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विशेष लेख


Volume-46, 10-16 February, 2018

 

केंद्रीय बजट 2018-19 प्रमुख उपलब्धियां

जयंत राय चौधुरी

इस वर्ष 7 राज्य विधानसभाओं के चुनाव और अगले वर्ष आम चुनाव को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही थी कि इस बार बजट लोक लुभावन होगा. इस दृष्टि से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-2019  के बजट में निराश नहीं किया और किसानों के लिए अनेक अप्रत्याशित लाभों की घोषणा की है. किसानों की उपज के समर्थन मूल्य का विस्तार किया गया है और करीब 50 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम घोषित किया है, जो विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा कार्यक्रम है.

कृषि, ग्रामीण ढांचे और ग्रामीण आवास के लिए रु. 14.34 लाख करोड़ आवंटित किए गए हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च बढ़ाने से 321 करोड़ व्यक्ति कार्य दिवसों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा होंगे, 3.17 लाख किलोमीटर लंबी ग्रामीण सडक़ें बनेंगी, गांवों में 51 लाख नए मकानों और 1.88 करोड़ शौचालयों का निर्माण होगा और 1.75 करोड़ नए परिवारों को विद्युत कनेक्शन दिए जाएंगे.

सरकार चुनी हुई खाद्य फसलों के लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करती है, जो सरकार की तरफ से एक गारंटीकृत मूल्य होता है. बजट प्रस्तावों से इसमें बढ़ोतरी की संभावना बनी है, क्योंकि सरकार ने वायदा किया है कि वह ज्यादातर खरीफ या मानसून फसलों की समग्र लागत का 50 प्रतिशत से अधिक समर्थन मूल्य तय करेगी. यह मूल्य देशभर में कृषि जिंसों के दामों के लिए एक बेंचमार्क माना जाएगा और इसका अर्थ है कि किसानों को अधिक आमदनी होगी. अर्थशास्त्रियों को आशंका है कि इससे आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ेंगे.

बजट पेश करने के दिन बाद में श्री जेटली ने एक उल्लेखनीय टिप्पणी में स्पष्टीकरण दिया कि ‘‘ग्रामीण और कृषक समुदाय पर हमारा प्राथमिक फोकस’’ रहा है. भारत के 70 प्रतिशत से अधिक मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, इसे देखते हुए ज्यादातर विश्लेषकों को यह उम्मीद थी कि बजट में उन पर पुन: ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

श्री जेटली के लिए एक और चिंता, जिसे बजट के जरिए दूर किया जाना था, वह रोज़गार की थी. यह माना जा रहा है कि दो व्यवधानकारी आर्थिक घटनाओं - विमुद्रीकरण और नई जीएसटी कर प्रणाली - से अर्थव्यवस्था में मंदी आई है. विमुद्रीकरण और जीएसटी के दोहरे व्यवधानों का सबसे बुरा असर छोटे और मध्यम व्यापारों पर पड़ा. इसे देखते हुए सरकार ने इन व्यापारों की मदद के लिए 250 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली कंपनियों पर कर की दर 30 प्रतिशत से घटा कर 25 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया और किसान और इन कंपनियों से यह

वायदा किया कि एक वर्ष के लिए नए कर्मचारियों के भविष्यनिधि अंशदान का खर्च सरकार वहन करेगी.

परंतु, जेटली के बजट में जहां कमी दिखाई दी, वह आंकड़ों का खेल बन कर रह गई. बजट में जीएसटी वसूली में रु. 50,000 की कमी का अनुमान व्यक्त किया गया है. स्पैक्ट्रम की नीलामी सहित अनेक ऐसे मद हैं, जिनसे राजस्व जुटाने में सरकार अक्षम रहेगी. इसका अर्थ यह हुआ कि राजकोषीय घाटा बढ़ेगा. इस वर्ष राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 3.2 प्रतिशत रहने की बजाए वर्ष का अंत 3.5 प्रतिशत घाटे के साथ होगा और अगले वर्ष यह घाटा 3.3 प्रतिशत की उच्च दर से बने रहने का अनुमान है.

