रोज़गार सृजन में वृद्धि के लिए
नई कृषि निर्यात नीति
डॉ. एस.पी. शर्मा और
सुश्री सुरभि शर्मा
देश की कुल जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भरता के कारण भारतीय अर्थ व्यवस्था में कृषि की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है. यह क्षेत्र खाद्यान, चारा और उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति करता है. इसीलिए कृषि क्षेत्र का मजबूत और स्थिर विकास न केवल ग्रामीण आबादी की क्रय शक्ति बढ़ाने बल्कि अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता, मांग और रोज़गार सृजन में योगदान के लिए भी महत्वपूर्ण है.
वर्तमान समय में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 15-16 प्रतिशत है, जबकि इस क्षेत्र पर निर्भर लोगों की संख्या लगभग 50 प्रतिशत है. 2012-13 से 2018-19 के दौरान कृषि और सहयोगी क्षेत्रों की वृद्धि दर औसतन 3 प्रतिशत रही. सरकार ने कृषि क्षेत्र की वृद्धि को और बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपायों की घोषणा की है. इनमें, कृषि लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), सिंचाई सुविधाएं बेहतर बनाना, जैविक कृषि को बढ़ावा देना, किसानों के लिए कृषि ऋण में बढ़ोतरी, फसल बीमा, मौसम की समयबद्ध जानकारी, ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क संपर्क मजबूत करना सहित अन्य उपाय शामिल हैं.
एक बड़े फैसले में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल में कृषि निर्यात नीति 2018 को मंजूरी दी है. इसका उद्देश्य 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना. कृषि उत्पादों का निर्यात इस लक्ष्य को हासिल करने में बड़ी भूमिका निभाएगा. इससे कृषि और प्रसंस्कृत खा़द्य वस्तुओं के निर्यात में रोज़गार के अनेक अवसर सृजित होंगे; पारंपरिक कृषि से छिपी बेरोज़गारी को खाद्य प्रसंस्करण और कृषि निर्यात क्षेत्र में भेजने में मदद मिलेगी तथा कुशल श्रमिकों के अलावा अकुशल और अर्द्ध कुशल कामगारों के लिए भी
रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे.
भारतीय किसानों और उनके कृषि उत्पादों को वैश्विक शृंखला से जोड़ना भी भारतीय कृषि क्षेत्र की निर्यात क्षमता के दोहन के लिए आवश्यक होगा. कृषि निर्यात नीति 2018 के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:-
· कृषि निर्यात का मौजूदा स्तर 30 बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़ा कर 2022 तक 60 बिलियन अमरीकी डॉलर करना और अगले कुछ वर्षों में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का लक्ष्य हासिल करना.
· निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में और विविधता लाना तथा जल्द खराब होने वाली वस्तुओं पर विशेष ध्यान देते हुए मूल्य वर्धित कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना.
· घरेलू, जैविक, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाना.
· अवरोधों को दूर तथा स्वच्छता और पादप स्वच्छता संबंधी मुद्दों का समाधान करते हुए बाजारों तक समुचित पहुंच सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत तंत्र उपलब्ध कराना.
· जल्द से जल्द वैश्विक मूल्य शृंखला से जुड़कर विश्व कृषि निर्यात में
· भारत की भागीदारी दोगुनी करना.
· किसानों को विदेशी बाजारों में निर्यात अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम बनाना.
ये उपाय 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के अलावा कृषि संबंधी बुनियादी ढांचे में सुधार करने में भी कारगर साबित होंगे. इससे न केवल कृषि क्षेत्र की प्रगति होगी बल्कि ग्रामीण मांग भी बढ़ेगी, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में वृद्धि होगी और निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा तथा युवा कामगारों के लिए रोज़गार के अवसर सृजित होंगे.
निर्यात बढ़ाने के लिए कृषि निर्यात नीति
· भारत सरकार कृषि निर्यात और रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए कृषि निर्यात नीति 2018 के तहत इन सुधारों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इनका उद्देश्य नीतिगत उपायों से भारतीय कृषि की निर्यात क्षमता का समुचित दोहन करना, भारत को कृषि में वैश्विक शक्ति बनाना और किसानों की आय बढ़ाना है.
