एकल ब्रॉण्ड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष
डॉ. रणजीत मेहता
भारत दुनिया की सर्वोच्च 10 अर्थव्यवस्थाओं (जीडीपी के लिहाज से) में से एक है और यह 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिये तैयार है. सरकार ने भारत में रोजग़ार और रोजग़ार सृजन को प्रमुखता देने के उद्देश्य से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की व्यवस्था को अनिवार्य रूप से उदार बनाया है. सरकार ने विभिन्न प्रमुख नौ क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए इस वर्ष जून में रक्षा, विमानन और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को सुगम कर दिया.
भारतीय उपभोक्ता बाज़ार में पिछले दशक में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है. इस रुझान के जारी रहने की आशा है और भारत के विश्व में एक सबसे तेज़ी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरने की संभावना है. अनुकूल जनसांख्यिकीय परिदृश्य और आय के बढ़ते स्तर इस समावेशी विकास के प्रमुख संचालक होंगे. परिणामस्वरूप 500 अरब अमरीकी डॉलर का भारतीय खुदरा बाज़ार 12 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि विकास दर (सीएजीआर) के साथ 2017 तक 900 अरब अमरीकी डॉलर मूल्य तक पहुंच जाने की संभावना है. संगत संगठित बाज़ार का आकार, जिसका वर्तमान मूल्य 35 अरब अमरीकी डॉलर माना जाता है, में 21 प्रतिशत के सीएजीआर की वृद्धि के साथ 2017 तक 90 अरब अमरीकी डॉलर हो जाने की आशा है.
भारतीय संगठित खुदरा बाज़ार वृद्धि के चरण में है, और संबद्ध हितधारक-रिटेलर्स, उपभोक्ता, वेंडर्स, मॉल ऑपरेटर्स और विनियामक संस्थाएं-एक साथ विकसित हो रहे हैं. एक-ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र मुख्यत: एपैरल और एसेसरीज, फुटवियर जैसी श्रेणियों से संचालित है, जिसकी संगठित खुदरा बाज़ार में एक तिहाई से अधिक की हिस्सेदारी की गणना की जाती है.
भारत में खुदरा क्षेत्र को इसकी अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तम्भ माना जाता है. सरकार ने भारत में विनिर्मित अथवा उत्पादित खाद्य उत्पादों के लिये, ई-कॉमर्स के जरिये सहित, व्यापार हेतु सरकारी स्वीकृति मार्ग के अधीन 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने का फैसला किया है. सरकार ने इस वित्त वर्ष के बजट में घोषणा की थी कि भारत में उत्पादित और विनिर्मित खाद्य उत्पादों के विपणन में विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के जरिये 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी जायेगी. ‘अत्याधुनिक’ और ‘नवीनतम’ प्रौद्योगिकी से जुड़े उत्पादों के लिये स्थानीय संसाधन नियमों में भी छूट प्रदान की गई है. नियमों में ढील दिये जाने के उपरांत एकल ब्राण्ड खुदरा व्यापार संचालित करने वाली और ‘अत्याधुनिक’ तथा ‘नवीनतम’ प्रौद्योगिकी के लिये स्थानीय संसाधन नियमों से छूट चाहने वाली संस्थाएं तीन वर्षों की छूट, अन्य पांच वर्षों के लिये विस्तारित किये जाने के विकल्प के साथ, प्राप्त कर सकती हैं. पूर्व में स्थानीय संसाधन नियमों के तहत छूट के लिये कोई समय-सीमा नहीं थी.
