भारत में वित्तीय समावेशन की रफ़्तार
स्थिति, चुनौतियां और आगे का रास्ता
मंजुला वाधवा
संयुक्त राष्ट्र सतत विकास के 2030 के सत्रह लक्ष्यों में से सात, दुनियाभर में वित्तीय समावेशन को, समाज के गरीब और हाशिए के वर्गों के जीवन स्तर में सुधार करके सतत विकास के एक प्रमुख माध्यम के रूप में देखते हैं- इस सार्वभौमिक सत्य को आत्मसात करते हुए, भारत सहित दुनियाभर के देशों ने औपचारिक वित्तीय सेवाओं की सुलभता और उपयोग को बढ़ाने के लिए उपयुक्त रणनीतियां और नीतियां विकसित की हैं. भारतीय रिजर्व बैंक की गणना के अनुसार, वार्षिक वित्तीय समावेशन सूचकांक (एफआईआई), 2017 के 43.4 की तुलना में 5.5 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) दर्ज करते हुए 2020-21 के लिए 53.9 पर रहा था.
वित्तीय समावेशन - परिभाषा
वित्तीय समावेशन को वित्तीय सेवाओं और कमजोर वर्गों तथा निम्न आय समूहों जैसे कमजोर तबकों को सस्ती ब्याज दर पर, समय पर और पर्याप्त ऋण की आपूर्ति सुनिश्चित करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. इनमें बचत, लेन-देन के उद्देश्यों के लिए बैंक खाते और उत्पादक, व्यक्तिगत तथा अन्य उद्देश्यों के लिए कम लागत वाला ऋण, वित्तीय सलाहकार सेवाएं, बीमा, ओवरड्राफ्ट और पेंशन सुविधाएं आदि शामिल हैं.
वित्तीय समावेशन कार्यनीति की आवश्यकता
विश्वभर में वित्तीय समावेशन को तेजी से आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन के प्रमुख वाहक के रूप में पहचाना जा रहा है. औपचारिक वित्त तक पहुंच, रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे सकती है, आर्थिक झटकों की अतिसंवेदनशीलता को कम कर सकती है और मानव पूंजी में निवेश बढ़ा सकती है. औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पर्याप्त पहुंच के बिना, व्यक्तियों और फर्मों को अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने और विकास के अवसर पैदा करने की कोशिश के लिए अपने सीमित संसाधनों पर निर्भर रहने या वित्त के महंगे अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है. वृहद स्तर पर, अधिक से अधिक वित्तीय समावेशन सभी के लिए सतत और समावेशी सामाजिक-आर्थिक विकास में मदद कर सकता है. इस बात के प्रमाण बढ़ रहे हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर समग्र आर्थिक उत्पादन को बढ़ावा देने और गरीबी तथा आय असमानता को कम करने में वित्तीय समावेशन का गुणक प्रभाव कैसे पड़ता है. महिला-पुरुष समानता और महिला आर्थिक सशक्तिकरण के लिए महिलाओं का वित्तीय समावेशन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. एक समावेशी वित्तीय प्रणाली स्थिरता, समग्रता और समान विकास में सहायता करती है. इसके बिना भौतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक जैसी बाधाओं के कारण इस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है.
