नई विश्व व्यवस्था में भारत
वैश्विक नेतृत्व के लिए दिशा की रूपरेखा तैयार करना
हर्ष वी पंत
पिछले साल, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा और ग्रेट ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। ऐसा लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का दीर्घकालिक प्रक्षेपपथ तय हो गया है और उम्मीद है कि भारत 2027 तक जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। यह और भी उल्लेखनीय होगा कि चार शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से तीन - चीन, जापान और भारत, हिंद-प्रशांत से होंगी।
भारतीय नीति-निर्माताओं ने भी ’चीन के बाद वैश्विक विकास के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण वाहक’ के रूप में भारत की उभरती भूमिका को रेखांकित किया है, भारत का विकास मुख्य रूप से घरेलू बचत द्वारा वित्तपोषित है। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में चीन की 18 प्रतिशत और अमरीका की 16 प्रतिशत भागीदारी की तुलना में, भारत की पहले से ही 7 प्रतिशत है। यह ऐसे समय में हो रहा है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों, विश्वव्यापी आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान डालने वाली चीन की शून्य-कोविड रणनीति और रूस-यूक्रेन संघर्ष के परिणामस्वरूप नकारात्मक तथा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर ़ रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था आंशिक रूप से सरकारी प्रयासों और अपनी अनूठी संरचना के कारण परिवर्तशील बनी हुई है।
वास्तव में, सुधार की गुंजाइश भी है, और जैसा कि विशेषज्ञों ने बताया है, भारत की प्रति व्यक्ति आय तेजी से आर्थिक विकास करने वाले देशों से काफी पीछे है। प्रगति की वर्तमान दर को बनाए रखने के लिए और इसे केवल कोविड पश्चात के उछाल के रूप में मानने से बचने के लिए, एक केंद्रित नीति प्रयास को लागू करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, कुछ वैश्विक निर्दिष्ट स्थानों पर निवेशकों का रुझान कम हो रहा है, इसलिए नीति निर्माताओं को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
भारत की यही आर्थिक गति उसे आज वैश्विक राजनीति में एक अलग स्थान भी दिलाती है। यही कारण है कि पश्चिम, कुछ मुद्दों पर भारत के साथ मतभेदों के बावजूद, भारत के साथ लगातार जुड़ा हुआ है। वास्तव में, पश्चिम में भारत के प्रति नकारात्मक प्रेस के बावजूद पश्चिम के साथ भारत के संबंध काफी बढ़े हैं। जहां पश्चिम में पत्रकार अपने अल्पकालिक दृष्टिकोण को अपनाए हुए हैं, वहीं वहां के नीति-निर्माता, 21 वीं सदी में एक विश्वसनीय भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक खिलाड़ी के रूप में भारत के उदय की वास्तविकता को पहचानते हैं ।
पश्चिम के साथ भारत की दोस्ती जहां पनप रही है, वहीं वह रूस के साथ भी स्थायी संबंध बनाए हुए है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उसके नाजुक संतुलन का प्रदर्शन करता है। रूस के राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन पश्चिम को यह दिखाना चाहते हैं कि पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करने के बावजूद वह अलग-थलग नहीं हैं, क्योंकि चीन और भारत दोनों प्रमुख सहयोगी के रूप में उनके साथ खड़े हैं। चीन के साथ रूस के मजबूत गठबंधन के बावजूद, भारत तथा रूस के साझा रक्षा हितों और क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधन के कारण रूस के साथ संचार चैनलों का पोषण करना भारत के लिए महत्वपूर्ण है। रूस के साथ अपनी साझेदारी के महत्व को समझना भारत के लिए भी प्रासंगिक है ताकि अभेद्य रूस-चीन गठबंधन के संभावित जोखिमों से बचा जा सके।
इसके अलावा, भारत वर्तमान में चीन के साथ अपनी अनूठी कठिनाइयों का सामना करते हुए खुद को ’भूराजनीतिक अनुकूल स्थिति’ में पाता है। भारत ने अटूट दृढ़ संकल्प के साथ, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मजबूत रुख अपनाया है, जिससे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अजेय प्रभुत्व के दावे को प्रभावी ढंग से खारिज कर दिया गया है। भारत के दृढ़ रुख का दूरगामी प्रभाव पड़ा है, जिससे न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बल्कि उससे परे भी चीन की चालों के खिलाफ व्यापक प्रतिरोध को प्रेरणा मिली है। . इसने चीन की आंतरिक चुनौतियों को और अधिक बढ़ा दिया है और चीन के भीतर ही आंतरिक एकीकरण की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
