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विशेष लेख


Special article vol.26

दीन दयाल उपाध्याय

डॉ आर.बालाशंकर

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम सरकार की कई सामाजिक पहलों से जुड़ा है। इनमें से कुछेक के नाम इस प्रकार हैं। ग्रामीण भारत को निर्बाध विद्युत आपूर्ति से संबंधित दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजनादीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, ग्रामीण युवाओं की व्यावसायिक आकांक्षाओं को पूरा करने और रोजग़ार हेतु उनके कौशलों को बढ़ाने के लिये शुरू की गई एक कौशल और प्लेसमेंट योजना है। दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम औद्योगिक विकास और व्यवसाय में आसानी के लिये सकारात्मक वातावरण बनाने के साथ-साथ कामगारों के लिये कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के वास्ते कार्य करता है। देश चूंकि इस वर्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशती समारोह मना रहा है, उनके वे आदर्श, जिन पर वे हमेशा खड़े रहे, आधुनिक भारत में और अधिक संगत हो गये हैं।

दीनदयाल उपाध्याय स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक विचारकों में शामिल थे। उन्होंने एकात्म मानवतावाद की अवधारणा में विश्व की वैश्वीकरण उपरांत विकृतियों के उपचार की परिकल्पना की थी। दीनदयाल उपाध्याय का जीवन बहुत ही सामान्य था और वे संघ परिवार में प्रकाश स्तम्भ थे। उनके कई मशहूर नारे -चर्रइवेति, चर्रइवेति (बढ़ते चलो-बढ़ते चलो), और हर हाथ को काम, हर खेत को पानी आम जनता के दिलों में बस गये थे। दीनदयाल उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश में मथुरा के निकट नगला चंद्रभान गांव में एक गऱीब परिवार में 25 सितंबर, 1916 को हुआ था। बालकपन में दीनदयाल उपाध्याय को परिवार में कई मौतों के गहरे दुख का सामना करना पड़ा। मात्र ढाई वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पिता को खो दिया जबकि सात वर्ष की आयु में उनकी माता जी चल बसीं। उनके अनाथ होने पर उनकी देखभाल कर रहे दादाजी की भी उस वक्त मौत हो गई जब वे दस वर्ष के थे। बाद में उनका लालनपालन उनके मामा और मामी के यहां हुआ और उनका भी कुछ ही वर्ष बाद देहांत हो गया। दीनदयाल एक स्थान से दूसरे स्थान जाते रहे और उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री पूरी की। बाबा साहब आप्टे ने उनका आरएसएस से परिचय कराया और वे 1930 के दशक में पूर्णकालिक सदस्य बन गये।

दीनदयालजी एक सर्जनात्मक लेखक और सफल संपादक थे। संघ की विचारधारा के प्रचार के लिये मासिक राष्ट्रधर्म और साप्ताहिक पांचजन्य तथा दैनिक स्वदेश की शुरूआत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं जिनमें सम्राट चंद्रगुप्त और जगतगुरू शंकराचार्य, भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का एक विश्लेषण और राजनीतिक डायरी शीर्षक पर एक पुस्तक शामिल है। यह पुस्तक साप्ताहिक ऑर्गेनाइजर में नियमित तौर पर उनके द्वारा लिखे गये कॉलम का संकलन था। दीनदयालजी को गुरूजी गोलवाल्कर ने डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 1951 में स्थापित जनसंघ पार्टी में कार्य करने के लिये भेजा। तब से लेकर 1967 तक वे जनसंघ के अखिल भारतीय महासचिव बने रहे। इसी अवधि के दौरान उन्होंने एकात्म मानवतावाद के राजनीतिक दर्शन को प्रतिपादित किया। अब इस बात को 50 वर्ष हो गये हैं, जब से जनसंघ ने एकात्म मानवतावाद को अपने राजनीतिक-आर्थिक घोषणापत्र में शामिल किया है।

दीनदयाल उपाध्याय की जनसंघ के प्रमुख का पद संभालने के कुछ ही महीने बाद 11 फरवरी, 1968 में 52 वर्ष की आयु में रहस्यमय स्थितियों में मृत्यु हो गई। दीनदयालजी को सितंबर 1967 में कोझीकोड सत्र में जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया था। कुछ ही महीने बाद उनकी हत्या कर दी गई और वे शहीद हो गये। उनका रक्तरंजित शरीर 11 फरवरी, 1968 को मुगलसराय रेलवे जंक्शन के निकट पटरी पर पड़ा मिला। उनका जन्म सामान्य व्यक्ति के रूप में हुआ, वे सामान्य व्यक्ति की तरह जीये और लखनऊ से पटना तक रात्रि में एक ट्रेन यात्रा के दौरान उनकी रहस्यमय मौत हो गई। भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या की गुत्थी अब तक अनसुलझी है।

