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विशेष लेख


अंक संख्या 22, 03-09 सितम्बर ,2022

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी - क्‍या यह मुद्रा का भविष्‍य है 

 

आज हम डिजिटल युग में जी रहे हैं। समूचे विश्‍व में डिजिटल बैंकिंगडिजिटल भुगतान और फिनटेक नवाचार त्‍वरित गति से बढ़ रहे हैं। करेंसी नोटों के अतिरिक्‍त आधुनिक वित्‍तीय प्रणाली - बॉन्‍ड्सप्रतिभूतियांलेन-देनसंचारपत्र व्‍यवहार अथवा संदेश में कागज के सभी प्रकार के उपयोगों का स्‍थान अब उनके संबंधित डिजिटल और इलेक्‍ट्रॉनिक संस्‍करण ले चुके हैं।  भारत सरकार डिजिटल बैंकिंग के लाभ देश के कोने-कोने तक उपभोक्‍ता-हितैशी रूप से पहुंचाना सुनिश्चित करने की दिशा में  निरंतर प्रयास कर रही है। इसी उद्देश्‍य को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2022-23 से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा  ब्‍लॉकचेन और अन्‍य प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर ‘डिजिटल रूपी’ जारी किए जाने का प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत किया गया है।  

 

डिजिटल रूपया क्‍या है?

यह केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी- सीबीडीसी) का उपनाम है। वर्चुअल/क्रिप्टो करेंसी के नियमन के लिए नीतिगत और कानूनी तंत्र की जांच करने के लिए वित्त मंत्रालयभारत सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति (नवंबर 2017) ने सीबीडीसी को भारत में वैध मुद्रा या फिएट मनी के डिजिटल स्‍वरूप के रूप में पेश करने की सिफारिश की थी।

 

सीबीडीसी केंद्रीय बैंक द्वारा डिजिटल रूप में जारी वैध मुद्रा या लीगल टेंडर है। यह केंद्रीय बैंक द्वारा जारी करेंसी या मुद्रा के समान हैलेकिन यह कागज की तुलना में एक अन्‍य स्‍वरूप में होता है और अन्‍य फिएट करेंसी के साथ विनिमय योग्‍य (यानी एक्सचेंजेबल) है। यह इलेक्ट्रॉनिक स्‍वरूप में एक संप्रभु मुद्रा हैजो नकदी के बराबर विनिमय योग्य होनी चाहिए। आजकल मुद्रा को मुख्य रूप से डिजिटल स्‍वरूप (बैंक खातेभुगतान ऐप या ऑनलाइन लेन-देन के माध्यम) में रखा जाता है। हालांकिसीबीडीसी आम जनता के लिए उपलब्ध मौजूदा डिजिटल मुद्रा से भिन्न होती हैक्योंकि सीबीडीसी किसी वाणिज्यिक बैंक की नहींअपितु  केंद्रीय बैंक की देयता होती है।  सीबीडीसी की अवधारणा कोई हाल की बात नहीं है। कुछ लोग सीबीडीसी की उत्पत्ति का श्रेय नोबेल पुरस्‍कार विजेता अमेरिकी अर्थशास्त्री जेम्स टोबिन को देते हैंजिन्होंने1980 के दशक में सुझाव दिया था कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व बैंक जनता को ‘जमा राशियों की सविुधा और मुद्रा की सुरक्षा युक्‍त माध्‍यम’ उपलब्‍ध करा सकते हैं। हालांकि डिजिटल मुद्रा की अवधारणा पिछले दशक में ही शुरु हुई और अब इस पर केंद्रीय बैंकोंअर्थशास्त्रियों और सरकारों द्वारा व्यापक चर्चा की जा रही है।

 