भारत में वित्तीय समावेशन का इतिहास
भारत में वित्तीय समावेशन की पहल 1954 में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के साथ, पहले अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण के बाद शुरू हुई, उसके बाद 1956 में जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण, 1969 तथा 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण और 1972 में सामान्य बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण हुआ. प्रमुख निजी क्षेत्र के बैंकों के राष्ट्रीयकरण, अग्रणी बैंक योजना की शुरुआत; स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) को बढ़ावा; बैंकिंग अभिकर्ता (बीसी) मॉडल के कार्यान्वयन; शाखा नेटवर्क के विस्तार और भुगतान बैंकों तथा लघु वित्त बैंकों आदि की स्थापना के साथ मिशन को और गति मिली.हालांकि, वित्तीय समावेशन पर वास्तविक जोर 2005 में दिया गया जब भारतीय रिजर्व बैंक ने 2005-06 के अपने वार्षिक नीति विवरण में इसके महत्व पर प्रकाश डाला. बैंकों से आग्रह किया गया कि वे जनता तक पहुंचने की दिशा में काम करें और बैंकिंग सेवाओं को दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाएं. एक नीतिगत पहल के रूप में वित्तीय समावेशन को 2008 में रंगराजन समिति की सिफारिशों के बाद ही बैंकिंग शब्दावली में स्थान मिला, जिसमें आरबीआई ने सभी सार्वजनिक और निजी बैंकों को अप्रैल 2010 से शुरू होने वाली बोर्ड-अनुमोदित, तीन वर्षीय एफआई योजना (एफआईपी) प्रस्तुत करने की सलाह दी थी. इसमें मोटे तौर पर ग्रामीण शाखाओं के संदर्भ में स्वयं निर्धारित लक्ष्य, 2,000 से अधिक और 2,000 से कम आबादी वाले बैंक रहित गांवों में बैंक की शाखाएं खोलना; व्यावसायिक अभिकर्ताओं और सुविधाकर्ताओं की नियुक्ति; वित्तीय सेवाओं के प्रावधान के लिए इलेक्ट्रॉनिक/ कियोस्क मोड का उपयोग नो-फ्रिल खाते खोलने आदि को शामिल किया गया था. वित्तीय सुविधाओं से वंचित वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऋण के वितरण के वास्ते किसान क्रेडिट कार्ड, सामान्य क्रेडिट कार्ड शुरू किए गए थे. इसके अलावा, बैंकों को परामर्श दिया गया था कि वे अपनी व्यावसायिक योजनाओं के साथ एफआईपी को एकीकृत करें और अपने कर्मचारियों के प्रदर्शन मूल्यांकन मेट्रिक्स में एक पैरामीटर के रूप में एफआई पर मानदंड शामिल करें. वित्तीय समावेशन प्राप्त करने के लिए आरबीआई द्वारा अपनाए गए विभिन्न दृष्टिकोण निम्नानुसार हैं:-
हाल के प्रभावी वित्तीय समावेशन उपाय
प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई)- वित्तीय समावेशन में ऐतिहासिक बदलाव अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) की शुरुआत के साथ आया था. आरबीआई के अनुसार, 10 जनवरी 2022 को प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत शुरुआत से ही इसके लाभार्थियों की संख्या 43.04 करोड़ से अधिक हो गई थी. सात वर्षों की छोटी अवधि में प्रधानमंत्री जन धन योजना के अंतर्गत परिवर्तनकारी और साथ ही दिशात्मक परिवर्तन दोनों प्रकार के उपाय किए गए हैं जिससे उभरते हुए वित्तीय समावेशन तंत्र को समाज के अंतिम व्यक्ति-गरीबों में सबसे गरीब को वित्तीय सेवाएं देकर सक्षम बनाया गया है. उल्लेखनीय बात यह है कि 55 प्रतिशत जन-धन खाताधारक महिलाएं हैं और 67 प्रतिशत जन धन खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की बैंक शाखाओं में खोले गए हैं. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लघु वित्त बैंकों और भुगतान बैंकों के लिए लाइसेंस जारी करने से इस योजना को और गति मिली. वित्त मंत्रालय और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ने संयुक्त रूप से जन-धन दर्शक नामक एक मोबाइल ऐप विकसित किया है, जिसका उद्देश्य आम लोगों को वित्तीय सेवाएं सुगमता से प्राप्त करने में सक्षम बनाना है. मोबाइल-बैंकिंग और भारतीय डाक की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है. 154000 से अधिक डाकघरों के साथ, जिनमें से 90 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, यह वह मित्रवत डाकिया है जिससे आप प्रतिदिन मिलते हैं, वह आपका बैंकिंग संबंध प्रबंधक हो सकता है.वित्तीय समावेशन के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफआई) 2019-24- सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श और प्राप्त फीडबैक के आधार पर 2019-2024 की अवधि में वित्तीय समावेशन के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति को वित्तीय समावेशन सलाहकार समिति के तत्वावधान में रिजर्व बैंक द्वारा तैयार किया गया था और वित्तीय स्थिरता विकास परिषद द्वारा व्यापक रूप से अनुमोदित किया गया था. वित्तीय समावेशन के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति 2019-2024 के अंतर्गत वित्तीय क्षेत्र में सभी हितधारकों को शामिल करते हुए कार्रवाई के व्यापक अभिसरण के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय समावेशन प्रक्रिया का विस्तार करने और बनाए रखने में मदद करने के लिए भारत में वित्तीय समावेशन नीतियों के दृष्टिकोण और प्रमुख उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है. इस कार्यनीति का उद्देश्य औपचारिक किफायती वित्तीय सेवाओं तक पहुंच प्रदान करना, वित्तीय समावेशन को व्यापक तथा गहरा करना और वित्तीय साक्षरता तथा उपभोक्ता संरक्षण को बढ़ावा देना है.