एकल ब्रॉण्ड खुदरा व्यापार के लिये स्थानीय संसाधन नियमों में छूट से एप्पल इंक सहित बहुत-सी कंपनियों के लिये भारत में अपने खुदरा स्टोर खोलने का मार्ग प्रशस्त हुआ था. अब सवाल ये है कि क्या कोई ब्राण्ड स्वामी अथवा अनिवासी संस्था/संस्थाएं भारत में एक से अधिक कंपनी के जरिये विनिर्दिष्ट ब्राण्ड का एकल ब्राण्ड खुदरा व्यापार संचालित कर सकती हैं. औद्योगिक नीति एवं संवद्र्धन विभाग (डीआईपीपी) ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई अनिवासी संस्था अथवा संस्थाएं, चाहे ब्राण्ड का स्वामी है अथवा अन्य, को देश में सीधे अथवा ब्राण्ड स्वामी के साथ एकल ब्राण्ड उत्पाद खुदरा व्यापार संचालित करने के लिये कानूनी तौर पर वैध समझौते के जरिये एकल ब्राण्ड उत्पाद खुदरा व्यापार संचालित करने की अनुमति दी जायेगी. ऐसी अनिवासी संस्था अथवा संस्थाएं एक अथवा अधिक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों अथवा संयुक्त उद्यमों के जरिये एकल ब्राण्ड खुदरा व्यापार बिजऩेस संचालित कर सकती हैं.
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह 2013-14 के दौरान 36.04 अरब अमरीकी डॉलर की तुलना में 2015-16 में बढक़र 55.46 अरब अमरीकी डॉलर हो गया. यह ध्यान देने योग्य बात है कि सरकार ने पिछली बार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में नवंबर 2015 में बदलाव किये थे जब बैंकिंग, रक्षा और निर्माण सहित 15 क्षेत्रों के लिये नियमों में बदलाव किया गया था.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भारत के आर्थिक जीवन में बदलाव आ सकता है
भारत में विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का उल्लेखनीय प्रवाह देश के आर्थिक जीवन में वृद्धि करता है. यह नकदी की कमी वाले घरेलू खुदरा विक्रेताओं के लिये अपेक्षित पूंजी और जुटाई गई राशि के बीच के अंतर को पाटने के लिये एक अवसर प्रदान करता है. दरअसल एफडीआई भारत जैसे विकासशील देश के लिये निवेश का एक प्रमुख स्रोत है जिसमें वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों से देश की वृद्धि दर में सुधार, रोजग़ार सृजन, विशेषज्ञता भागीदारी, मेज़बान देश में आधारभूत अवसंरचना और अनुसंधान तथा विकास के लिये निवेश की आशा करता है. यह भी देखने में आया है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने ऐसे कई देशों की मदद की है जब वे आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहे थे. इसका उदाहरण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में कुछ देशों (इंडोनेशिया
और थाईलैंड) के रूप में देखा जा सकता है. 1997 के एशियाई
वित्तीय संकट के दौरान यह देखा गया था कि इन देशों में किया
गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश टिकाऊ था जबकि नकदी प्रवाह के अन्य रूपों को कड़ी असफलताओं का सामना करना पड़ा था. इसी तरह
का वातावरण 1980 में लातिन अमेरिका और 1994-95 में मैक्सिकों में भी देखा गया.
आपूर्ति शृंखला/वितरण क्षमता में सुधार, क्षमता निर्माण और साथ में आधुनिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल ने अनावश्यक अपव्यय को रोकने में मदद की. वर्तमान स्थिति में अपर्याप्त भण्डारण सुविधाओं और संभारतंत्र में निवेश की कमी से खाद्य आपूर्ति शृंखला में अदक्षता का सूत्रपात हुआ है जिससे व्यापक अपव्यय हो रहा है. हमें यह स्वीकार कर लेना होगा कि भारत में आपूर्ति शृंखला प्रबंधन अच्छी हालत में नहीं है, चाहे यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली हो अथवा निजी तथा विदेशी विशेषज्ञता इसमें बेहतरी के लिये केवल मदद करती है.