अनेक केंद्रीय बैंकों और सरकारों ने वैध मुद्रा के डिजिटल संस्‍करण की तलाश के प्रयास तेज कर दिए हैं। केंद्रीय बैंकों के बीच इसको लेकर दिलचस्‍पी कुछ हद तक विशिष्ट नीतिगत उद्देश्‍यों को आगे बढ़ाने -उदाहरण के लिएऋणात्मक ब्याज दर मौद्रिक नीति को सुगम बनाना -जैसे स्थानीय कारणों से भी रही है। एक अन्‍य कारक जनता को आभासी या वर्चुअल मुद्राएं उपलब्ध कराना है,जो निजी वर्चुअल मुद्राओं  के हानिकारक सामाजिक और आर्थिक परिणामों से बचते हुए उसे निजी वर्चुअल मुद्राओं के वैध लाभ दिला सकें।

 

यह क्रिप्‍टो करेंसी से किस प्रकार भिन्‍न है?

सीबीडीसी नकदी के डिजिटल संस्करण हैंजो क्रिप्टो करेंसी (जिसे क्रिप्टो परिसंपत्ति के रूप में भी जाना जाता है) की तुलना में अधिक सुरक्षित और कम अस्थिरता वाली हैक्योंकि उसे केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी और विनियमित किया जाता है। क्रिप्टो करेंसी निजी तौर पर जारी की जाती हैं और उनके मूल्य में बहुत तेज़ी से उतार-चढ़ाव आ सकता है और इसमें बहुत अधिक जोखिम शामिल होता है। दूसरी ओरयदि कोई केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा जारी करता हैतो यह निश्चित रूप से विश्वसनीय होगी और समय के साथ अपना मूल्य बरकरार रखेगीक्योंकि यह फिएट मुद्रा के मूल्य को दर्शाती है।

 

सीबीडीसी के क्‍या लाभ हैं?

अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की प्रबंध निदेशक सुश्री क्रिस्टालिना जॉर्जीवा के अनुसार, “यदि सीबीडीसी को विवेकपूर्ण तरीके से डिज़ाइन किया गयातो वे संभावित रूप से डिजिटल मुद्रा के निजी स्‍वरूपों की तुलना में अधिक लचीलापनअधिक सुरक्षाअधिक उपलब्धता और कम लागत प्रदान कर सकती हैं। स्पष्ट रूप से यह स्थिति बिना वित्‍तीय समर्थन वाली क्रिप्टो परिसंपत्तियों की तुलना किए जाने पर हैजो अंतरनिहित रूप से अस्थिर हैं।

आईएमएफ के अनुसारसीबीडीसी के संभावित लाभों में शामिल हैं:

·         नकदी की लागत : कुछ देशों मेंविशेषकर  विशाल क्षेत्र या विशेष रूप से छोटे द्वीपों सहित दूरदराज के क्षेत्र होने के कारण नकदी के प्रबंधन की लागत बहुत अधिक है। सीबीडीसी राष्ट्रीय भुगतान माध्यम प्रदान करने के साथ ही साथ संबंधित लागतों में कमी ला सकती है।

 

·         वित्तीय समावेशन : सीबीडीसी जनता को भुगतान का एक ऐसा सुरक्षित और सरकार द्वारा समर्थित तरल साधन उपलब्‍ध करा सकती हैजिसके लिए जनता को बैंक खाता रखने की भी आवश्यकता नहीं होती। कुछ केंद्रीय बैंक इसे डिजिटल विश्‍वखासकर बैंकिंग क्षेत्र की कम पहुंच वाले ऐसे देशों के लिए आवश्यक मानते हैंजिनमें नकदी का उपयोग उत्तरोत्तर कम हो रहा है।

 

·         भुगतान प्रणाली की स्थिरता : कुछ केंद्रीय बैंक कुछ बहुत बड़ी कंपनियों (जिनमें से कुछ विदेशी हैं) के हाथों में भुगतान प्रणाली की बढ़ती सघनता से चिंतित हैं। इस संदर्भ मेंकुछ केंद्रीय बैंक सीबीडीसी को अपनी भुगतान प्रणाली के लचीलेपन को बढ़ाने के साधन के रूप में देखते हैं।