यह भारत के लिए लाभ की स्थिति है जिसका उसे विवेकपूर्ण ढंग से दोहन करना चाहिए। भारत को सार्थक बाहरी जुड़ावों और साझेदारियों के माध्यम से अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए शक्ति के मौजूदा संतुलन का लाभ उठाना चाहिए। महत्वपूर्ण गठबंधन बनाने से न केवल वैश्विक मंच पर भारत की वृद्धि और प्रभाव में योगदान होता है, बल्कि भारत अपने विरोधियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में भी सक्षम होता है। भारत सरकार ने हाल के वर्षों में अपने हितों को सुरक्षित रखने और सार्थक रिश्तों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस रास्ते को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है।
इसने प्रमुख वैश्विक खिलाड़ियों के साथ साझेदारी बनाई है और कुछ कठिन परिस्थितियों से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम हुआ है। यूक्रेन संकट और अलग-अलग नजरिए के बावजूद, पिछले कुछ वर्षों में अपने पश्चिमी साझेदारों के साथ भारत के संबंध और मजबूत हुए हैं। दरअसल, रिश्ता लगातार बढ़ता जा रहा है, हालांकि यूक्रेन युद्ध पर भारत और अमरीका के दृष्टिकोण अलग-अलग रहे हैं, भारत सार्वजनिक रूप से रूसी आक्रामकता की निंदा करने का अनिच्छुक रहा है और लगातार रूसी तेल खरीदता रहा है। फिर भी अमरीका भारतीय चिंताओं के प्रति संवेदनशील रहा है और जब रूस की बात आती है तो वह अब भारतीय बाधाओं को अधिक अच्छी तरह समझता हैं। हाल ही में मोदी-बाइडन के संयुक्त बयान में यूक्रेन में संघर्ष पर चिंता व्यक्त करते हुए ’अंतर्राष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों और क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता के लिए सम्मान’का आह्वान किया गया।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमरीका यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने एक महत्वाकांक्षी एजेंडा तैयार किया है जिसमें सेमिकंडक्टर, महत्वपूर्ण खनिज, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष सहयोग और रक्षा विनिर्माण तथा बिक्री तक फैली विविध रेंज शामिल है। आज उनके द्विपक्षीय संबंधों में सुगमता, बड़ी तस्वीर को ध्यान में रखने और सामरिक मतभेदों के कारण व्यापक सहमति को पटरी से नहीं उतरने देने की उनकी संयुक्त प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। अमरीका को यह समझने में कुछ समय लगा है कि एक गैर-संधि गठबंधन भागीदार के रूप में भारत के साथ व्यवहार करने के लिए अलग नियमों और अपेक्षाओं की आवश्यकता होगी। भारत के लिए, यह सुनिश्चित करना, सीखने का एक अवसर रहा है कि भारत न केवल मौजूदा वैश्विक व्यवस्था की आलोचना कर रहा है, बल्कि वैश्विक अव्यवस्था के प्रबंधन के लिए समाधान प्रदान करने में भी पूर्ण भागीदार है।
ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी सरकारें भारत की चुनौतियों को पर्याप्त रूप से समझती हैं, और इसलिए, एक विडंबनापूर्ण तरीके से, मौजूदा भू-राजनीतिक संकट ने भारत और पश्चिम दोनों को करीब आने और एक-दूसरे के साथ अधिक महत्वपूर्ण रूप से जुड़ने का साधन प्रदान किया है।
निःसंदेह, शक्ति के वैश्विक संतुलन में व्यापक संरचनात्मक बदलाव आ रहा है। वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र के गुरुत्वाकर्षण का केंद्र अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मजबूती से स्थित होने के कारण, इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों को अब अंततः अपने आप सही हो जाने वाली और केवल उत्तेजना पैदा करने वाली के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। चीन की आक्रामकता ने वैश्विक शक्तियों के लिए प्रतिक्रिया देना और क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था की मांग के लिए एक साथ आना अनिवार्य बना दिया है।
