सौर ऊर्जा : स्वच्छ पर्यावरण के साथ रोजग़ार के अवसर
नीरज कुमार मिश्रा
कोयले से बिजली का उत्पादन एक परंपरागत तरीका है. आज के इस हाईटेक दौर में यह तरीका काफी महंगा और जटिल है, साथ ही इससे पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है. कोयले से निर्मित बिजली आज के दौर में इसलिए भी आउटडेटेड बनती जा रही है क्योंकि इसमें बिजली कटौती के दौरान जनरेटर या किसी और उपकरण पर निर्भर होना पड़ता है जो महंगे होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी ठीक नहीं है. दिन-प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या के साथ ही हमारी ऊर्जा की जरूरतें भी बढ़ रही है, जिससे बिजली की मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पा रही है. ऐसे में सौर ऊर्जा लोगों की जरूरतों को कम खर्च और पर्यावरण को बिना किसी नुकसान पहुंचाए ही पूरा कर सकती है.
भारत सहित विश्व भर में हाल के कुछ सालों में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बेहतर प्रयास हुए हैं. वहीं हमारे देश की भौगोलिक परिस्थितियों, संभावनाओं और जरूरतों को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले चार से पांच साल में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक नवीन क्रांति आ सकती है. इस दिशा में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कई पहलें की जा रही हैं. सरकार लगातार सामाजिक संगठनों और व्यवसाय जगत के लोगों के साथ तालमेल कर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने पर कार्य कर रही हैं. इस दिशा में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के तहत ऑफ ग्रिड सोलर पीवी प्रणाली को बढ़ाने में कई कारगर प्रयास किए जा रहे हैं. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में आज चाहे ग्रामीण इलाका हो या शहरी बहुत ही तेजी से विकास हो रहा है. व्यवसाय ही नहीं घरेलू स्तर पर भी लोग अपने-अपने घरों, गोदामों, दुकानों, आवासीय परिसरों आदि में सोलर पीवी प्रणाली को लगवा रहे हैं. ग्रामीण भारत में तो सौर ऊर्जा की जरूरतें और भी अधिक हंै, लिहाजा यहां लोग इस प्रणाली से बढ़-चढ़ कर जुड़ रहे हैं. वहीं सौर ऊर्जा प्रणाली में और भी अधिक तकनीकी गुणवता पर देश भर में कई एक्सपट्र्स दिन-रात काम कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि वर्तमान समय में विश्व भर में गंभीर ऊर्जा संकट के दौरान सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा बेहद खास है. इससे कम से कम लागत में बिना किसी प्रदूषण के हमारी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति तो हो ही रही है. आने वाले तीन से चार साल में इस क्षेत्र में रोजग़ार की भी बहुत-सी संभावनाएं हैं. एक अनुमान के अनुसार आने वाले 4 सालों में रिन्युएबल एनर्जी सेक्टर में 10 से 12 लाख नई नौकरियां उपलब्ध हो सकती हैं, जिसमें सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सबसे अधिक रोजग़ार के अवसर होंगे. इन वर्षों में अकेले सौर ऊर्जा के क्षेत्र में लगभग 10 लाख रोजग़ार के अवसर हो सकते हैं. केंद्र सरकार ने साल 2022 तक रिन्युएबल ऊर्जा के क्षेत्र में 1 लाख 75 हजार मेगावाट तक का अपना लक्ष्य रखा है और ऐसा माना जा रहा है कि इस दिशा में सरकार अपने निर्धारित लक्ष्य से भी अधिक कुल 2 लाख मेगावाट अक्षय ऊर्जा का निर्माण करने में सफल होगी. जिसमें केवल सौर ऊर्जा का लक्ष्य एक लाख मेगावाट है. सौर ऊर्जा का महत्व और इसमें रोजग़ार के अवसरों को देखते हुए युवाओं के इससे जुडऩे का यह सबसे बेहतर मौका है. सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य के तहत ही राज्य सरकारें भी इस दिशा में तमाम प्रयास कर रही हैं. वर्तमान में छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तराखंड, तमिलनाड़ु कर्नाटक, मणिपुर और