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विशेष लेख


Issue no 34, 20-26 November 2021

जीवन में बदलाव लाने में कौशल भारत का योगदान

नोएडा में एक बहुमंजिला इमारत में प्लंबर का काम करते हुए अमरोहा का मोमीन अच्छा काम कर रहा था. वह कुछ समय पहले से बिल्डर के यहां काम कर रहा था. परन्तु, अचानक बिल्डर का ठेका खत्म हो गया और मोमीन का काम भी ठप हो गया. वह अगले दो-तीन महीनों तक बेरोज़गार रहा. तभी किसी ने उससे कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्किल इंडिया पहल के तहत प्लंबिंग सीख सकता है और इसके लिए सर्टिफिकेट हासिल कर सकता है.

मोमीन कुछ दिन इस पर विचार करता रहा. उसे यह युक्ति सूझी कि वह पहले से ही प्लंबिंग का काम अच्छी तरह जानता है. अगर उसे सर्टिफिकेट भी मिल जाए, तो उसे किसी कंपनी में नौकरी मिल सकती है. इससे दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करने से जुड़ी अनिश्चितता खत्म हो सकती है. इस प्रकार, उसने प्लंबिंग के लिए स्किल इंडिया कोर्स में दाखिला लेने का फैसला किया, जिसकी अवधि छह महीने है.

पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के बाद, मोमीन ने महसूस किया कि हालांकि वह प्लंबिंग के अधिकांश व्यावहारिक पहलुओं को जानता था, लेकिन वह क्षेत्र की शब्दावली और इसके कुछ इंजीनियरी संबंधी पहलुओं को अच्छी तरह से नहीं जानता था. कोर्स करने से उसे इन क्षेत्रों में भी विशेषज्ञता हासिल करने में मदद मिली और वह स्वयं में एक कुशल प्लंबर का आत्मविश्वास महसूस करने लगा. सर्टिफिकेट पाकर वह काफी खुश और उत्साहित था.

नोएडा में निजी संस्थान, जहां मोमीन ने खुद को नामांकित किया था, ने पाठ्यक्रम के अंत में एक कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन किया. वहां फरीदाबाद से एक रियल्टी कंपनी प्लंबर की भर्ती करने आई थी. कंपनी के कार्यकारी ने मोमीन का साक्षात्कार लिया जो अब तक समस्त शब्दावली से अच्छी तरह से परिचित हो चुका था. रिक्ति के लिए उसका चयन बड़ी आसानी से हो गया और उसे अपेक्षा से अधिक वेतन पैकेज मिला.

उसके चयन के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि मोमीन को पहले से ही क्षेत्र में अनुभव था. अब एक साल से अधिक समय हो गया है और मोमीन का दृढ़ विश्वास है कि 6 महीने के स्किल इंडिया कोर्स ने उसके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया है.

मोमीन अकेला नहीं है. निजी तौर पर कौशल प्रशिक्षण हासिल करते हुए अन्य अनेक लोगों का जीवन भी बदल रहा है.

टाटा स्ट्राइव द्वारा कौशल प्रशिक्षण

टाटा ट्रस्ट्स के कौशल विकास संगठन, टाटा स्ट्राइव का लक्ष्य 2022 तक 10 लाख लोगों के जीवन को बदलना है. अभी, यह विभिन्न टाटा कंपनियों में नौकरियों के लिए 3 लाख लोगों को प्रशिक्षण दे रहा है. यह उन्नयन की प्रक्रिया में है और जल्द ही 7 लाख उम्मीदवारों को विभिन्न कौशलों का प्रशिक्षण देगा. सितंबर 2021 तक टाटा स्ट्राइव द्वारा 7.5 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है.

तेलंगाना के नागोले की सिरीशा जेट्टी टाटा स्ट्राइव की स्नातकों में से एक हैं, जो एक महिला इलेक्ट्रिशियन के रूप में समाज में कई रूढ़ियों को तोड़ रही हैं. सिरीशा के पिता ऑटो चालक हैं. उसका परिवार 2016 में एक गहरे वित्तीय संकट में आ गया और उसके पिता ने खुद को घर का किराया भी देने के लिए संघर्ष करते हुए पाया.

सिरीशा ने महसूस किया कि उसे जल्द ही कोई कौशल सीखने और नौकरी खोजने की जरूरत है. उन्होंने टाटा स्ट्राइव में असिस्टेंट इलेक्ट्रिशियन के कोर्स में दाखिला लिया. यह आसान रास्ता नहीं था. उसे नागोले स्थित अपने घर से केंद्र तक रोजाना 70 किमी का सफर तय करना पड़ता था. लेकिन पाठ्यक्रम ने उसे आज एक सफल इलेक्ट्रिशियन बनने में मदद करने के लिए आवश्यक सिद्धांत और व्यावहारिक प्रशिक्षण सिखाया. 19 साल की उम्र में, वह हैदराबाद में होटल ताज कृष्णा में एक सहायक इलेक्ट्रिशियन के रूप में प्रति माह 12,000 रुपये का वेतन पा रही है.

अपने परिवार की मदद करने के अलावा, सिरीशा ने बी.टेक की डिग्री में भी दाखिला लिया है. उसका कहना है कि ''मेरा दृढ़ विश्वास है कि टाटा स्ट्राइव की कौशल विकास पहल ने मेरे कॅरिअर की संभावनाओं में काफी सुधार किया है.

टाटा स्ट्राइव की सीईओ अनीता रंजन कहती हैं, ''हम ऐसे युवाओं के साथ काम कर रहे हैं, जिनमें से अधिकांश आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित हैं, ताकि उन्हें आवश्यक कौशल सेट और व्यक्तित्व प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके और उन्हें आजीविका से जोड़ा जा सके. उन्हें नौकरी खोजने में मदद करने के अलावा, हम उन्हें उद्यमी बनने में भी मदद करते हैं.