यद्यपि भारत फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके पास बहुत सीमित मात्रा में शीत भण्डारण अवसंरचना है. भण्डारण सुविधाओं के अभाव के कारण किसानों को सामान्य तौर पर उत्पाद की गुणवत्ता और मात्रा में और विशेष तौर पर फलों और सब्जियों की बर्बादी के लिये भारी हानि उठानी पड़ती है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से मौजूदा खंडित आपूर्ति शृंखला अवसंरचना का पूर्ण जीर्णोद्धार हो सकता है. बहुराष्ट्रीय रिटेलर्स के त्वरित जुड़ाव, साथ में उनकी तकनीकी और प्रचालन विशेषज्ञता से आशा की जा सकती है कि ऐसे संरचनात्मक कमियों में सुधार हो सकता है. साथ ही किसान भी रिटेलर्स के साथ ‘खेत से कांटे तक’ के उद्यमों से लाभान्वित हो सकते हैं जिनसे (क) बिचौलियों को हटाने (ख) किसानों को बेहतर मूल्य प्रदान करने और (ग) स्थिरता तथा आर्थिक पैमाना उपलब्ध करवाने में मदद मिलेगी, जिससे अंतत: किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ पहुंचेगा.
संगठित रिटेल में उपभोक्ताओं को खुशनुमा शॉपिंग वातावरण, उत्पाद डिस्पले के लिये व्यापक स्थान, स्वच्छता रख-रखाव और बेहतर उपभोक्ता देखभाल के साथ विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध ब्राण्डों के बीच से चयन करने का अवसर प्राप्त होगा जनसंख्या का एक बड़ा भाग ऐसा है जो ये महसूस करता है कि विदेशी रिटेलर्स को बेचे गये और भारतीय बाज़ार में बेचे गये उन्हीं उत्पादों की गुणवत्ता में अंतर होता है. उभरते देश में बढ़ती खर्च करने की शक्ति और गुणवत्ता तथा ‘वन स्टाप शॉप‘ की आसानी और पहुंच के लिये भुगतान की प्रवृत्ति बढ़ी है जहां भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यापक रेंज के उत्पाद होते हैं. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से निश्चित तौर पर कुछेक भारतीय कंपनियों के लिये उनकी मनमानी को लेकर चुनौती पैदा कर दी है और अंतत: इससे आखिरी उपभोक्ता को ही लाभ पहुंचता है.
बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश से निश्चित तौर पर विभिन्न कंपनियों के बीच (घरेलू कंपनियों सहित) विशिष्ट उत्पाद बाज़ार में सघन प्रतिस्पद्र्धा का सूत्रपात होता है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत-सी किस्मों की उपलब्धता, मूल्यों में कमी और विपणन प्रस्तावों के सुविधाजनक वितरण की सुविधा प्राप्त होती है. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के व्यापक प्रवाह की वजह से देश में विभिन्न उद्योगों द्वारा
उत्कृष्ट गुणवत्ता के उत्पादों का निर्माण किया जाता है. कुछ का ये तर्क हो सकता है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण बड़े व्यवसायी दुकानदारों, हॉकर्स, वेंडर्स और कामगारों सहित छोटे व्यवसायों से जुड़े बहुत से लोगों को विस्थापित करते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बर्बाद कर देंगे. इतने बड़े आकार और बहु संस्कृति, जातीय और भाषायी जनसंख्या वाले देश के लिये खंडित खुदरा व्यवसाय हमेशा बना रहेगा.
बहुत से अध्ययनों में मल्टी-ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र में वैश्विक खुदरा श्रृंखलाओं को अनुमति दिये जाने के फायदों का उल्लेख किया गया है. आधुनिक खुदरा क्षेत्र का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव है. बोस्टन कन्सल्ंिटग ग्रुप की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तीस से चालीस लाख प्रत्यक्ष रोजग़ारों का सृजन होगा जबकि अन्य चालीस से साठ लाख अप्रत्यक्ष रोजग़ार संभारतंत्र क्षेत्र, वितरण, पुन:पैकेजिंग केंद्रों और स्टोर्स में हाउसकीपिंग तथा सुरक्षा स्टाफ में संविदा रोजग़ार के अवसर अवसर खुलेंगे. सरकार का अनुमान दर्शाता है कि इस क्षेत्र में करीब एक करोड़ रोजग़ार के अवसरों का सृजन होगा. भारत के खुदरा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के प्रवेश से न केवल रोजग़ार के अवसरों का सृजन होता है बल्कि उनमें गुणवत्ता भी सुनिश्चित की जाती है. इससे भारतीय मानव संसाधनों को बेहतर गुणवत्ता के रोजग़ार प्राप्त करने और अपने जीवन स्तर में सुधार लाने तथा अपनी जीवनचर्या विकसित राष्ट्रों के नागरिकों के समकक्ष जुटाने में मदद मिलेगी.
