रोज़गार समाचार
सदस्य बनें @ 530 रु में और प्रिंट संस्करण के साथ पाएं ई- संस्करण बिल्कुल मुफ्त ।। केवल ई- संस्करण @ 400 रु || विज्ञापनदाता ध्यान दें !! विज्ञापनदाताओं से अनुरोध है कि रिक्तियों का पूर्ण विवरण दें। छोटे विज्ञापनों का न्यूनतम आकार अब 200 वर्ग सेमी होगा || || नई विज्ञापन नीति ||

संपादकीय लेख


Issue no 16, 17-23 July 2021

 

महिला नेतृत्व वाले ग्रामीण स्टार्ट-अप और

उद्यम उभरते अवसर

राय सेनगुप्ता

भारत की 833.8 मिलियन-मजबूत ग्रामीण आबादी में से लगभग आधी संख्या महिलाओं की है जो नए भारत की विकास गाथा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. पिछले कुछ दशकों में, भारत के ग्रामीण विकास के क्षेत्र में लैंगिक मुख्यधारा और महिला सशक्तिकरण में आश्चर्यजनक नवाचार देखे गए हैं. इनमें 1990 के दशक से लागू किए जा रहे लिंग संवेदीकरण प्रयासों से लेकर, एक मिलियन से अधिक महिलाओं को जमीनी स्तर पर शासन का नेतृत्व करने के लिए चुनकर सक्षम बनाने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधन जैसी पहल शमिल हैं. वर्तमान समय में, तेजी से बढ़ रहे महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप और उद्यमों का ग्रामीण नवाचार में महत्वपूर्ण योगदान है.

आजीविका क्षेत्र में ग्रामीण नवाचारों पर कोई भी चर्चा नि:संदेह उन संस्थानों के संदर्भ में होती है जिनकी उन्हें सक्षम बनाने में प्रमुख भूमिका  है यानी स्वयं सहायता समूह. दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत गठित, स्वयं सहायता समूह लोगों (आमतौर पर महिलाओं) के अनौपचारिक समूह हैं. वर्तमान में, देश में 7 मिलियन से अधिक स्वयं सहायता समूहों के नेटवर्क को सहायता प्रदान की जा रही है. इनमें से प्रत्येक महिलाओं के प्रति उस संवेदनशील संस्थागत संरचना का प्रतिनिधित्व करता है जो महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाता है.

स्वयं सहायता समूहों के  नेटवर्क के विकास के साथ ही इसके जनादेश का भी विस्तार हुआ है ताकि  एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में सेवाएं प्रदान की जा सकें, गरीबों के लिए निवेश जुटाया जा सके और प्रशिक्षण तथा कौशल के साथ संलग्नता को मजबूत किया जा सके (दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना और ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से). इन अवसरों के साथ, दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन कार्यक्रम की उप-योजना- स्टार्टअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (एसवीईपी)  ने ग्रामीण स्टार्ट-अप के तीन प्रमुख स्तंभों - वित्त, इनक्यूबेशन और कौशल तंत्र की व्यवस्था करते हुए महिला उद्यमियों को अपना व्यवसाय स्थापित करने में सक्षम बनाया है.

अगस्त 2020 तक, स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम के तहत 100,000 से अधिक ग्रामीण स्टार्ट-अप को सहायता प्रदान की गई है. इसके अलावा, क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) द्वारा स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम की 2019 की मध्यावधि समीक्षा से पता चला है कि गठित किए गए उद्यमों में से 75 प्रतिशत का स्वामित्व और प्रबंधन महिलाओं द्वारा किया गया था, जो भारत के ग्रामीण स्टार्ट-अप परिवर्तन की, महिलाओं के नेतृत्व वाली प्रकृति का उदाहरण है. क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि इन ग्रामीण उद्यमियों की आय, परिवार की  कुल आय का 57 प्रतिशत है, जो दर्शाता है कि भारत की ग्रामीण स्टार्ट-अप प्रणाली ने परिवारों में भी महिलाओं की आवाज और हैसियत को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया है.