तेलंगाना में सौर ऊर्जा प्लांट की परियोजनाएं चल रही हैं. वहीं देश भर में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने और इस प्रणाली को सीधे तौर पर खेती-किसानी से जोड़ते हुए केंद्र सरकार ने बजट 2018-19 के दौरान ‘कुसुम योजना’ के रूप में एक खास पहल की है. सरकार द्वारा इस योजना के तहत साल 2022 तक देश भर में तीन करोड़ सिंचाई पम्पों को डीजल या बिजली के बजाए सौर ऊर्जा से चलाये जाने का लक्ष्य रखा गया है. केंद्र सरकार ने अपने इस महत्वाकांक्षी योजना का नाम किसान ऊर्जा सुरक्षा व उत्थान महाभियान भी रखा गया है. कुसुम योजना के तहत खेतों के ऊपर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर बिजली उत्पादन करने की तकनीक अपनाई जानी है. ऐसा माना जा रहा है कि इस योजना से किसानों का कृषि कार्य में बिजली के आपूर्ति से सम्बंधित समस्याओं का हल काफी हद तक हो जाएगा. इस योजना से जुड़ी एक और खास बात है कि किसान सौर ऊर्जा प्रणाली से उत्पन्न बिजली को इस्तेमाल में लाने के बाद बची हुई बिजली, बिजली वितरण कम्पनी को बेच भी सकते हैं, जिससे किसानों के लिए खेती के अलावा आय का एक दूसरा साधन भी उपलब्ध होगा. वहीं सरकार का लक्ष्य है कि इस योजना के तहत गांवों में भी 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराई जा सके. एक आंकड़े के अनुसार खेती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सभी पम्पों को अगर सौर ऊर्जा से चलाया जा सके तो इससे करीब 28 हज़ार मेगावाट बिजली को बचाया जा सकता है. इस योजना से निश्चित रूप से बिजली एवं डीजल की बचत होगी और इससे पर्यावरण को भी फायदा होगा. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने और इस दिशा में रोजग़ार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्यों की ओर से भी कई योजनाओं पर तेजी से काम जारी है. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से भी कई पहलें की जा रही हैं. इसके तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने सौर नीति को मंजूरी दी है, जिसमें राज्य सरकार ने अधिक से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस दिशा में प्रदेश सरकार कौशल विकास कार्यक्रम के तहत बड़े पैमाने पर सूर्य मित्र नियुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. वहीं सौर ऊर्जा के तहत अपना व्यवसाय शुरू करने वाले नये उद्यमियों को आसानी से लोन मिल सके. इस पर भी रिजर्व बैंक की ओर से सभी बैंकों को निर्देश दिए गए हैं. जिसमें सोलर प्लांट लगाने के लिए 15 करोड़ और घरेलु उद्यमियों को ग्रिड कनेक्टेड छत वाले सोलर पैनलों को लगाने के लिए 10 लाख तक का लोन मिल सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले 5 वर्षों में 10700 मेगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है. वहीं जानकार ऐसा मानते हैं कि इस पैमाने पर सौर ऊर्जा के उत्पादन से हर साल करीब 1,36,70,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा. इससे राज्य में प्रदूषण की गंभीर स्थिति बहुत हद तक ठीक हो सकती है. वहीं अगर इसी तरह देश भर में सौर ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा मिले तो प्रदूषण की समस्या दिल्ली, कोलकता, मुम्बई, चेन्नई, पटना सहित हर जगह कम होगी. जिससे निश्चित रूप से देश से पर्यावरण संबंधित चिंताएं कम होंगी, जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए विश्व भर में स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. वहीं भारत में भी इस दिशा में कई पहलें की जा रही हैं. साल 2022 तक 160 से 200 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा के उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य हमारे सामने है.
(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं. nirajreporter7@gmail.com)