श्री जेटली ने स्वीकार किया कि ‘‘जीएसटी कर राजस्व के मात्र 11 महीनों (पूर्ण वर्ष की बजाए) की वसूली और अनेक ढांचागत सुधारों (इसे विमुद्रीकरण और जीएसटी समझें) के कारण राजकोषीय आंकड़ों पर असर पड़ेगा’’.

सरकार के लिए 22 ऐसे अनिवार्य मद हैं, जहां वह लोक-लुभावन के लिए अधिक व्यय करना चाहती है. लेकिन, करों में बढ़ोतरी की सुनिश्चित क्षमता में हाथ तंग होने के कारण मध्यम वर्ग के लिए सरकार द्वारा कुछ अधिक करने की संभावना नहीं रही है.

वेतनभोगी मध्यम वर्ग को विविध चिकित्सा खर्चों और परिवहन भत्ते के बदले एक वर्ष में 40,000 रुपये की मानक कटौती फिर से शुरू करने के जरिए कुछ राहत देने का प्रयास किया गया है. परंतु, गणना करने के बाद यह लाभ बचता हुआ दिखाई नहीं देता और प्रतिमाह कुछ सौ रुपये से अधिक की बचत होती नहीं दिखती.

मोदी केयर

लंबे समय से प्रतीक्षित दस करोड़ परिवारों अथवा 50 करोड़ निर्धनों के लिए करीब 5 लाख रुपये प्रति परिवार या एक लाख रुपये प्रति व्यक्ति खर्च के साथ स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, महज एक घोषणा दिखाई देता है. इसके लिए फिलहाल सांकेतिक रूप में बजट में रु 2000 करोड़ के व्यय का प्रावधान किया गया है. परंतु, कार्यक्रम की लागत की पूरी गणना के बाद इसमें बढ़ोतरी हो सकती है.

इस कार्यक्रम को आधिकारिक रूप में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण कार्यक्रम का नाम दिया गया है, जिसे सोशल मीडिया पर मोदीकेयरकहा गया है. यह सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम

होगा. श्री जेटली ने कहा कि यह कार्यक्रम माध्यमिक और तृतीयक अस्पताल उपचार की व्यवस्था करेगा और इसमें ‘‘निवारक और स्वास्थ्य संवर्धन’’ दोनों तरह के उपाय शामिल किए जाएंगे.

मोदीकेयर निक नेम की उत्पत्ति ओबामाकेयर अथवा अफोर्डेबल केयर एक्ट की तर्ज पर हुई है. यह अधिनियम 2010 में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस प्रयोजन को ध्यान में रख कर अधिनियमित किया था कि सस्ते स्वास्थ्य बीमा लाभ तक सभी अमरीकियों की पहुंच सुनिश्चित की जाए. इस कार्यक्रम के अंतर्गत उपभोक्ता रियायतें प्रस्तावित की गई हैं, जैसे सरकार प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं पर कर लाभ’, यद्यपि इसमें कुछ प्रतिवाद हैं. इसके जरिए चिकित्सा सहायता कार्यक्रम का भी विस्तार किया गया है, ताकि उसमें अधिक संख्या में ऐसे लोगों को शामिल किया जा सके, जो स्वास्थ्य देखभाल का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं.

कृषक बजट

ग्रामीण समुदायों को लुभाने के प्रयास में 2018-19 के केंद्रीय बजट में कृषि उपज और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने के उपाय किए गए हैं. इसके लिए जहां एक ओर नई परियोजनाएं प्रस्तावित की गई हैं, वहीं मौजूदा कार्यक्रमों के लिए सहायता राशि बढ़ा कर रुपये  14.34 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है.

वित मंत्री अरुण जेटली ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार का अंतिम पूर्ण वर्ष का बजट पेश करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार, संचार, आवास, शौचालय और विद्युत कनेक्शन बढ़ाने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया.