·         बाजार में प्रतिस्पर्धात्मकता और अनुशासन : संबंधित रूप से कुछ केंद्रीय बैंक सीबीडीसी को भुगतान में शामिल बड़ी फर्मों के लिए प्रतिस्पर्धा प्रस्‍तुत करने में समर्थ और इस प्रकार उनके द्वारा निकाले जा सकने वाले किराये की सीमा ( रेंट कैपिंग) करने के साधन के रूप में देखते हैं।

 

·         नई डिजिटल मुद्राओं से मुकाबला : कुछ केंद्रीय बैंक सीबीडीसी को निजी तौर पर जारी डिजिटल मुद्राओं के विपरीत स्वस्थ संभावित रूप से आवश्यक प्रतिस्पर्धा के रूप में देखते हैंजिनमें से कुछ विदेशी मुद्राओं में नामित हो सकती हैं। इन केंद्रीय बैंकों का मानना है कि घरेलू रूप से जारी सरकार समर्थित डिजिटल मुद्राखाते की घरेलू इकाई में नामितनिजी तौर पर जारी मुद्राओं को अपनाने में कमी लाने या रोकने में मदद करेगीजिन्‍हें विनियमित करना मुश्किल हो सकता है।

 

·         वितरित खाताबही प्रौद्योगिकी (डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी (डीएलटी) के प्रति समर्थन : कुछ केंद्रीय बैंक डीएलटी-आधारित सीबीडीसी को डीएलटी-आधारित परिसंपत्तियों के भुगतान के लिए उपयुक्‍त समझते हैं। यदि इन परिसंपत्तियों का विस्‍तार होता हैतो संपत्ति सौंपे जाने  (तथाकथित "भुगतान-बनाम-वितरण," या "भुगतान-बनाम-भुगतान"जिसे स्मार्ट अनुबंधों का उपयोग करके स्वचालित किया जा सकता है) पर डीएलटी-आधारित मुद्रा स्वचालित भुगतान की सुविधा प्रदान करेगी। कुछ केंद्रीय बैंक डीएलटी-आधारित परिसंपत्ति बाजार विकसित करने के लिए केवल संस्थागत बाजार सहभागियों को सीबीडीसी प्रदान करने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं।

 

·         मौद्रिक नीति: कुछ अकादमिक विद्वान सीबीडीसी को मौद्रिक नीति के प्रसार को बढ़ाने के साधन के रूप में देखते हैं। उनकी दलील है कि ब्याज-वहन वाली सीबीडीसी नीतिगत दर में बदलावों के लिए अर्थव्यवस्था की प्रतिक्रिया को बढ़ाएगी। उनका यह भी सुझाव है कि दीर्घकालिक संकट के समय में सीबीडीसी का उपयोग नकदी को महंगा बनाने की हद तक (इस प्रकार " जीरो लोअर बाउंड" अवरोध को समाप्‍त करते हुए) नकारात्मक ब्याज दरों को चार्ज करने के लिए किया जा सकता है ।

 

 

सीबीडीसी के प्रति आरबीआई का क्‍या दृष्टिकोण है ?

विश्‍व भर के केंद्रीय बैंक सीबीडीसी की संभावनाएं तलाशने में जुटे हुए हैं। आम तौरपरदेशों  ने थोक और खदुरा क्षेत्रों में विशिष्ट उद्देश्य वाली सीबीडीसी लागू की हैं। आगे चलकरइन मॉडलों के प्रभाव का अध्ययन करने के बादसामान्य प्रयोजन वाली सीबीडीसी के आरंभ का मूल्यांकन किया जाएगा। आरबीआई वर्तमान में एक चरणबद्ध कार्यान्वयन रणनीति की दिशा में काम कर रहा है और उपयोग के मामलों की जांच कर रहा हैजिसे मामूली या बिना किसी व्यवधान के लागू किया जा सकता है।  