उपाध्याय ने वर्ग रहित, जाति रहित और संघर्ष मुक्त भाईचारे की भावना का विकास किया और साझी विरासत राजनीतिक सक्रियतावाद का केंद्र बिंदु थी। उन्होंने प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व और सौहार्द पर ज़ोर दिया। उन्होंने एक वैकल्पिक दृष्टिकोण की अवधारणा का सूत्रपात किया जो कि प्रतिद्वंदिता और वैमनस्य से मुक्त, पूंजीवाद और साम्यवाद की अचेतनता से अलग एक तीसरा मार्ग था।

दीनदयालजी राजनीति के प्रति अनिच्छुक थे। राजनीति से उनका पहला प्यार नहीं था। एक आरएसएस प्रचारक के तौर पर वे इसी क्षेत्र में काम को जारी रखने के उत्सुक थे। लेकिन जन संघ का गठन होने पर उन्हें नई पार्टी का प्रभार दे दिया गया और डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के देहांत के बाद समूची जि़म्मेदारी उनके ऊपर आ गई। उन्होंने पार्टी को कॉडर आधारित जन संगठन के तौर पर एक अलग दिशा प्रदान की। उनके लिये राजनीति किसी जरिये का अंत था न कि स्वयं के लिये अंतिम छोर।

दीनदयाल उपाध्याय कई राजनीतिक प्रयोगों के अग्रणी थे। वे भारतीय राजनीति में प्रथम गठबंधन चरण के निर्माता थे। 1967 के बाद के चुनाव में जब कांग्रेस का पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक प्रत्येक राज्य में सफाया हो गया था, संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) के प्रयोग किये गये। उपाध्याय एक अभिनव राजनीतिज्ञ थे और वे भविष्य के राजनीतिज्ञों के लिये अपनाने हेतु प्रतिमान बनकर रहे। वे आत्म-निर्भर स्वायत्त इकाइयों, राज्यों को अधिक शक्तियां प्रदान करने और विकेंद्रीकृत तथा प्रतिस्पर्धी संघवाद, हमारी मज़बूत परंपरागत सांस्कृतिक धरोहर और पूर्व के अनुभवों में विश्वास करते थे। उनका संघ की विचारधारा की पाठशाला से सृजित सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व था और उन्होंने चुनावी राजनीति में विचारधारा की भूमिका स्थापित करने का प्रयास किया।

दीनदयाल जी के आर्थिक विकास की अवधारणा अंत्योदय’-अर्थात पंक्तिबद्ध आखिरी व्यक्ति का उत्थान थी। उनके इसी दृष्टिकोण से प्रेरित होकर केंद्रीय सरकार की कई प्रमुख योजनाएं, जैसे कि जन धन योजना, मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, पांच करोड़ बीपीएल परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने हेतु, ग्राम ज्योति योजना-आखिऱी 75000 गांवों में बिजली पहुंचाना, सभी के लिये शौचालय और सब के लिये आवास आदि शुरू की गई हैं। उनके विचार एक सुखदायक सृजनात्मकता की ताज़ा हवा के रूप में आये और उन्होंने पार्टी नेताओं को एक नये राजनीतिक प्रणाली के सृजन के लिये प्रोत्साहित किया जो कि प्रतिद्वंदिता और वैमनस्य से मुक्त था। दीनदयालजी की विचारधारा कुछ ऐसी अडिग थी जिससे उनके दृष्टिकोण में भारतीयता कूट-कूट कर भरी थी।

दीनदयाल उपाध्याय कम सरकार अधिक अभिशासन के पक्षधर थे। उन्होंने इस देश की राजनीति पर जो अमिट छाप छोड़ी है, उस तरह की छाप छोडऩे वाला उपाध्याय का समकालीन कोई अन्य व्यक्ति नहीं है। वे उन हजारों युवाओं का आकर्षण का केंद्र बन गये जिन्होंने विरासत को आगे ले जाने के लिये अथक परिश्रम किया। शायद, यह भारतीय लोकाचार में समाहित है या इसलिये है क्योंकि इसे आगे और कुछ इस तरह से ढाला, तराशा और आकार दिया गया था, जिसके बारे में देश में बहुत से प्रमुख सामाजिक और राजनीतिक नेताओं तथा विचारकों ने पुन:व्याख्या, समीक्षा और शोध कार्य किया है।

 

(लेखक साप्ताहिक ऑर्गेनाइजर के पूर्व संपादक और भाजपा प्रशिक्षण महा अभियान केंद्रीय समिति, तथा प्रकाशन समिति के सदस्य हैं। ई-मेल: ashaankar12@gmailcom)