श्री जेटली ने कहा कि ‘‘अगले वर्ष सरकार का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतम आजीविका के अवसर पैदा करने पर रहेगा, जिसके लिए आजीविका, कृषि और अनुषंगी गतिविधियों और ग्रामीण ढांचा निर्माण पर अधिक खर्च किया जाएगा’’.

उन्होंने कहा कि ‘‘वर्ष 2018-19 में ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका और ढांचागत निर्माण के लिए रु. 11.98 लाख करोड़ के अतिरिक्त बजटीय और गैर-बजटीय संसाधनों सहित कुल रु. 14.34 लाख करोड़ खर्च किए जाएंगे’’.

खेती गतिविधियों के कारण रोज़गार और स्व-रोज़गार के अलावा इस व्यय का लक्ष्य 321 करोड़ व्यक्ति दिवसों के लिए रोज़गार सृजन, 3.17 लाख किलोमीटर सडक़ों का निर्माण, 51 लाख नए ग्रामीण मकानों एवं 1.88 करोड़ शौचालयों का निर्माण और 1.75 करोड़ नए परिवारों को विद्युत कनेक्शन प्रदान करना है, इससे कृषि विकास को भी बढ़ावा मिलेगा.

श्री जेटली ने जिन उपायों की घोषणा की उनमें सर्वप्रथम खरीफ (ग्रीष्मकालीन) फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को उत्पादन लागत का 1.5 गुणा करना है, जिनमें मक्का, सोयाबीन और दलहन शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अधिकतर रबी (शीतकालीन बुआई) फसलों का समर्थन मूल्य पहले ही बढ़ाया जा चुका है.

श्री जेटली ने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसानों को बाजार में दाम गिरने  के बावजूद समर्थन मूल्य मिले. इसके लिए नीति आयोग राज्य सरकारों से विचार विमर्श करेगा कि एक संस्थागत व्यवस्था कायम की जाए ताकि किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम सुनिश्चित किया जा सके.

उन्होंने यह घोषणा भी की कि कृषि ऋण में 10 प्रतिशत बढ़ोतरी की जाएगी, जिससे वह 11 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा. भारत में 86 प्रतिशत किसानों, जिन्हें श्री जेटली ने लघु और सीमांत किसान समझते हैं, का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें बाजार से जोडऩे के प्रयास किए जाएंगे ताकि वे अपनी उपज का समुचित लाभकारी मूल्य हासिल कर सकें.

उन्होंने कहा कि सरकार मौजूदा 22,000 ग्रामीण हाटों को ग्रामीण कृषि बाजारों के रूप में विकसित और प्रोन्नत करेगी. इन ग्रामीण कृषि बाजारों में भौतिक ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम और अन्य कार्यक्रमों का इस्तेमाल किया जाएगा.

ग्रामीण कृषि मंडियां इलेक्ट्रोनिक रूप में ई-नाम (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) के साथ जोड़ी जाएंगी और उन्हें एपीएमसीज़ (कृषि उत्पाद विपणन समिति) के नियमों से छूट दी जाएगी. वे किसानों को ऐसी सुविधा प्रदान करेंगी, कि वे अपने उत्पाद सीधे उपभोक्ताओं और बल्क खरीदारों को बेच सकें.

सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत मार्च, 2019 से मार्च, 2022 तक सभी पात्र बस्तियों को बारहों महीने काम करने वाली सडक़ों के साथ जोडऩे का लक्ष्य रखा है और अब यह निर्णय किया है कि इस कार्यक्रम का दायरा और बढ़ाया जाएगा ताकि ऐसे प्रमुख संपर्क मार्गों को इसमें शामिल किया जा सके, जो बस्तियों के कृषि और ग्रामीण बाजारों, उच्चतर माध्यमिक स्कूलों और अस्पतालों के साथ जोड़ती हैं.

वित्त मंत्री द्वारा घोषित अन्य उपायों में 22,000 ग्रामीण बाजारों का विकास और उन्नयन शामिल है, जिसके लिए उन्होंने 2,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं. श्री जेटली ने कृषि लॉजिस्टिक्स को प्रोत्साहित करने के लिए ‘‘ऑपरेशन ग्रीन’’ के लिए रु. 500 करोड़ के प्रावधान की घोषणा की है.