 

सीबीडीसी निस्‍संदेह डिजिटल अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देगी तथा अधिक कुशल और किफायती मुद्रा प्रबंधन प्रणाली का मार्ग भी प्रशस्‍त करेगीलेकिन इसके बावजूद कुछ प्रमुख मुद्दे हैंजो आरबीआई की जांच के अधीन हैं । जांच का पहला मुद्दा है  सीबीडीसी का दायरा – क्‍या इनका उपयोग खदुरा भगुतान में किया जाए या थोक भगुतान में भी किया जाए। दूसरा है अतर्निहित प्रौद्योगिकी –उदाहरण के लिए क्‍या यह वितरित खाताबही (डिस्ट्रिब्यूटेड लेज़र) होनी चाहिए  या एक केंद्रीकृत खाताबही (सेंट्रलाइज्‍ड लेजर)और क्या उपयोग के मामलों के अनुसार प्रौद्योगिकी चयन किया जाना चाहिए। अन्‍य मुद्दों में प्रमाणीकरण व्यवस्था-टोकन आधारित हो या खाता आधारितवितरण संरचना – सीधे आरबीआई द्वारा जारी की जाए या बैंकों के माध्यम सेऔर अनामिता का स्तर आदि। हालांकि निकट भविष्य में थोक और खदुरा क्षेत्रों में प्रयोगों का संचालन करने की संभावना हो सकती है।   

 

क्‍या हमें भारत में सीबीडीसी की आवश्‍यकता है ?

भारत डिजिटल भगुतान संबंधी नवाचारों के मामले में विश्‍व की अगुवाई कर रहा है। इसकी भगुतान प्रणालियां खदुरा और थोक दोनों ग्राहकों के लिए 24X7 उपलब्ध हैंवे काफी हद तक रीयल-टाइम हैंलेन-देन की लागत शायद विश्‍व में सबसे कम हैउपयोगकर्ताओं के पास लेन-देन करने के विकल्पों का एक अच्छा- खासा मेन्‍यू है और डिजिटल भगुतान में 55% के प्रभावशाली सीएजीआर पर (पिछले पांच वर्षों में) वृद्धि हुई है। इस प्रकार देश में विशेषत: छोटे मूल्य के लेन-देन के लिए नकदी के प्रयोग में दिलचस्‍पी बरकरार रहने सहित डिजिटल भगुतान के बढ़ते प्रसार का एक अनूठा परिदृश्य है।डिजिटल भगुतान के तरीकों को लेकर असहजता के कारण जिस हद तक नकदी को प्राथमिकता दी जा रही हैसीबीडीसी द्वारा उस हद तक नकदी के प्रयोग का स्थान ले पाने की सभांवना नहीं है। लेकिन उदाहरण के रूप में बात करें तो नकदी को इसकी अनामिता के कारण दी जा रही प्राथमिकता को सीबीडीसी की स्वीकृति की ओर मोड़ा जा सकता हैजब तक कि उसकी अनामिता सुनिश्चित है। भगुतान प्रणालियों में सीबीडीसी न केवल अपने द्वारा सृजित लाभों के लिए वांछनीय हैंबल्कि अस्थिर निजी वर्चुअल मुद्राओं  के परिवेश में आम जनता की सुरक्षा के लिए भी यह आवश्यक हो सकती हैं।

 

 

सीबीडीसी और बैंकिंग प्रणाली

सीबीडीसीअपने उपयोग की सीमा के आधार पर बैंक जमा के लिए लेन-देन संबंधी मांग में कमी ला सकती है। चूंकि  सीबीडीसी में किए गए लेन-देन से निपटान जोखिम भी घटते हैंवे लेन-देन के निपटान के लिए तरलता या नकदी की जरूरतों (जैसे अंतर्दिवसीय तरलता) को कम करती हैं। इसके अलावाबैंक जमा राशियों के लिए वास्तविक रूप से जोखिम मुक्‍त विकल्‍प प्रदान करके वे बैंक जमा राशियों को हटा (शिफ्ट कर) सकती हैं जिसके फलस्वरूप जमा पर सरकारी गारंटी की आवश्यकता कम हो सकती है।