· नीतिगत उपाय और स्थिर व्यापार नीति: कृषि निर्यात नीति इस क्षेत्र में हो रहे विकास तथा कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए आवश्यक बदलावों के बारे में समूची कृषि शृंखला के अंतर्गत सार्वजनिक और निजी भागीदारों के साथ विचार-विमर्श को बढ़ावा देगी. इसके अलावा, नीतिगत आश्वासन भी उपलब्ध कराएगी कि प्रसंस्कृत कृषि उत्पाद और सभी प्रकार के जैविक उत्पाद किसी भी प्रकार की निर्यात पाबंदी के तहत नहीं लाए जाएंगे.
· कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम (एपीएमसी एक्ट) और मंडी शुल्क: कृषि निर्यात नीति का उद्देश्य जल्द खराब होने वाले कृषि उत्पादों को कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम से अलग किए जाने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिल कर प्रयास करना है.
· इसके अलावा खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक वस्तुओं की पहचान के लिए संबंधित पक्षों और मंत्रालयों के साथ परामर्श करना और इन वस्तुओं को किसी भी तरह के निर्यात प्रतिबंधों से मुक्त रखना है.
· पट्टे पर भूमि देने संबंधी नियमों को आसान बनाना: यह नीति भूमि को पट्टे पर देने संबंधी नियमों को उदार बनाने और अनुबंध कृषि अधिनियम अपनाने को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करती है. इससे विस्तारित कृषि क्षेत्र उपलब्ध होगा और बड़े पैमाने पर निजी निवेश संभव हो सकेगा. समुचित कार्यतंत्र को बढ़ावा मिलेगा तथा मानक और निर्यात योग्य गुणवत्ता के अतिरिक्त कृषि उत्पादों में बढ़ोतरी होगी.
· बुनियादी ढांचागत और व्यवस्था तंत्र को मजबूत बनाना: यह नीति ढांचागत सुविधाओं को मजबूत बनाने पर जोर देती है. इनमें फसल कटाई से पहले और बाद में संचालन संबंधी सुविधाएं, भंडारण और वितरण, प्रसंस्करण सुविधाएं विकसित करना तथा सड़क और बंदरगाहों से व्यापार के लिए विश्व श्रेणी की सुविधाएं उपलब्ध कराना शामिल है. नई नीति निर्यात संबंधी बुनियादी ढांचागत व्यवस्था का विश्लेषण कर संचालन संबंधी विभिन्न बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करती है. दूर स्थित बाजारों के लिए जल्द खराब होने वाली वस्तुओं को लेकर समुद्री निर्यात संबंधी नियमों पर जोर दिया जाएगा.
· कृषि निर्यात में राज्य सरकारों की अधिक भागीदारी: यह नीति कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नोडल राज्य विभाग या एजेंसी गठित किए जाने पर भी जोर देती है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय राज्य स्तर पर ऐसी नोडल एजेंसी के गठन में सक्रिय भूमिका निभाएगा. हालांकि कई राज्य सरकारों की अपनी निर्यात नीतियां हैं, लेकिन इस नीति का उद्देश्य राज्य निर्यात नीति में कृषि निर्यात शामिल किए जाने को बढ़ावा देना है.
· कृषि समुदाय, मूल्यवर्धित निर्यात तथा शोध और अनुसंधान गतिविधियों और कृषि उत्पादों के विपणन को बढ़ावा देना : यह नीति देश में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सामुदायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करती है. निर्यात केंद्रित बस्तियों के लिए भी ऐसे ही प्रयासों से फसल कटाई के पहले और बाद के बेहतर प्रबंधन में मदद मिलेगी तथा आने वाले समय में निर्यात का उच्च स्तर हासिल करने के लिए आपूर्ति शृंखला बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.
· नई कृषि निर्यात नीति से घरेलू उत्पादों के विकास और मूल्य संवर्धन, मूल्य संवर्धित जैविक उत्पाद, जैविक निर्यातक क्षेत्रों के विकास, फूड पार्क, विपणन और खाद्य उत्पादों की ब्रैंडिंग, एक समान गुणवत्ता और पैकिंग मानकों के विकास, नए बाजारों के लिए नए उत्पादों के अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने पर भी जोर देती है. इसके अलावा नए उद्यमियों के कृषि उत्पाद निर्यात में उद्यम शुरू करने के लिए कृषि स्टार्ट-अप कोष बनाया जाएगा.