कृषि क्षेत्र में वित्तीय समावेशन - 2011 की जनगणना के अनुसार, 2011 में देश में केवल 58.7 प्रतिशत परिवार बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा रहे थे. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 70वें दौर के सर्वेक्षण से पता चलता है कि ऋण के संस्थागत और गैर-संस्थागत स्रोत की हिस्सेदारी लगभग समान - क्रमश: 49 प्रतिशत और 51 प्रतिशत है. पूर्व श्रेणी में, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल, पंजाब आदि राज्यों में सहकारी समितियों से 1/3 से अधिक ऋण आते हैं. दक्षिणी राज्यों में, वाणिज्यिक बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों ने किसानों को ऋण प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाई है. इसके बावजूद अब भी छोटे और सीमांत किसान, विशेष रूप से, काफी हद तक साहूकारों पर निर्भर हैं.
· रू पे - नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया द्वारा 2012 में पेश किया गया यह भारतीय डेबिट कार्ड, बेहतर डिजिटल अवसंरचना बनाने में परिवर्तनकारी साबित हुआ और इससे डेबिट कार्ड संस्कृति को तेजी से बढ़ावा मिला.
· स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) - बैंक लिंकेज कार्यक्रम- यह कार्यक्रम नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) द्वारा 1992 में शुरू किया गया था, जो कि वंचितों तक पहुंचने के लिए वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को प्राप्त करने में वैकल्पिक ऋण वितरण तंत्र के रूप में, उल्लेखनीय मील का पत्थर साबित हुआ है. नाबार्ड की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 112 लाख स्वयं सहायता समूह, अर्ध-शहरी और ग्रामीण भारत के कोने-कोने में काम कर रहे हैं, यह कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा माइक्रो क्रेडिट प्रोग्राम बन गया है.
· संयुक्त देयता समूह योजना - नाबार्ड द्वारा 2004 में शुरू की गई यह एक और संस्थागत योजना है, जो भूमिहीन / पट्टेदार किसानों, जबानी पट्टेदारों को केवल संयुक्त उपक्रम के आधार पर बैंकिंग प्रणाली से उत्पादक उद्देश्यों के लिए संपार्शि्वक मुक्त ऋण सुरक्षित करने में सक्षम बनाता है
· बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट मॉडल - आरबीआई ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सभी स्थानों पर बैंक शाखाएं खोलना व्यवहार्य नहीं हो सकता है, जनवरी 2006 में, बैंकों को दूरस्थ क्षेत्रों में बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं प्रदान करने के लिए बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट और बिजनेस फैसिलिटेटरों की नियुक्त करने की अनुमति दी थी. अब तक, 12.4 लाख से अधिक बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट कार्यरत हैं. ग्रामीण जनता को बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करने में सहकारी बैंकों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए, अब भी औपचारिक बैंकिंग के दायरे से बाहर, व्यावसायिकता बढ़ाने, पूंजी तक पहुंच को सक्षम करने तथा संचालन में सुधार और आरबीआई के माध्यम से मज़बूत बैंकिंग के लिए बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 में कुछ संशोधन किए गए हैं.
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण - यह एक और पहल है जिसे 1 जनवरी 2013 को लोगों को सीधे उनके बैंक खातों में सब्सिडी अंतरित करने के लिए शुरू किया गया था.
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: नवोदित उद्यमियों से लेकर मेहनती किसानों तक सभी हितधारकों की ऋण जरूरतों को भी 2015 में शुरू की गई प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के माध्यम से पूरा किया गया है. इस योजना के तहत, दस लाख रुपये तक का संपार्शिवक मुक्त ऋण, औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के दायरे में 'वित्तीय रूप से बहिष्कृत’ लोगों को लाने की दृष्टि से सदस्य ऋणदाता संस्थाओं यानी बैंकों, एमएफआई और एनबीएफसी द्वारा दिया जाता है. इसने स्वाभिमान और स्वतंत्रता के साथ, लाखों लोगों के सपनों और आकांक्षाओं को पंख दिए हैं. बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने पिछले छह वर्षों में 28.68 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि के ऋणों को मंजूरी दी है.