इनके अलावा, महिलाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने की अन्य पहलों में शामिल प्रमुख कार्यक्रम  हैं - प्रधानमंत्री जन-धन योजना (जो जनवरी 2021 तक 231,226,199 महिला खाताधारकों के लिए वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करती है) और स्टैंड-अप इंडिया योजना (जिसने जनवरी 2021 तक 90,185 महिलाओं का उद्यमशीलता विकास सुनिश्चित किया है). ये सभी कार्यक्रम एक बहु-क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए आजीविका सृजन के नए तरीकों को बढ़ावा देता है. आजीविका के विविधीकरण को सुनिश्चित करने और रोजगार सृजन के अप्रयुक्त अवसरों को बढ़ावा देने के लिए गैर-कृषि क्षेत्र के साथ कौशल और क्षमता निर्माण पर अधिक जोर दिया गया है. ग्रामीण स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र, माइक्रो यूनिट डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) जैसे वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर, जमीनी स्तर की महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों तथा अन्य संघबद्ध संस्थानों से लेकर राज्य-स्तरीय प्रशिक्षण संगठनों तक सह संलग्नता और जिला क्षमता निर्माण प्रयासों का प्रतिनिधित्व करता है.

 स्वयं सहायता समूहों और महिला नेतृत्व वाले ग्रामीण स्टार्ट-अप की भूमिका को केंद्रीय बजट 2021 से एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्रोत्साहन मिला है, जिसमें वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने महिलाओं को भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में प्रमुख भागीदार के रूप में वर्णित किया. इसके अनुरूप, केंद्रीय बजट 2021 में, स्वयं सहायता समूह की  प्रत्येक सत्यापित महिला सदस्य जिसका जन-धन बैंक खाता है उसके लिए 5,000 रुपये का ओवरड्राफ्ट  और मुद्रा योजना के तहत एक लाख रुपये तक ऋण की सुविधा देकर सभी जिलों में महिला स्वयं सहायता समूह ब्याज-आर्थिक सहायता कार्यक्रम के विस्तार  का प्रस्ताव किया गया है. ये कदम यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि ग्रामीण महिलाएं वित्तीय समावेशन, जोखिम प्रबंधन, प्रशिक्षण और उद्यमिता पर केंद्रित नीतिगत प्रयासों के अभिसरण से लाभान्वित हो सकें. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप्स के बढ़ने से विभिन्न क्षेत्रों - खाद्य प्रसंस्करण, देखभाल उद्योग, रीसाइक्लिंग, जैविक खेती और स्थानीय शिल्प में उनकी  पहचान बन रही है. इन महिला ग्रामीण उद्यमों ने महिलाओं की समानता और उनके  सशक्तिकरण (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए समावेशी और परस्पर नीतिगत प्रयासों के साथ) के लिए अवसर प्रदान करते हुए, कोविड-19 से निपटने में भारत के प्रयासों में  भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उदाहरण के लिए, 2020 में लॉकडाउन के दौरान, दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन कार्यक्रम के तहत 59,000 स्वयं सहायता समूहों के 2.96 लाख सदस्यों ने लगभग 150 दिनों में 23.37 करोड़ फेस मास्क बनाए और 357 करोड़ रुपये का अनुमानित कारोबार किया. इसके अलावा, अगस्त 2020 तक 29 राज्यों में महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों ने 1.02 लाख लीटर हैंड वाश और 4.79 लाख लीटर से अधिक सैनिटाइजर का उत्पादन कर  अनुमानित रूप से 903 करोड़ रुपये का कारोबार किया. अन्य स्वयं सहायता समूह और ग्रामीण उद्यम, सामुदायिक रसोई संचालन और करोड़ों गरीब लोगों को पका हुआ भोजन परोसने और  सुरक्षात्मक किट विकसित करने में शामिल रहे हैं. चूंकि  भारत महामारी की हर स्थिति से उबरने की सक्षमता हासिल करने की योजना बना रहा है, ऐसे में  महिला ग्रामीण उद्यमों और स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना जारी रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके पास परिवर्तनकारी विकास की कुंजी है.

 

(लेखक स्ट्रेटेजिक इन्वेस्टमेंट रिसर्च यूनिट, इन्वेस्ट इंडिया में शोधकर्ता हैं)