भारत के कृषि निर्यात में रुझान
भारत वर्षों से अपने कृषि उत्पादों को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाने में लगा रहा है और इसी का परिणाम है कि हमारे कृषि उत्पाद तथा सहयोगी उत्पादों के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है. देश से प्रमुख कृषि और सहयोगी उत्पाद निर्यात को 43 श्रेणियों में रखा गया है. इनमें बासमती चावल, काजू, काजू फेनी, अरंडी का तेल, अनाज के उत्पाद, कोको उत्पाद, काफी, कच्चा कपास, डेरी उत्पाद, फूल, ताजे फल, सब्जियां, मूंगफली और ग्वार गम के अलावा पशु चर्म, भैंस का मांस और अल्कोहल युक्त पेय पदार्थ आदि शामिल हैं.
इसमें समुद्री उत्पाद, मिल में तैयार उत्पाद, विविध प्रसंस्कृत वस्तुएं, मोलासिस, नाइजर सीड, गैर-बासमती चावल, अन्य अनाज, अन्य मांस, पोल्टरी उत्पाद, प्रसंस्कृत फल और जूस, प्रसंस्कृत मांस, प्रसंस्कृत सब्जियां, दालें, तिल, भेड़/बकरी का मांस, लाख, मसाले, चीनी, चाय, निर्मित और कच्चे तम्बाकू, वनस्पति तेल, गेहूं और अन्य अनाज, मांस और तिलहन भी शामिल हैं.
कृषि और सहयोगी उत्पादों का निर्यात 2010-11 के 24 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर 2017-18 में 38 बिलियन डॉलर हो गया है. इस प्रकार इसमें इस अवधि के दौरान औसतन 12 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है. कृषि निर्यात नीति 2018 के अनुमानों के अनुसार 30 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का मौजूदा कृषि निर्यात 2022 तक बढ़कर 60 बिलियन अमरीकी डॉलर हो जाएगा और अगले कुछ वर्षों में इसके 100 बिलियन अमरीकी डॉलर होने का अनुमान है.
कृषि और सहयोगी उत्पाद व्यापार संतुलन परिदृश्य
कृषि और सहयोगी उत्पादों का व्यापार संतुलन परिदृश्य पिछले कई वर्षों के दौरान आधिक्य में रहा है. 2010-11 में कृषि और सहयोगी उत्पादों का व्यापार संतुलन लगभग 13 बिलियन अमरीकी डॉलर था. निर्यात का हिस्सा 24 बिलियन अमरीकी डॉलर और आयात का 11 बिलियन डॉलर था. 2017-18 में व्यापार संतुलन बढ़कर 15 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया. निर्यात लगभग 38 बिलियन डॉलर का हुआ और आयात 23 बिलियन डॉलर का किया गया.
भारत के कुल कृषि और सहयोगी उत्पाद निर्यात का रुझान
पिछले 7 वर्षों के दौरान भारत के कुल निर्यात में प्रमुख रहने वाले दस कृषि उत्पादों में बदलाव आया है. वित्त वर्ष 2011 के दौरान प्रमुख कृषि निर्यात उत्पादों में कपास सबसे ऊपर रहा था, लेकिन वित्त वर्ष 2018 में इसका स्थान समुद्री उत्पादों ने ले लिया. 2018 के निर्यात में शीर्ष 10 कृषि उत्पादों की सूची में चीनी, अनाज, चाय और अनिर्मित तम्बाकू का स्थान गैर-बासमती चावल, अरंडी का तेल, काफी और काजू ने ले लिया.
कृषि और सहयोगी उत्पादों के निर्यात की दिशा
दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं में वित्त वर्ष 2018 में भारत के कृषि और सहयोगी उत्पादों के प्रमुख आयातक (विकसित अर्थव्यवस्थाएं) देश चार रहे- अमरीका, इटली, बेल्जियम और नीदरलैंड्स. इन देशों को निर्यात की जाने वाली वस्तुएं हैं - काजू, अनाज उत्पाद, कोको उत्पाद, दुग्ध उत्पाद, फूल, ग्वारगम, समुद्री उत्पाद, मिल उत्पाद, प्रसंस्कृत फल और जूस, प्रसंस्कृत सब्जियां, लाख, मसाले, अनिर्मित तम्बाकू.
जबकि, दुनिया की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 2018 में भारत के कृषि और सहयोगी उत्पादों के प्रमुख आयातक देश 5 (उभरती और विकासशाील अर्थव्यवस्थाएं) हैं - इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमारात, वियतनाम, ईरान, सूडान, बंगलादेश, चीन, भूटान, ओमान, नेपाल, और अल्जीरिया. इन देशों को निर्यात किए गए उत्पाद हैं -अल्कोहल युक्त पेय पदार्थ, ताजा फल, भेड़/बकरी का मांस, निर्मित तम्बाकू, अन्य अनाज उत्पाद, भैंस का मांस, मूंगफली, प्रसंस्कृत मांस, तिल, चीनी, गेहूं, ताजा सब्जियां, गैर-बासमती चावल, अरंडी का तेल, वनस्पति तेल, अन्य मांस, बासमती चावल, चाय, फल/सब्जियों के बीज, दालें, पोल्टरी उत्पाद और पशु चर्म इत्यादि.