स्टैंड-अप इंडिया योजना: यह योजना ग्रीनफील्ड उद्यम स्थापित करने के लिए प्रति बैंक शाखा से अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के कम से कम एक उधारकर्ता और कम से कम एक महिला उधारकर्ता को 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच बैंक ऋण की सुविधा प्रदान करती है. वित्त मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार कुल 30294.65 करोड़ रुपये के ऋण के लिए 134596 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं. इस योजना के तहत ऋण के लिए मार्जिन मनी की आवश्यकता को 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत तक कर दिया गया है और कृषि से जुड़ी गतिविधियों को योजना में शामिल किया गया है. साथ ही योजना की अवधि को भी 2025 तक बढ़ा दिया गया है.
सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्योग- एमएसएमई और लघु तथा मध्यम उद्योग के लिए उपाय: केंद्र सरकार ने इस सच्चाई को अच्छी तरह से महसूस किया है कि वित्तीय समावेशन के लिए अत्यधिक व्यवहार्य और बाजार सिद्धांत आधारित समाधान सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और असंगठित क्षेत्रों की उनकी बैंक क्षमता और, इस प्रकार, उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता में भी सुधार करके उनकी अप्रयुक्त क्षमता को उजागर करने में निहित है. समावेशी आर्थिक विकास और प्रगति पर ध्यान देने के साथ यह प्रभावी रूप से एक 'गुणक प्रभाव’ मॉडल है. इस उद्देश्य के साथ, केंद्रीय बजट 2022-23 के अनुसार, आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) को मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया है और इसके गारंटी कवर को 50,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाया गया है, जिससे कुल कवर 5 लाख करोड़ रुपये तक हो जाएगा. एमएसएमई और एसएमई सेगमेंट द्वारा फिनटेक को अपनाने को बढ़ावा देने के प्रोत्साहन ने उन्हें बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं तक आसान पहुंच प्राप्त करने में सक्षम बनाया है. फिनटेक नवाचारों पर सरकार का ध्यान और उनके प्रस्ताव को लगातार बढ़ाने के लिए आवश्यक सहायता ने वित्तीय समावेशन करने के लिए भविष्य के निवेश का मार्ग प्रशस्त किया है.
अब तक बिना कवर किए गए लोगों के लिए बीमा और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं: अप्रत्याशित आपात स्थितियों के मामलों में कमजोर वर्गों को तैयार रहने में मदद करने के लिए प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेबीवाई) तथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई), असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक अन्य प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजना -अटल पेंशन योजना, बेटी की शिक्षा और विवाह आदि के लिए एक लघु बचत योजना -सुकन्या समृद्धि योजना, भारत सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में वित्तीय समावेशन एजेंडा के वितरण को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण मील के पत्थर हैं.
वित्तीय समावेशन में प्रौद्योगिकी
सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के वर्तमान युग में, यह स्पष्ट है कि अन्य उपायों के अलावा, वित्तीय समावेशन और साक्षरता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रौद्योगिकी का दृढ़ता से लाभ उठाया जा सकता है. जैसा कि 11: एफएस के संस्थापक और सीईओ डेविड ब्रेयर ने उपयुक्त रूप से कहा, 'तकनीकी नवाचार आने वाले कई वर्षों तक बैंकिंग उद्योग का दिल और रक्त होगा और यदि बड़े बैंक इसका अधिकतम लाभ नहीं उठाते हैं, तो फिनटेक के नए खिलाड़ी और बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां निश्चित रूप से इसका लाभ उठाएंगे.’