श्री जेटली ने कहा कि सरकार प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना (पीएमजीएसवाई) के अंतर्गत गांवों और ग्रामीण सडक़ों को कृषि मंडियों, माध्यमिक स्कूलों और अस्पतालों के साथ जोडऩे के भी प्रयास करेगी.

श्री जेटली ने कहा कि स्वयं-सहायता समूहों में महिलाओं के उपलब्ध धन 2016-17 में रु. 42,000 करोड़ था, जिसे मार्च 2019 तक बढ़ा कर रु. 75,000 करोड़ किया जाएगा.

सरकार ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के लिए आवंटन 2018-19 में बढ़ा कर रुपये 5,750 करोड़ करने की भी घोषणा की है, जो 2017-18 में रु. 4500 करोड़ था.

श्री जेटली ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम (मनरेगा) के लिए रु. 55,000 आवंटित किए. यह इस बात का संकेत है कि सरकार राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वर्ष के दौरान ग्रामीण असंतोष दूर करना चाहती है. वर्ष 2017-18 के बजट में वित्त मंत्रालय ने शुरू में विश्व के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रम के लिए रु. 48,000 करोड़ आवंटित किए थे.

वित मंत्री ने 96 सिंचाई वंचित जिलों में सिंचाई सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए रु. 2600 करोड़ के आवंटन की घोषणा की. इस राशि में से मत्स्य उद्योग और पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए भी धन उपलब्ध कराया जाएगा. श्री जेटली ने ये सभी उपाय इस बात को देखते हुए किए हैं कि पिछले वर्ष कई राज्यों में उपज के दामों में अत्यधिक गिरावट के कारण किसानों ने प्रदर्शन किए थे.

सरकार रु. 10,000 करोड़ के परिव्यय के साथ मत्स्य उद्योग और जलजीव पालन ढांचा कोष और पशुपालन ढांचा कोष की स्थापना करेगी. श्री जेटली ने खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का आवंटन भी दोगुना करते हुए उसके लिए रु. 1400 करोड़ आवंटित किए.

लघु और मध्यम व्यापारियों को करों में आंशिक रियायत देते हुए सरकार ने दीर्घावधि पूंजी लाभ कर को हल्के तरीके से पुन: वापस लाने की घोषणा की है, जिसके अनुसार एक वर्ष में एक लाख रुपये और उससे अधिक आमदनी पर 10 प्रतिशत पूंजी लाभ कर देना होगा. इसमें जनवरी के अंत तक किए गए निवेश को छूट दी गई है. इस कदम से सरकार को पहले वर्ष रु. 20,000 करोड़ का इजाफा होने की उम्मीद है.

राजकोषीय फ्रेमवर्क

सरकार ने अंतत: अपने को एक राजकोषीय फ्रेमवर्क के अवरोध से मुक्त करने का निर्णय किया और हाल ही में अपनी सार्वभौम वैश्विक रेटिंग में बढ़ोतरी को देखते हुए अब एक शिथिल समय सीमा अपनाने का निर्णय किया.

इस वर्ष सकल घरेलू उत्पाद के 3.2 प्रतिशत घाटे को दूर करने की बजाए सरकार ने इसे 3.5 प्रतिशत तक जाने की छूट देने का रास्ता चुना. हालांकि इस तथ्य को देखते हुए ऐसा करना अवश्यांभावी था कि सरकार को विभिन्न मदों में 1,17,714 करोड़ रुपये के राजस्व की कमी पड़ रही है.

एक परिपत्र टिप्पणी में वित मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ‘‘राजकोषीय घाटे संबंधी 2017-18 के रु. 5,46,531 करोड़ (जीडीपी का 3.2 प्रतिशत) के बजट अनुमान आंकड़ों में मामूली बढ़ोतरी होगी और 2017-18 के संशोधित अनुमान के अनुसार यह घाटा रु. 5,94,849 करोड़ (जीडीपी का 3.5 प्रतिशत) रहेगा. 2017-18 के बजट अनुमानों की तुलना में राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी का मुख्य कारण नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का प्रभाव है. यह अप्रत्यक्ष कर अदा करने की नई प्रणाली में परिवर्तन की राजकोषीय घाटे पर एकबारगी लागत है.’’