कृषि क्षेत्र में लगे श्रमिक
कृषि क्षेत्र पर निर्भर कामगारों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में घटती जा रही है. 1991 के दौरान कृषि क्षेत्र पर यह निर्भरता लगभग 64 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2000 में घट कर 60 प्रतिशत पर आ गई, 2010 में यह 52 प्रतिशत और 2018 में 42 प्रतिशत हो गई. इसका कारण कार्यबल के कृषि क्षेत्र से हट कर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की ओर जाना है, जैसे दूर संचार सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, निर्माण सहित अन्य सेवा क्षेत्र.
कृषि और सहयोगी क्षेत्र में निर्यात से जुड़े रोज़गार अवसर
भारत व्यापक कृषि उत्पादों की प्रचुरता वाला देश है और अनाज, दूध, चीनी, फल और सब्जियां, मसाले, समुद्री खाद्य के उत्पादन में उसका स्थान विश्व में अग्रणी है. दुनिया की कुल भूमि का लगभग 2.4 प्रतिशत, जल संसाधनों का 4 प्रतिशत और कुल जनसंख्या का लगभग 18 प्रतिशत भारत में है.
इसीलिए उत्पादकता बढ़ाना, फसल कटाई के पूर्व और बाद का प्रबंधन, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन, प्रौद्योगिकी का उपयोग, कौशल विकास और बुनियादी ढांचे का विकास भारतीय कृषि की प्रमुख आवश्यकता है. कृषि और सहयोगी क्षेत्र में निर्यात से जुड़े रोज़गार की कुल संख्या 1999-2000 से लेकर 2005-06 की अवधि में 20 मिलियन ़ (औसत) से बढ़कर हाल के समय में 23 मिलियन से अधिक हो गई है.
कृषि और सहयोगी क्षेत्र में निर्यात से जुड़े रोज़गार (मिलियन में)
वर्ष कृषि और सहयोगी क्षेत्र
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कुल प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष
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निर्यात से जुड़े रोजगार की औसत संख्या (1999-2000 से लेकर 2005-06) 20 11 9
निर्यात से जुड़े रोजगार की औसत संख्या (2006-07 से लेकर 2012-13) 23 9 14
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स्रोत: पीएचडी शोध ब्यूरो, आयात निर्यात बैंक द्वारा समय समय पर उपलब्ध पत्रों से संकलित, नवंबर 2016. आंकड़े समग्र रूप से दिए गए हैं.
रोज़गार बढ़ाने के लिए नई कृषि निर्यात नीति
कृषि और खाद्य प्रसंस्करण निर्यात में 20 मिलियन रोज़गार के अवसर सृजित होने का अनुमान; पारंपरिक कृषि से छिपी बेरोज़गारी खाद्य प्रसंस्करण और कृषि उत्पाद निर्यात क्षेत्र में स्थानांतरित करना और अकुशल, अर्द्धकुशल और कुशल युवा कार्यबल के लिए रोज़गार के नए अवसर सृजित करना.
भारत दूध, घी, दालें, अदरक, केला,
अमरूद, पपीता और आम, चावल, गेहूं,
सब्जियां, फल, चाय, गन्ना, काजू, दालें,
नारियल इलायची,काली मिर्च और अन्य
कृषि उत्पादों के लिए विश्व का प्रमुख
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उन्नत प्रसंस्करण के साथ सुविकसित कृषि क्षेत्र मूल्य संवर्धन, किसानों के
लिए बेहतर आय सुनिश्चित करने, कृषि उत्पादों में विविधता बढ़ाने, नुकसान
कम करने, रोज़गार के अवसर सृजित करने और निर्यात से होने वाली आय
बढ़ाने में मददगार है. भारत पूरी दुनिया में कृषि और सहयोगी उत्पादों के
प्रमुख उत्पादक के रूप में जाना जाता है. इनमें प्रमुख रूप से दूध, केला,
आम, अमरूद, पपीता, अदरक, भिंडी, गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, चाय, गन्ना,
काजू, अनाज, नारियल, सलाद, कासनी, इलायची, काली मिर्च शामिल हैं.