प्रौद्योगिकी की बदौलत डिजिटल वित्तीय सेवाओं को बढ़ावा देने में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ है. जन धन, आधार और मोबाइल (जेएएम) इको सिस्टम ने वित्तीय समावेशन के परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है. इसके अलावा, जमीनी स्तर पर डिजिटल बुनियादी ढांचे को सक्षम बनाने और सुविधाजनक, सुरक्षित तथा किफायती तरीके से डिजिटल भुगतान को सार्वभौमिक बनाने की दिशा में प्रगति में तेजी लाने के लिए कई पहल की गई हैं. खाता खोलने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए ई-केवाईसी का उपयोग, इंटरऑपरेबिलिटी के लिए आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली का उपयोग, वित्तीय साक्षरता केंद्रों की स्थापना के लिए सहायता, बैंकिंग तकनीक (एटीएम से लैस मोबाइल-वैन) के प्रदर्शन के लिए सहायता, नाबार्ड द्वारा सभी सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सीबीएस (कोर बैंकिंग सिस्टम) प्लेटफॉर्म पर लाना, फिनो, ईकेओ, नोकिया, इंटेग्रा, ए लिटिल वर्ल्ड जैसी वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियों को भी मिशन में शामिल किया गया है.
· डिजिटल इंडिया: भुगतान के बुनियादी ढांचे के साथ डिजिटल इंडिया पहल, एक डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए आधारशिला रख रही है. इंटरनेट का उपयोग करने के लिए लोगों की बढ़ती इच्छा और देश में बढ़ते डेटा ट्रैफिक को ध्यान में रखते हुए, सभी जगह इंटरनेट कनेक्टिविटी, सरकारी सेवाओं तक बेहतर पहुंच और आईटी कौशल विकास तथा 250,000 ग्राम-समूहों के लिए ब्रॉडबैंड इंटरनेट का प्रावधान के वास्ते 18.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया है. व्यक्तिगत उपभोग व्यय के लिए डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के वास्ते दो योजनाएं अर्थात लकी ग्राहक योजना और डिजी व्यापार योजना को क्रमश: उपभोक्ताओं और व्यापारियों के लिए वित्तीय समावेशन कोष के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था.
· आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस): नैशनल पेमेंट्स कारपोरेशन ऑफ इंउिया (एनसीपीआई) द्वारा विकसित, आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली व्यक्तिगत आधार कार्ड (डेबिट या क्रेडिट कार्ड के बजाय आधार कार्ड का उपयोग किया जा सकता है) पर आधारित भुगतान सेवा है जो कार्डधारक को वित्तीय लेनदेन जैसे ट्रांसफर फंड, भुगतान करना, नकद जमा करना, निकासी आदि के लिए सक्षम बनाता है. एईपीएस बैंक अज्ञेयवादी है और ग्राहक को आधार-आधारित तथा बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण का उपयोग करके बिक्री के किसी भी बिंदु या माइक्रो एटीएम से लेनदेन करने में सक्षम बनाता है. नीति आयोग ने योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग पर चर्चा की है क्योंकि ग्राहकों की सहायता, सुरक्षित भुगतान सुनिश्चित करने, झूठी अस्वीकृति को समाप्त करने आदि के लिए बहुभाषी चैटबॉट के निर्माण की गुंजाइश है.
· भुगतान बैंक: भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा परिकल्पित बैंकिंग के नए मॉडल का उद्देश्य देश के दूरदराज के क्षेत्रों में सुरक्षित प्रौद्योगिकी संचालित वातावरण में छोटे व्यवसायों, कम आय वाले परिवारों और प्रवासी श्रमिक कार्यबल के लिए भुगतान और वित्तीय सेवाओं के प्रसार को व्यापक बनाना है. 50 करोड़ से अधिक भारतीयों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पैठ का लाभ उठाते हुए, तात्कालिकता, सुरक्षा और दक्षता के साथ बैंकिंग सुविधाओं का लाभ उठाते हैं. यह विशेष रूप से ग्रामीण मोबाइल ग्राहकों के बड़े वर्ग के लिए बैंकिंग और भुगतान सेवाओं की पहुंच का विस्तार करने के लिए कम लागत वाला एक अभिनव चैनल प्रदान करता है.
· दूरदराज के क्षेत्रों के लिए वी-सैट: चूंकि कनेक्टिविटी और बिजली के मुद्दे विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, बैंकिंग सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं, पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) और अंडमान- निकोबार द्वीप समूह के सभी सहकारी बैंकों को सहायता के लिए 'वित्तीय समावेशन कोष’ से वित्त पोषण के साथ सौर ऊर्जा संचालित वी-सैट के लिए पात्र बनाया गया है. पहचान किए गए वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित जिलों में प्रति जिले 7 शाखाओं तक सीमित नई शाखाएं खोलने के लिए सभी बैंकों को वी-सैट कनेक्टिविटी सहायता भी प्रदान की गई है.