विश्लेषकों का कहना है कि राजकोषीय घाटे के प्रति शिथिल दृष्टिकोण मूडी द्वारा रेटिंग बढाए जाने के बाद अपनाया गया है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडी ने एक टिप्पणी में कहा है कि ‘‘बजट में घोषित राजकोषीय घाटे की दिशा हमारे पूर्वानुमान के अनुसार है. हमें उम्मीद है कि घाटे के लक्ष्यों को मोटेतौर पर हासिल कर लिया जाएगा’’.

मूडी की निवेशक सेवा ने करीब 14 वर्षों में पहली बार पिछले वर्ष नवंबर में भारत की सार्वभौम क्रेडिट रेटिंग में इजाफा किया था. उसने कहा था कि आर्थिक और संस्थागत सुधारों में निरंतर प्रगति के कारण देश की वृद्धि क्षमता बढ़ेगी. मूडी ने भारत की रेटिंग ‘‘बीएए-2’’ निर्धारित की थी, जो ‘‘स्थिर’’ दृष्टिकोण की परिचायक है.

सरकार अब अगले वित वर्ष के लिए अपना राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत निर्धारित कर रही है और उसे यह उम्मीद नहीं है कि अगले वर्ष की बजाए 2021 तक भी राजकोषीय घाटा 3 प्रतिशत पर वापस लाया जा सकेगा. 2018-19 के बजट अनुमान में प्रत्यक्ष करों में रु. 11,50,000 करोड़  की बढ़ोतरी का अनुमान है. इसका यह अर्थ है कि 2017-18 के संशोधित अनुमान की तुलना में 2018-19 में 14.4 फीसदी की बढ़ोतरी होगी. प्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी  प्रत्यक्ष कर के दोनों अंगों यानी कार्पोरेट आयकर और व्यक्तिगत आयकर में होने की संभावना है. बजट अनुमान के अनुसार इनमें बढ़ोतरी क्रमश: रु. 6,21,000 और रु. 5,29,000 करोड़ रुपये की होगी.

2018-19 के बजट अनुमान में परोक्ष करों में रु. 11,16,000 की वृद्धि होने का अनुमान है. 2018-19 में जीएसटी राजस्व रु. 7,43,900 करोड़ प्राप्त होने का अनुमान है, जबकि 2017-18 में इस मद में 4,44,631 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. परोक्षकरों के  गैर-जीएसटी घटक में 2018-19  में 3,72,100 करोड़ रुपये की

वृद्धि होने का अनुमान है. उम्मीद की जा रही है कि पिछले वर्ष की तुलना मेेंं 2018-19 में प्रत्यक्ष करों में 17.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.

इसी प्रकार सरकार जीडीपी ऋण अनुपात में कमी लाने की भी कोशिश नहीं कर रही है, जो अगले 3 वर्षों में 40 प्रतिशत के भीतर रहना निर्धारित किया गया है.

केंद्र सरकार की कुल बकाया देयताओं की पुन: गणना की गई है जिसके अनुसार ये 2017-18 में जीडीपी का करीब 50.1 प्रतिशत थीं और वित्तीय वर्ष 2018-19 के अंत तक इनके घट कर 48.8 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है. वित मंत्रालय ने कहा है कि ‘‘मध्यम अवधि में राजकोषीय अनुमानों को देखते हुए कुल बकाया देयताएं वित्तीय वर्ष 2018-19 और 200-21 के अंत तक क्रमश: जीडीपी का 46.7 प्रतिशत और 44.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है. जैसा कि नए फ्रेमवर्क में प्रस्तावित किया गया है, केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2024-25 तक अपने ऋण/समग्र बकाया देयताओं को जीडीपी का 40 प्रतिशत तक कम करने का प्रयास करेगी’’.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक समीक्षक हैं)