पश्चिम के इस बदलते दृष्टिकोण में अधिक महत्वपूर्ण तत्व बिल्कुल भी पश्चिम के बारे में नहीं है, बल्कि अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं के प्रति भारत की प्रतिक्रिया के बारे में है। आज के आत्मविश्वासी भारत के पास वैश्विक क्षितिज पर एक नई आवाज है जो स्पष्ट, घरेलू वास्तविकताओं और सभ्यतागत लोकाचार के साथ-साथ अपने महत्वपूर्ण हितों की खोज में दृढ है़। जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने टिप्पणी की है, दुनिया को खुश करने की कोशिश करने के बजाय ’हम कौन हैं’ के आधार पर दुनिया के साथ जुड़ना बेहतर है। यदि भारत अपनी पहचान और प्राथमिकताओं को लेकर आश्वस्त है, तो दुनिया भारत के साथ उसकी शर्तों पर जुड़ेगी। पिछले कुछ वर्षों में, भारत को अपने विरोधियों को चुनौती देने और अतीत के वैचारिक बोझ के बिना अपने दोस्तों को साथ लाने में कोई गुरेज नहीं हुआ है। 2014 तक चीनी राष्ट्रपति श्री शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड पहल को चुनौती देने वाली एकमात्र वैश्विक शक्ति होने, चीनी सैन्य आक्रामकता का जवाब मजबूती के साथ देने से लेकर, अमरीका के साथ पूरी तरह से गठबधन बनाए बिना काम करने की कोशिश करने तक, घरेलू क्षमताओं के निर्माण के लिए पश्चिमी दुनिया को शामिल करने के लिए, भारत मूल रूप से व्यावहारिक रहा है और अपने लाभ के लिए शक्ति के मौजूदा संतुलन का उपयोग करने के लिए तैयार है।
भारत का वैश्विक नेतृत्व बड़े विचारों वाला रहा है। इसकीे जी20 अध्यक्षता का उद्देश्य दुनिया को ध्रुवीकरण से दूर एकजुटता की एक बड़ी भावना की ओर ले जाना है। बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र होने की इसकी अपनी वास्तविकता को वैश्विक चुनौतियों पर विचार करने और कार्य करने के लिए अत्यधिक विविध हितधारकों को एक साथ लाने में अच्छी तरह से मार्गदर्शन करना चाहिए। जी20 इंडिया 2023 की थीम - ’वसुधैव कुटुंबकम’ एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य - वैश्विक व्यवस्था की भारत की अवधारणा और उसमें अपनी भूमिका को समाहित करती है। भारत ने दिखा दिया है कि वह केवल बयानबाजी पर केंद्रित नहीं है।
2020 में, जैसे ही पहली बार कोविड-19 बढ़ा, भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक साथ काम करने और कम संसाधनों से जूझ रहे लोगों की मदद करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जबकि विकसित देशों ने अपने देश पर ध्यान केंद्रित किया, उनमें से कुछ ने अपने प्रत्येक वयस्क को पांच बार टीका लगाने के लिए पर्याप्त टीके जमा कर लिए।
जी20 इस मायने में अद्वितीय है कि यह वैश्विक संचालन चुनौतियों पर चर्चा करने और समाधान निकालने के लिए विकसित और विकासशील देशों को एक साथ लाता है। भारत प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर सर्वसम्मति बनाकर इस विभाजन को प्रभावी ढंग से पाट सकता है। भारत, ऐसे समय में ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं को आवाज देने में मुखर रहा है, जब कुछ वैश्विक शक्तियों के पास सबसे कमजोर लोगों की देखभाल के लिए न तो समय है न ही संसाधन और वे अपने घरेलू संकटों में व्यस्त हैं।
वैश्विक व्यवधान के दबावों को सबसे अधिक गरीब अर्थव्यवस्थाएं झेल रही हैं और कुछ शक्तियां अपनी चुनौतियों पर उस गंभीरता के साथ विचार करने को तैयार हैं जिसकी वे हकदार हैं। भारी उथल-पुथल के समय में अब तक की सर्वोच्च-प्रोफाइल अंतर्राष्ट्रीय सभाओं में से एक की मेजबानी करके, भारत बड़ा सोचने और बड़े परिणाम देने - कुछ ऐसा जिसकी दुनिया के अधिकांश लोगों को भारत से लंबे समय से उम्मीद थी, की अपनी तत्परता का संकेत दे रहा है।
यह वैश्विक व्यवस्था और भारत के लिए एक विभक्ति बिंदु है। भारत कुछ प्रभावशाली हासिल करने की कगार पर ह। वह न केवल शीर्ष स्तरीय आर्थिक शक्ति जो एक बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र भी है, बल्कि एक शीर्ष स्तरीय भू-राजनीतिक खिलाड़ी भी है जो न कि केवल संतुलन बल्कि नेतृत्व भी कर सकता है। भारत, अगले कुछ वर्षों में जो विकल्प चुनेगा, वह इस उत्थान की रूपरेखा को परिभाषित करेगा।
(लेखकः रणनीतिक अध्ययन और विदेश नीति, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष - हैं। आप इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया हमें feedback.employmentnews@gmail.com पर भेज सकते हैं)
व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।