व्यापार की दृष्टि से पश्चिमी तट से मध्य पूर्व, अफ्रीका, यूरोप, तथा पूर्वी
तट से जापान, सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया, कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड
के निकट होने के कारण भारत को स्थल लाभ मिलता है.
सरकार ने कृषि क्षेत्र के विकास और कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए कई पहल की हैं. नई कृषि निर्यात नीति 2018 के अंतर्गत ये सुधार कृषि निर्यात बढ़ाने और रोज़गार के नए अवसर सृजित करने में सहायक साबित होंगे.
नई कृषि निर्यात नीति 2018 के अंतर्गत सुधार
स्थिर व्यापार नीति व्यवस्था
कृषि निर्यात में राज्य सरकारों की अधिक भागीदारी
सामुदायिक विकास पर विशेष ध्यान
ब्रैंड इंडिया का प्रचार और संवर्धन
अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना
कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में संशोधन और मंडी शुल्क व्यवस्थित करना.
भूमि संबंधी नियमों को आसान बनाना.
जैविक निर्यात क्षेत्र या जैविक फूड पार्क का विकास.
जैविक और विशिष्ट उत्पादों के लिए एक समान गुणवत्ता और पैकेजिंग मानक विकसित करना.
कारोबार करना आसान बनाना और डिजिटीकरण को बढ़ावा देना.
जल्द खराब होने वाले उत्पादों के लिए समुद्र संबंधी नियम तैयार करना.
आत्मनिर्भरता और निर्यात आधारित उत्पादन पर विशेष ध्यान केंद्रित करना.
उद्यमियों को सहयोग देने के लिए कृषि स्टार्ट-अप कोष गठित करना
कृषि क्षेत्र के लिए सहयोगी और अनुकूल सुधारों के साथ कृषि निर्यात नीति 2018 का लक्ष्य 2017-18 के 38 बिलियन डॉलर के मौजूदा स्तर से कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाकर 2022 तक 60 बिलियन अमरीकी डॉलर करना है. आने वाले समय में यह नीति कई महत्वपूर्ण सुधारों के साथ भारतीय कृषि क्षेत्र की निर्यात क्षमता का अधिक से अधिक दोहन कर सकेगी और रोजगार के अवसर बढ़ाने में सहायक होगी. अनुमान है कि 2022 तक कृषि और कृषि निर्यात क्षेत्र में प्राथमिक और द्वितीयक प्रसंस्करण, प्रौद्योगिकी संरक्षण, उत्पाद विकास, पैकेजिंग, साजो-सामान, प्रयोगशाला परीक्षण, खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा मानक, अनुसंधान और विकास, खुदरा व्यापार, परिवहन, विपणन और बिक्री क्षेत्रों में निर्यात से जुड़े 20 मिलियन रोज़गार सृजित होंगे.
भारत का कृषि निर्
निष्कर्ष और सुझाव
भारत में कृषि बड़ी आबादी की आजीविका का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन बना रहेगा. अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ मांग और आपूर्ति को लेकर इस क्षेत्र का व्यापक संपर्क है. भारतीय कृषि को विश्व के मानचित्र पर महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण और कृषि निर्यात को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है. अभी कृषि उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत का योगदान केवल 2 प्रतिशत है. इसे देखते हुए किसानों की आय दोगुनी करने और कृषि निर्यात बढ़ाने के लक्ष्य के साथ नई कृषि निर्यात नीति 2018 की भूमिका आने वाले समय में महत्वपूर्ण रहेगी. कृषि क्षेत्र के निर्यात में बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था में रोज़गार सृजन के लिए कुछ उपाय इस प्रकार हैं:
v कारोबार करना आसान बनाना: व्यापार अनुकूल सुगम माहौल तैयार करना कृषि क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. निवेशकों की सुविधा के लिए 'निवेश बंधुÓ पोर्टल शुरू किया गया है, ताकि निवेशकों को आवश्यक जानकारी प्राप्त करने और निर्णय लेने में आसानी हो. विभिन्न नीतिगत विकास, प्रोत्साहनों, कृषि संबंधी संसाधन और बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के बारे में एक स्थल पर जानकारी उपलब्ध कराने की व्यवस्था जरूरी है.