 

साथ हीबैंकों की मध्यस्थता में कमी के अपने जोखिम हैं। यदि समय के साथ बैंक जमा राशि खोने लगेंतो उनकी ऋण सृजन की क्षमता बाधित हो जाती है। चूंकि केंद्रीय बैंक निजी क्षेत्र को ऋण प्रदान नहीं कर सकतेइस प्रकारसीबीडीसी को इस तरह से बनाना और कार्यान्वित करना महत्वपूर्ण हैजिससे बैंक जमा और सीबीडीसी की मांग साथ-साथ संभालने लायक हो।

 

इसके अतिरिक्‍तसीबीडीसी की उपलब्‍धता से किसी भी बैंक पर दबाव की स्थिति में जमाकर्ताओं के लिए शेष राशियां या बैलेंस निकालना आसान हो जाता है। ऐसी स्थिति में जमा राशियों का निर्गमन नकद निकासी की तलुना में बहुत तेजी से हो सकता है। दूसरी ओरमहज सीबीडीसी की उपलब्धता पैनिक ‘रन’ (या भय के कारण भगदड़) को कम कर सकती है क्योंकि जमाकर्ताओं को इस बात की जानकारी होती है कि वे जल्दी पैसा निकाल सकते हैं। एक परिणाम यह हो सकता है कि बैंकों बड़े स्तर पर नकदी रखने के लिए प्रेरित होंजिसकी परिणति वाणिज्यिक बैंकों के कम रिटर्न में हो सकती है।

 

 

सीबीडीसी और प्रौद्योगिकी संबंधी जोखिम

सीबीडीसी व्‍यवस्‍थाओं के लिए साइबर हमलों का जोखिम वैसा ही हो सकता हैजैसा वर्तमान भगुतान प्रणालियों के लिए विद्यमान है। इसके अलावाकम वित्तीय साक्षरता स्तर वाले देशों मेंडिजिटल भगुतान संबंधी धोखाधड़ी में वृद्धि सीबीडीसी में भी फैल सकती है। इसलिए सीबीडीसी के साथ व्यवहार करने वाले किसी भी देश के लिए साइबर सुरक्षा के उच्च मानकों और वित्तीय साक्षरता पर समानांतर प्रयासों को सुनिश्चित करना आवश्यक है।अर्थव्यवस्था में सीबीडीसी का समावेश प्रौद्योगिकी तैयारियों पर भी निर्भर है। जनसंख्‍या के पैमाने पर डिजिटल मुद्रा प्रणाली का निर्माण तीव्र गति वाले इंटरनेट व दूरसंचार नेटवर्क के विकास तथा सीबीडीसी में भंडारण और लेन-देन हेतु आम जनता के लिए उपयुक्‍त प्रौद्योगिकी की व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने पर निर्भर है।

 

जहां एक ओर बेहतर अंतर-बैंक भुगतान प्रणाली अनेक संभावित लाभ लाएगी,जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी हैवहीं सीबीडीसी खासकर कुछ अधिकार क्षेत्रों  में पूरक हो सकती है । इसलिएकेंद्रीय बैंकों को सिंथेटिक सीबीडीसी की पेशकश करने के सामर्थ्‍य सहित सीबीडीसी से जुड़े मुद्दों की पूरी श्रृंखला की जांच करने में संलग्‍न रहना चाहिए और नई प्रौद्योगिकियों के साथ अपने परिचय को गहन बनाना चाहिए।

 

संकलन अनीषा बनर्जी एवं अनुजा भारद्वाजन

स्रोत : पीआईबी/आरबीआई/आईएमएफ