वित्तीय शिक्षा पहल
अधिक वित्तीय समावेशन के साथ, ग्राहक सुरक्षा और वित्तीय शिक्षा को बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि लोग बिना किसी हिचकिचाहट के औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बना सकें. यह बताने की जरूरत नहीं है कि विनियमित संस्थाओं के माध्यम से उचित वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के बारे में अधिक जागरूकता और उन तक पहुंच को सक्षम करके मांग पक्ष प्रतिक्रिया बनाने में वित्तीय शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. वित्तीय शिक्षा के माध्यम से व्यक्तियों और उनके परिवारों के वित्तीय लचीलेपन को भी मजबूत किया जा सकता है. इन बहुउद्देश्यीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं.
वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफई 2020-2025) - वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति (2020-2025) ने आर्थिक रूप से जागरूक और सशक्त भारत बनाने का एक महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण निर्धारित किया है. यह वित्तीय संस्थानों (बैंक और गैर-बैंक दोनों), शैक्षणिक संस्थानों, उद्योग निकायों और अन्य हितधारकों के लिए बड़ी भूमिका के माध्यम से बैंकिंग, बीमा, पेंशन और निवेश में वित्तीय शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है. विभिन्न लक्षित समूहों (स्कूली बच्चों, शिक्षकों, युवा वयस्कों, महिलाओं, कार्यस्थल पर नए प्रवेशकों/उद्यमियों (एमएसएमई), वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांग व्यक्तियों, निरक्षर लोगों, आदि), तक पहुंचने के लिए, नवीन तकनीकों और डिजिटल मोड ग्राहकों की विशिष्ट श्रेणियों के लिए लक्षित मॉड्यूल सहित वितरण की परिकल्पना की गई है. इसके अलावा, डिजिटल वित्तीय सेवाओं के सुरक्षित उपयोग और शिकायत निवारण उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है. साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के महत्व को ध्यान में रखते हुए, वित्तीय शिक्षा में प्रगति का आकलन करने के लिए मूल्यांकन विधियों को भी रणनीतिक उद्देश्यों में से एक के रूप में पहचाना गया है. रणनीति में प्रासंगिक सामग्री (स्कूलों, कॉलेजों और प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों में पाठ्यक्रम सहित) के विकास पर जोर देकर वित्तीय शिक्षा का प्रसार; वित्तीय सेवाएं और शिक्षा प्रदान करने वालों का क्षमता निर्माण, उपयुक्त संचार रणनीति के माध्यम से वित्तीय साक्षरता के लिए समुदाय आधारित मॉडल के सकारात्मक प्रभाव का लाभ उठाना; और विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग बढ़ाना शामिल हैं.
वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र (एनसीएफई) - वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय कार्यनीति के अनुसार पूरे भारत में जनसंख्या के सभी वर्गों के लिए वित्तीय शिक्षा को बढ़ावा देने के वास्ते चार वित्तीय क्षेत्र नियामकों द्वारा (लाभ के लिए नहीं) कंपनी के रूप में वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की गई है. यह केंद्र देशभर में सेमिनार, कार्यशालाओं, सम्मेलनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, अभियानों आदि के माध्यम से वित्तीय शिक्षा अभियान चलाता है ताकि लोगों को अधिक प्रभावी ढंग से धन का प्रबंधन करने और इस प्रक्रिया में वित्तीय लाभ प्राप्त करने में मदद मिल सके.