v सामुदायिक विकास को बढ़ावा देना: द्यमियों को मूल्य शृंखला में विविध सामुदायिक व्यवस्था अपनाने और उसे बढ़ावा देने तथा कृषि आधारित और खाद्य प्रसंस्करण समुदायों के गठन से उस्तरों पर बुनियादी सुविधाएं मिलेंगी. प्रसंस्करण से संबंधित व्यवस्था को बढ़ावा देने और विभिन्न उपायों से कृषि फार्म के आरंभिक स्थल से खुदरा व्यापारी तक मजबूत संपर्क स्थापित करना कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है. इन उपायों में वित्तीय प्रोत्साहन के साथ फूड पार्क/प्रसंस्करण व्यवस्था शामिल है.
v बुनियादी ढांचा विकास: सड़क व्यवस्था, ग्रामीण क्षेत्रों में संपर्क सुविधा मजबूत करना और कृषि क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाने जैसे बुनियादी ढांचागत सुधारों की जरूरत है. कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता और प्रसंस्करण इकाइयों के बीच मजबूत संपर्क स्थापित करने के लिए बाजारों तक ग्रामीण संपर्क सुविधा मजबूत करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. जरूरी साजो सामान, परिवहन व्यवस्था और बंदरगाहों के विकास को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर बढ़ावा दिया जाना होगा.
v अनुसंधान और विकास तथा उन्नत प्रौद्योगिकी: पैकेजिंग, उत्पाद विकास, खाद्य प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से अनुसंधान और विकास बढ़ाना होगा. प्रायोजित अनुसंधान और अनुसंधान संबंधी गतिविधियों के लिए अनुदान समय-समय पर बढ़ाए जाने होंगे. खाद्य प्रसंस्करण में लघु उद्योग क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान ध्यान में रखते हुए उन्हें उन्नत प्रौद्योगिकी सुविधाएं, ऋण उपलब्धता, बाजार तक पहुंच, उत्पादकता, विपणन, उपकरणों और मशीनों के चयन के बारे में तकनीकी सलाह देनी होगी.
v गुणवत्ता मानक/प्रमाणन लागू करना: विश्व व्यापार में भारतीय खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों का हिस्सा बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में पहुंचने वाले खाद्य उत्पादों की न्यूनतम गुणवत्ता और मानक सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है. बड़े पैमाने पर संगोष्ठियों, आयोजनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए खाद्य उत्पादों के गुणवत्ता मानकों के बारे में जागरूकता बढ़ाया जाना जरूरी है. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को विश्व के विभिन्न भागों में अपना निर्यात बढ़ाने के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप सुदृढ़ होना होगा.
v कच्चे माल तक पहुंच आसान बनाना: खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए कच्चे माल की नियमित उपलब्धता महत्वपूर्ण है. ऊंची परिवहन लागत और परिवहन के दौरान बर्बादी के कारण कच्चे माल की लागत अक्सर बढ़ जाती है. कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता और प्रसंस्करण इकाइयों के बीच सार्वजनिक निजी भागीदारी के आधार पर विश्वसनीय और मजबूत आपूर्ति शृंखला नेटवर्क सुनिश्चित करना होगा.
v उत्पादों का निर्यात विपणन: आने वाले समय में कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के लिए विदेशी बाजारों में भारतीय उत्पादों की ब्रैंड स्थापित करना और विपणन को मजबूत करना महत्वपूर्ण है. विकसित देशों के बाजारों में उच्च मूल्य मानक संबंधित मेक इन इंडिया खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान की जरूरत है. किसी नए बाजार में प्रवेश या किसी नए उत्पाद को उतारने से पहले व्यापक बाजार अध्ययन आवश्यक है. यह अध्ययन घरेलू स्तर पर या किसी शोध फर्म के जरिए कराए जा सकते हैं.
v प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ावा देना: लघु उद्योग और असंगठित खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में अक्सर बड़े पैमाने पर अकुशल, अर्द्ध कुशल और कुशल ग्रामीण श्रमिक लगे होते हैं. बेहतर और अनुकूल कार्य माहौल सृजित करने के लिए प्रशिक्षण और कौशल विकास, नियमित रूप से प्रौद्योगिकी को उन्नत बनाने, उत्पादों में विविधता लाने, समुचित विपणन तथा खाद्य सुरक्षा के बारे में जानकारी बढ़ाने की आवश्यकता है.
(डॉ. एस.पी. शर्मा और सुरभि शर्मा पीएच.डी. चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, नई दिल्ली में क्रमश: मुख्य अर्थशास्त्री और एसोशिएट अर्थशास्त्री हैं. ई-मेल: spsharma@phdcci.in)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं