतर 29 भारतीय राज्यों में बहुमत के आधार पर विधेयक की पुष्टि करानी है, ताकि इस बुनियादी कर सुधार को लागू करने के लिए निर्धारित 1 अप्रैल, 2017 की समय सीमा का अनुपालन किया जा सके। ऐसा होने पर केंद्रीय मंत्रिमंडल को नई कर प्रणाली के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय करने वाले निकाय यानी जीएसटी काउंसिल की स्थापना करनी होगी, जिसके अध्यक्ष वित्त मंत्री अरुण जेटली होंगे और राज्यों के वित्त मंत्री जिसके सदस्य होंगे। सरकार लगभग 60,000 कर अधिकारियों को इस वर्ष के अंत तक नए कर ढांचे का प्रशिक्षण प्रदान करेगी। ये सब अपेक्षाएं पूरी होने के बाद वास्तविक जीएसटी विधेयक लाया जाएगा, जो कर की दरें और उसकी वसूली के तौर तरीके तय करेगा। इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। सरकार का लक्ष्य 1 अप्रैल, 2017 से जीएसटी कर प्रणाली लागू करना है।
जीएसटी कैसे कार्य करेगा
वस्तुओं और सेवाओं, दोनों पर कर लगेगा, जो वैटेबल होगा, अर्थात् विनिर्माण या बिक्री के प्रत्येक स्तर पर पहले अदा किए गए कर, विनिर्माण या बिक्री के बिंदु पर अदा किए जाने वाले करों के प्रति सेट-आफ किए जाएंगे। भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए, जीएसटी के दो घटक होंगे - केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) और राज्य जीएसटी (एसजीएसटी)। केंद्र और राज्य दोनों एक साथ मूल्य शृंखला पर जीएसटी लगाएंगे। वस्तुओं और सेवाओं की प्रत्येक आपूर्ति पर कर लगाया जाएगा। किसी राज्य में समस्त लेन-देन पर केंद्र सरकार केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी), और राज्य सरकारें राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) की वसूली करेंगी। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर सीजीएसटी देयता डिस्चार्ज करने के लिए सीजीएसटी का क्रेडिट इन्पुट टैक्स उपलब्ध होगा। इसी प्रकार उत्पादन पर एसजीएसटी अदा करने के लिए इन्पुट्स पर अदा किए गए एसटीएसटी के क्रेडिट की अनुमति होगी। क्रेडिट के क्रास (आरपार) उपयोग की अनुमति नहीं दी जाएगी।
इस प्रकार जीएसटी कर एक दोहरा कर होगा। उदाहरण के लिए यदि किसी वस्तु पर 20 प्रतिशत कर लगता है, तो उसमें से 10 प्रतिशत जीएसटी के रूप में राज्य को और 10 प्रतिशत कर में हिस्सेदारी के रूप में केंद्र को मिलेगा। केंद्रीय जीएसटी में से भी वित्त आयोग द्वारा निर्धारित केंद्र-राज्य हस्तांतरण फार्मूले के अनुसार केंद्र सरकार को कुछ हिस्सा मिलेगा।
जीएसटी की वैटेबिलिटी यानी छूट व्यवस्था के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण काफी होगा। मोबाइल फोन निर्माता ‘‘ए’’ का उदाहरण लेते हैं। ‘‘ए’’ रु। 500/- में ‘‘बी’’ से एक चिप खरीदता है, जिस पर वह 10 प्रतिशत की दर से अथवा रु। 50/- का भुगतान जीएसटी के रूप में करता है। मोबाइल फोन निर्माता मोबाइल फोन का डिजाइन तैयार करने के लिए किसी सॉफ्टवेयर कंपनी को रु। 300/- का भुगतान भी करता है और उस पर 15 प्रतिशत या रु। 45/- कर के रूप में अदा करता है। ‘‘ए’’ अंतत: किसी थेक विक्रेता को 1200/- रुपये में फोन बेचते समय ‘‘ए’’ को 20 प्रतिशत कर यानी रु। 240/- अदा करने होते हैं, जिससे मोबाइल फोन की अंतिम कीमत रु। 1440/- हो जाती है, परंतु कंपनी को पहले अदा किए गए कर पर रु। 95/- सेट-ऑफ कर के रूप में प्राप्त होते हैं। अत: ‘‘ए’’ को निवल कर के रूप में रु। 240-95 = रु। 145/- अदा करने होंगे।
सरकार जीएसटी की कम से कम 4 दरें निर्धारित करेगी:-
1.प्रथम, जीवन बचाने वाली औषधियों और अनिवार्य खाद्य पदार्थों जैसी आवश्यक वस्तुओं पर शून्य शुल्क दर होगी।
2.व्यापक जन समुदाय द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं पर कर की दर 10-14 प्रतिशत होगी।
3.ज्यादातर वस्तुओं पर कर की मानक दर 18-22 प्रतिशत होगी।
4.विलासिता समझी जाने वाली वस्तुओं पर उच्चतर दर से कर लगाया जाएगा।
जीएसटी का आगे का रास्ता और चुनौतियां
*30 दिन के भीतर कम से कम 16 राज्यों की विधानसभाओं से जीएसटी विधेयक की पुष्टि कराना।
*राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद जीएसटी परिषद के लिए कैबिनेट की मंजूरी।
*जीएसटी परिषद द्वारा मॉडल जीएसटी कानूनों की अनुशंसा।
*सीजीएसटी और एसजीएसटी कानूनों के लिए कैबिनेट की मंजूरी।
*सभी राज्यों द्वारा एसजीएसटी के लिए समान अनुमोदन।
*संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में सीजीएसटी, एसजीएसटी कानूनों का पारित किया जाना।
*31 मार्च, 2017 तक जीएसटी कानूनों की अधिसूचना।
*दिसंबर, 2016 तक जीएसटी के लिए सॉफ्टवेयर तैयार करना।
*जनवरी-मार्च से जीएसटी सॉफ्टवेयर का परीक्षण, एकीकरण।
*राज्य, केंद्रीय अधिकारियों को दिसंबर तक प्रशिक्षण प्रदान करना।
*मार्च, 2017 तक पक्षधरों (स्टेक होल्डर) के साथ परामर्श का काम पूरा करना।
*वैट/सर्विस टैक्स/केंद्रीय आबकारी के स्थान पर जीएसटी प्रणाली में स्थानांतरित होना।
जीएसटी की दरें निर्धारित करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक रहने की संभावना है, क्योंकि राज्य, केंद्र सरकार और कांग्रेस द्वारा सुझाई गई मध्यम दर को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं है। सरकार करीब 20 प्रतिशत की मध्यम दर पर मोल-भाव करने के प्रयास करेगी। विधेयक पारित होने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए इतना स्वीकार किया कि ‘‘मुख्य आर्थिक सलाहकार का विश्वास है कि अधिक युक्तिसंगत दर संभव है। कुछ राज्यों का विपरीत दृष्टिकोण है। हम एक कनवर्जेंस (समाभिरूपता) का प्रयास कर रहे हैं’’। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहण्यम ने सिफारिश की थी कि जीएसटी की मानक दर 16।9 से 18।9 प्रतिशत के बीच हो सकती है, जिसमें विलासितापूर्ण वस्तुओं के लिए इससे अधिक ‘सिन-रेट’ और अनिवार्य वस्तुओं के लिए इससे कम कर की दर रखी जा सकती है। कांग्रेस ने मुख्य आर्थिक सलाहकार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए मध्यम दर की सीमा 18 प्रतिशत रखने की मांग की थी। परंतु, सूत्रों का कहना है कि जीएसटी से सम्बद्ध अधिकार प्राप्त समिति, जिसकी बैठक पिछले महीने हुई थी, ने इस बात का समर्थन किया था कि ‘‘राजस्व न्यूट्रल या मानक कराधान दर के बारे में कोई सीमा नहीं होनी चाहिए।’’ अधिकतर राज्य 20 से 24 प्रतिशत के बीच मानक दर की मांग कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि कर की दर को 20 प्रतिशत के आसपास रखने के लिए राज्यों के साथ मोलभाव करने के प्रयास किए जाएंगे। 20 प्रतिशत की दर महत्वपूर्ण है, क्योंकि वित्त मंत्रालय की गणनाओं से पता चलता है कि 18-20 प्रतिशत के बीच मानक दर निर्धारित करने से मुद्रा स्फीति पर नगन्य प्रभाव पड़ेगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह् मण्यम ने बताया ‘‘हमारी गणना से पता चलता है कि अगर आप 18-20 प्रतिशत दर की अनुमति देते हैं, तो मुद्रा स्फीति पर औसतन कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाताओं को बताया कि ‘‘अनुपयुक्त’’ सीमा से राजस्व घाटा बढ़ेगा और एक वित्त मंत्री के नाते मैं इसे वहन नहीं कर पाउंगा। श्री जेटली ने संवाददाताओं से कहा कि ‘‘वर्तमान में जिम्मेदार होना और अतीत में जिम्मेदार होना इन दोनों के बीच अंतर है। वर्तमान वित्त मंत्री यह नहीं कह सकता कि आप राजस्व की वसूली कम करें और अपना खर्च बढ़ाएं’’। सरकार के समक्ष अन्य बड़ी चुनौती जीएसटी को निर्धारित तारीख यानी 1 अप्रैल, 2017 तक लागू करने की होगी। जीएसटी को लागू करने की भावी रूपरेखा मीडिया के समक्ष स्पष्ट करते हुए और इसे शुरू करने की लक्षित तारीख निर्धारित करते हुए राजस्व सचिव हसमुख अडिया द्वारा एक प्रजेंटेशन के बाद वित्त मंत्री श्री जेटली ने पत्रकारों को बताया कि ‘‘जीएसटी लागू करने की समय सीमा निर्धारित करना वास्तव में कठिन है।।।। परंतु, हम समुचित शीघ्रता का प्रयास करेंगे और हमें उम्मीद है कि हम लक्ष्य हासिल कर लेंगे’’।
श्री अडिया ने जीएसटी को लागू करने में 7 चुनौतियां गिनाईं। इन चुनौतियों में केंद्र और राज्यों के राजस्व आधार एवं क्षतिपूर्ति अपेक्षाओं की गणना करना, जीएसटी की दरों की संरचना, रियायतों की सूची, मॉडल जीएसटी विधेयक पर सहमति विकसित करना, दोहरे नियंत्रण के दुष्प्रभाव कम करने के लिए दहलीज रेखा, कंपाउंडिंग (विस्तारित) सीमाएं और परस्पर अधिकारिता निर्धारित करना शामिल हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र तक, वित्त मंत्रालय जीएसटी को कार्य रूप देने संबंधी सभी विधेयक पारित करा लेगा: ‘‘दिसंबर, 2016 तक परीक्षण के बाद जीएसटी के लिए सभी बैक-एंड और अग्रवर्ती आईटी प्रणालियां भी तैयार कर ली जाने की संभावना है’’।
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख में प्रकाशित सामग्री उनके निजी विचार हैं)