यद्यपि ऐसे विचार भी हैं कि खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से निश्चित तौर पर देश में संगठित खुदरा क्षेत्र मज़बूत होगा. ये संगठित रिटेलर्स समूचे उपभोक्ता बाज़ार में पांव पसार लेंगे. इससे अनुचित प्रतिस्पर्धा होगी और अंतत: इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर घरेलू रिटेलर्स, विशेषकर छोटे-छोटे परिवारों द्वारा चलाई जाने वाली दुकानें प्रभावित हो सकती हैं.
सरकार ने स्थानीय संसाधन नियमों के लागू होने से पहले आठ वर्ष की विस्तारित खिडक़ी के साथ देश में एकल ब्राण्ड रिटेलर्स के लिये प्रचालन सुविधाएं स्थापित करने को आसान बना दिया है. लेकिन एप्पल इंक जैसी कुछेक कंपनियों को इस आधार पर संसाधन नियमों में पूरी छूट की आशा थी कि वे ‘अत्याधुनिक‘ और ‘नवीनतम प्रौद्योगिकी‘ वाली कंपनी है. एकल ब्राण्ड रिटेल के लिये सरलीकृत नियमों के अधीन भारत में पूर्ण स्वामित्व वाले स्टोर्स खोलने वाली कंपनियों के लिये अपना पहला स्टोर खोलने के पांच वर्षों के भीतर 30 प्रतिशत स्थानीय संसाधन नियमों का अनुपालन करना अपेक्षित था. इस नियम को एकल ब्राण्ड खुदरा व्यापार में लगी संस्थाओं के लिये और कड़ा कर दिया गया है और स्थानीय संसाधन नियमों से छूट चाहने वाली कंपनियों को, पांच वर्षों की रियायती संसाधन व्यवस्था के साथ, केवल तीन वर्षों के लिये छूट प्राप्त होगी.
अभी सरकार ने कुल मिलाकर 100 प्रतिशत एकल ब्राण्ड नीति के अधीन स्थापना हेतु रिटेलर्स के लिये नियम सरल कर दिये हैं. इसने भारत में विनिर्मित अथवा उत्पादित खाद्य उत्पादों के लिये ई-कॉमर्स के जरिये सहित, ट्रेडिंग के लिये स्वीकृति मार्ग के अधीन 100 प्रतिशत एफडीआई को भी अधिसूचित कर दिया है, जिसका उसने बजट में प्रस्ताव किया था. इस तरह भारत में खाद्य उत्पादों का विनिर्माण करने वाली कंपनियों को खुदरा स्टोर्स की स्थापना करने की अनुमति दी जायेगी और यहां तक कि उन्हें भारत में विनिर्मित वस्तुओं के संबंध में ई-कॉमर्स के प्रचालन की भी अनुमति होगी. उद्योग जगत फूड रिटेल में एफडीआई को एक बहुत ही प्रगामी कदम मानता है क्योंकि इससे खुदरा नवाचार बढ़ेगा और इससे भारतीय कंपनियों की वैश्विक डिजाइन, प्रौद्योगिकियों तथा प्रबंधन के श्रेष्ठ व्यवहारों की पहुंच से प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी. एकल ब्राण्ड खुदरा क्षेत्र को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिये खोले जाने से भारत में खुदरा क्षेत्र की बाढ़ आने और इससे रोजग़ार के हजारों अवसर पैदा होने की आशा की जाती है.
(लेखक: निदेशक, पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, नई दिल्ली हैं. ई-ranjeetmehta@gmail.com)