वित्तीय साक्षरता केंद्र (सीएफएल) परियोजना - यह परियोजना सामुदायिक दृष्टिकोण के माध्यम से वित्तीय शिक्षा प्रदान करने का एक अभिनव तरीका है. सीएफएल परियोजना की संकल्पना 2017 में आरबीआई द्वारा ब्लॉक स्तर पर वित्तीय साक्षरता के लिए एक अभिनव और सहभागी दृष्टिकोण के रूप में की गई है जिसमें चुनिंदा बैंक और गैर सरकारी संगठन शामिल हैं. शुरुआत में प्रायोगिक आधार पर 100 ब्लॉकों में स्थापित, इस परियोजना को अब मार्च 2024 तक चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में हर ब्लॉक में बढ़ाया जा रहा है. यह 4 दिसंबर 2020 को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के हिस्से के रूप में की गई घोषणाओं में से एक थी. परियोजना की परिकल्पना वित्तीय समावेशन के साथ-साथ शिक्षा के प्रतिमान को बदलने के लिए की गई है ताकि मांग पक्ष पर समुदाय की अधिक भागीदारी और ग्रहणशीलता सुनिश्चित की जा सके और आपूर्ति पक्ष पर संस्थागत पहल के विस्तार के साथ संरेखित किया जा सके.पिछले कुछ वर्षों में, कोविड-19 से संबंधित राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के एकत्रित होने पर प्रतिबंध के परिणामस्वरूप पारंपरिक वित्तीय साक्षरता शिविर आयोजित करने में बाधा उत्पन्न हुई. इस अवधि के दौरान, वित्तीय शिक्षा के प्रसार को जारी रखने के लिए देशभर में सोशल मीडिया, मास मीडिया (स्थानीय टीवी चैनलों, रेडियो सहित) का उपयोग करना, स्थानीय स्कूल शिक्षा बोर्डों तक पहुंचना, स्वयं सहायता समूहों के प्रशिक्षण मिशन जैसे विभिन्न उपाय शुरू किए गए.
वित्तीय समावेशन को सुविधाजनक बनाने वाले बजट उपायों के प्रभाव
आइए हम ग्रामीण वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पिछले तीन वर्षों के केंद्रीय बजट में की गई घोषणाओं के निहितार्थों पर विचार करें. नए उभरते क्षेत्रों में ज्ञान हस्तांतरण केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं. क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोगों पर राष्ट्रीय मिशन के लिए पांच वर्षों में कुल 8,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है. सरकार की दृष्टि सभी सार्वजनिक संस्थानों, बैंकों के साथ-साथ आंगनवाड़ी केंद्रों, स्वास्थ्य तथा आरोग्य केंद्रों, डाकघरों और अन्य ग्रामीण कल्याण केंद्रों तक 100 प्रतिशत डिजिटल पहुंच प्रदान करना है. भारतनेट के माध्यम से फाइबर-टू-होम का लक्ष्य 2,50,000 ग्राम पंचायतों को जोड़ना है. वित्तीय बहिष्करण को दूर करने की दिशा में प्रस्तावित एक और कदम अधिक से अधिक स्वयं सहायता समूहों को जुटाना है.यदि हम केंद्रीय बजट 2022-23 को देखें, तो यह पहले से कहीं अधिक डिजिटीकरण और वित्तीय समावेशन पर केंद्रित है. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा 75 जिलों में 75 डिजिटल बैंकिंग प्रणालियों की शुरूआत से उपभोक्ता-अनुकूल तरीके से जनसंख्या को डिजिटल रूप से सशक्त बनाया जाएगा, जिससे अंतर-संचालन और वित्तीय समावेशन में सहायता मिलेगी. फिनटेक में वंचित वर्गों को मजबूत करने और देश के कोने-कोने तक पहुंचने की अपार संभावनाएं हैं. इससे कई उपभोक्ता अपनी सुविधानुसार पहली बार डिजिटल बैंकिंग का अनुभव कर सकेंगे. डिजिटल बैंकिंग, उधार, संग्रह और भुगतान ने वित्तीय समावेशन को बढ़ाने में प्रभावी रूप से योगदान दिया है और यह देश के लिए प्रमुख क्षेत्र रहा है. डिजिटल ऋण संग्रह डिजिटीकरण की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है. जब ग्राहक अपनी जरूरतों के लिए विशिष्ट डिजिटल अनुभवों से सशक्त होते हैं, तो ऋण वसूली प्रक्रिया सहज और परेशानी रहित हो जाती है. डिजिटीकृत ऋण संग्रह दृष्टिकोण उनकी शर्तों पर ऋण को हल करने के विकल्पों के साथ बुद्धिमान व्यक्तिगत अनुभव प्रदान करके वित्तीय समावेशन को सुविधाजनक बनाने में सहायता कर सकता है. ऋण वसूली परंपरागत रूप से एक श्रमसाध्य कार्य रहा है और हमेशा अपेक्षाओं से कम रहा है. हालांकि, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग जैसी तकनीकों में प्रगति के साथ, ऋण संग्रह काफी विकसित हो सकता है. इस तरह की प्रौद्योगिकियां ग्राहकों तक उनकी पसंदीदा भाषा के माध्यम से पहुंच से ऋण वसूली प्रक्रिया को आसान बनाने में सहायता कर सकती हैं. इसके अतिरिक्त, डाकघर, कोर बैंकिंग प्रणाली से वित्तीय समावेशन तथा नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, एटीएम के माध्यम से खातों तक पहुंच और डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच धन के ऑनलाइन हस्तांतरण को सक्षम किया गया है.