महिंद्रा प्राइड स्कूल भी बदल रहा है लोगों की जिंदगी

मणिकंदन पलानी सड़क किनारे मछलियां बेचते थे. उनकी बिक्री बेहद अप्रत्याशित थी. उनके परिवार को अपना घर बेचना पड़ा क्योंकि उनकी आय कभी भी पर्याप्त नहीं थी. इसके बाद पलानी ने खुद महिंद्रा प्राइड स्कूल में दाखिला लिया, जहां उसने संचार और पारस्परिक कौशल में काम सीखा और कुछ आईटी प्रशिक्षण भी प्राप्त किया. आज वह जोहो में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट ट्रेनी के तौर पर कार्यरत है.

कौशल विकास कार्यक्रम न केवल किसी व्यक्ति के जीवन को बदल देता है, बल्कि यह एक पूरे परिवार और कुशल व्यक्ति की पूरी पीढ़ी की जीवन स्थितियों को उन्नत बना देता है.

साई प्रसाद नंदला के लिए भी यह आसान नहीं था. वह एक सब्जी विक्रेता का बेटा है और उसमें हकलाने की भी प्रवृत्ति थी. बचपन में गरीबी और हकलाने की भी प्रवृत्ति ने उसके आत्मविश्वास को कुचल दिया. लेकिन उसने महिंद्रा प्राइड स्कूल में सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण में भाग लिया, और अब वे विप्रो में एक कंटेंट रिव्यूवर के रूप में काम कर रहा है.

महिंद्रा प्राइड स्कूलों द्वारा पेश किए जाने वाले सभी कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सॉफ्ट स्किल्स पर एक अनिवार्य मॉड्यूल शामिल है जिसमें उम्मीदवारों को रोज़गार योग्य बनाने के लिए ग्रूमिंग, बुनियादी कंप्यूटर कौशल और अंग्रेजी बोलने का कौशल प्रदान किया जाता है.

महिंद्रा ग्रुप की सीनियर वीपी शीतल मेहता कहती हैं, ''कोविड-19 महामारी से पहले, महिंद्रा प्राइड स्कूल का हर साल शत-प्रतिशत प्लेसमेंट ट्रैक रिकॉर्ड था, जहां हमारे उम्मीदवारों को प्रतिष्ठित संगठनों द्वारा चुना गया था. हम 90-दिवसीय प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित करते हैं और सालाना लगभग 5,500 से 6,000 व्यक्तियों को प्रशिक्षित करते हैं. हमारे पाठ्यक्रम स्नातकों का औसत शुरुआती वेतन पैकेज वर्तमान में लगभग 11,000 रुपये प्रति माह है. हमारे छात्रों को सबसे अच्छा वेतन पैकेज जापान में यूडी ट्रक्स द्वारा दिया गया था, जिसने हमारे 65 छात्रों को प्रति माह 1 लाख रुपये से अधिक के लिए चुना.

कुशल महिलाएं तोड़ रही हैं रूढ़ियां  

कार्यबल में लैंगिक समानता अभी भी एक दूर का लक्ष्य है लेकिन अधिक से अधिक महिलाएं अब ऐसे व्यवसायों में प्रवेश कर रही हैं जिन्हें पारंपरिक रूप से पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है. उदाहरण के लिए, एक ''लाइनमैन की नौकरी. सभी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग नौकरियों और भारी-शुल्क वाले उद्योगों की तरह, यह नौकरी काफी हद तक पुरुषों के लिए आरक्षित मानी जाती है. तेलंगाना में दो महिलाओं ने राज्य में पहली 'लाइन-महिला बनकर इतिहास रच दिया है. बब्बूरी सिरीशा ने आईटीआई से इलेक्ट्रीशियन का कोर्स किया. वह तेलंगाना दक्षिणी विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (टीएसएसपीडीसीएल) में ''लाइनमैन की रिक्ति के लिए आवेदन करना चाहती थी. लेकिन महिलाएं इस पद के लिए आवेदन करने की पात्र नहीं थीं. टीएसएसपीडीसीएल ने तर्क दिया कि इस नौकरी के लिए भारी-भरकम और कठोर गतिविधियों की आवश्यकता होती है जैसे कि 18-फीट बिजली के खंभों पर बार-बार चढ़ना. तथाकथित कमजोर उर्फ महिलाओं के लिए इन गतिविधियों को रूढ़िवादी रूप से अधिक खतरनाक माना जाता था. सिरीशा ने 2019 में दिल्ली उच्च न्यायालय में इस पुरातन नियम को चुनौती देते हुए कहा कि महिलाओं को पद के लिए आवेदन करने का उचित मौका मिलना चाहिए. एक साल की कानूनी लड़ाई के बाद सिरीशा जीत गई. उसने और आठ अन्य महिलाओं ने रिक्ति के लिए आवेदन किया था. सिरीशा और वानकुडोथु भारती नाम की एक अन्य महिला ने तेलंगाना की पहली महिला लाइनमैन बनने के लिए परीक्षा पास की. उन्होंने शारीरिक परीक्षा भी पास की जहां उन्हें एक मिनट से भी कम समय में पोल पर चढ़ना था.

स्किल इंडिया ड्राइव सभी के लिए है. आज ही स्किल डेवलपमेंट कोर्स में दाखिल लें और एक नया भविष्य लिखें!

(पत्रकार श्री अमित त्यागी द्वारा प्रदत्त सामग्री)

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.