निष्कर्ष
भारत ने वित्तीय समावेशन की दिशा में बड़े पैमाने पर कदम उठाए हैं. वित्तीय संस्थानों में खाता रखने के मामले में औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल होने वाले लोगों का अनुपात 2011 के बाद से दोगुना से अधिक हो गया है. नवीनतम ग्लोबल फिनडेक्स डेटाबेस के अनुसार, 80 प्रतिशत से अधिक वयस्क भारतीयों के बैंक खाते हैं. ये देश के लिए श्रेयस्कर उपलब्धियां हैं. हालांकि, एक विशिष्ट पहचान प्राप्त करना, एक बैंक खाता होना और डिजिटल भुगतान का उपयोग करना केवल वित्तीय समावेशन की नींव है. अब इन बुनियादी बातों पर ध्यान दिया गया है, सरकार और निजी क्षेत्र को आर्थिक समृद्धि की एक अधिरचना के निर्माण के लिए अगले कदम उठाने चाहिए. वास्तविक वित्तीय समावेशन के इस सबसे महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों द्वारा निम्नलिखित महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:-
· वित्तीय फर्मों को बाजार को समझना चाहिए और तदनुसार उत्पादों की संरचना करनी चाहिए. चूंकि कृषि आय मौसमी और एकमुश्त होती है, इसलिए किसान को उधार देते समय, उन्हें ऐसे ऋण की संरचना करने की आवश्यकता होती है, जिसमें भुगतान चक्र मौसमी हो न कि मासिक.
· भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में, बाजार की गहरी समझ तभी आ सकती है जब फर्मों का व्यापक वितरण हो और वे स्थानीय रूप से उन लोगों की भर्ती करें जो उस समुदाय की सांस्कृतिक और आर्थिक बारीकियों से परिचित हों जिसमें वे काम करते हैं.
· सरकार और विभिन्न वित्तीय उत्पादों के प्रदाताओं के बीच साझेदारी समय की आवश्यकता है ताकि सीमांत आबादी के साथ काम करने के जोखिम और प्रतिफल साझा किया जा सकें.
· वित्तीय साक्षरता के इस अभियान के लिए एक बहुआयामी, बॉटम-अप दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी. वित्तीय समावेशन को स्कूल से लेकर शिक्षा के उच्च स्तर तक विभिन्न स्तरों पर अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करने के लिए आरबीआई और बैंकों को राज्य शिक्षा बोर्ड (एसईबी), केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) जैसे संस्थानों के साथ समन्वय करना चाहिए, ताकि छात्रों की अगली पीढ़ी ऋण चुकाने की अच्छी संस्कृति के पोषण के महत्व के बारे में जागरूक हो और समाज डिजिटल रूप से जानकार बन जाए
· वर्तमान में वित्तीय समावेशन में लगे एनजीओ, कॉरपोरेट सेक्टर, बैंक, एनबीएफसी और सरकारी विभागों को इस पर जोर देने के लिए राजी किया जाना चाहिए. जब तक वित्तीय समावेशन बुनियादी ढांचे का उपयोग, जन एजेंडा नहीं बन जाता, तब तक समाज को वास्तविक लाभ नहीं मिल सकता है. वैश्विक अनुसंधान ने पहले ही वित्तीय जागरूकता के माध्यम से गरीबी उन्मूलन को वित्तीय समावेशन से जोड़ा है. वित्तीय समावेशन के बुनियादी ढांचे के निर्माण में भारी मात्रा में निवेश करने के बाद, समावेशन की अगली लहर में लाभार्थियों को अपने आर्थिक और सामाजिक कल्याण में सुधार के लिए वित्तीय सेवाओं तक पहुंच का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.
(लेखक, नाबार्ड, हरियाणा क्षेत्रीय कार्यालय, चण्डीगढ़ में उप महा प्रबंधक हैं. उनसे manjula.jaipur@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है)
(संदर्भ: rbi.in, worldbank.org व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.